जम्मू कश्मीर: अनुच्छेद 370 हटने के तीन साल बाद भी हुर्रियत नेता मीरवाइज़ उमर नज़रबंदी में हैं

मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाने के एक दिन पहले राज्य के प्रमुख नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया था, जिनमें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता मीरवाइज़ उमर फारूक़ भी थे. हुर्रियत के एक पदाधिकारी ने बताया कि राज्य के अधिकारियों ने उन आरोपों का विवरण देने से इनकार कर दिया है जो मीरवाइज़ पर लगाए गए हैं.

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A devotee holding a photograph of Kashmir's chief cleric Mirwaiz Umar Farooq inside the grand mosque in old city Srinagar on March 5, 2021. Mirwaiz has been under continuous house detention for more than three years now. Photo: By arrangement.

मोदी सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को हटाने के एक दिन पहले राज्य के प्रमुख नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया था, जिनमें हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता मीरवाइज़ उमर फारूक़ भी थे. हुर्रियत के एक पदाधिकारी ने बताया कि राज्य के अधिकारियों ने उन आरोपों का विवरण देने से इनकार कर दिया है जो मीरवाइज़ पर लगाए गए हैं.

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

श्रीनगर: भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के तीन साल से अधिक बीतने के बाद भी वरिष्ठ हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक अपने श्रीनगर स्थित आवास में नजरबंद हैं.

मीरवाइज के करीबी हुर्रियत के एक अधिकारी ने बताया कि जम्मू कश्मीर के अधिकारियों ने उन आरोपों का विवरण देने से इनकार कर दिया है, जिनके तहत उन्हें श्रीनगर में उनके निगीन स्थित आवास तक सीमित कर दिया गया है, जहां पहुंचना प्रतिबंधित है और जिसकी निगरानी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की जाती है.

मीरवाइज के सहयोगी ने द वायर  को बताया, ‘उन्हें कश्मीर विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान खोजने के लिए दंडित किया जा रहा है. अगर उनके खिलाफ कोई आरोप हैं तो उन्हें उनके बारे में जानने का संवैधानिक अधिकार है ताकि वे सभी न्यायिक उपायों का लाभ ले सकें. ‘

अनुच्छेद 370 हटाए जाने से एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को एक पुलिस वैन निगीन इलाके में मीरवाइज के आवास पहुंची थी. हुर्रियत के अधिकारी ने कहा, ‘वैन लगातार मीरवाइज के आवास के बाहर तैनात है. उनके बुनियादी मानवाधिकार छीन लिए गए हैं, जिसने उनके धार्मिक दायित्वों में बाधा डाल दी है. यह उनके और कश्मीर के मुसलमानों के लिए बेहद दुख की बात है.’

मीरवाइज की मां, पत्नी और दो बच्चों समेत उनकी गतिविधियां उनके आवास तक ही सीमित कर दी गई हैं. उन्हें भारी सुरक्षा घेरे में बाहर निकलने की अनुमति है, जिसके तहत अस्पताल के कुछ दौरों के साथ-साथ कोविड-19 टीकाकरण और परिवार में हुई एक मौत के वक्त उनका बाहर निकलना हुआ था. केवल कुछ चुनिंदा आगुंतकों, जिनमें करीबी रिश्तेदार शामिल हैं, को ही उनसे मिलने की अनुमति है.

मीरवाइज का पासपोर्ट सालों से जब्त है. सूत्रों ने बताया कि उनके दो बच्चे पिछले दो सालों से अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण का इंतजार कर रहे हैं.

हुर्रियत के एक प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा कि मीरवाइज की गिरफ्तारी ‘मनमानी, निरंकुश और अधिकारियों की न्याय से इतर कार्रवाई’ है और ‘उनके सभी मौलिक और बुनियादी मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन’ है.

जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह और कश्मीर घाटी के शीर्ष पुलिस अधिकारी विजय कुमार ने उन आरोपों के बारे में द वायर  के सवालों का जवाब नहीं दिया, जिसके तहत कश्मीर के मुख्य मौलवी मीरवाइज को नजरबंद किया गया है. उनका जवाब आने पर रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

मीरवाइज उमर फारूक़. (फाइल फोटो)

द वायर  के साथ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, मीरवाइज ने वर्ष 2016 से अब तक 1,521 दिन हिरासत में बिताए हैं, जिसकी शुरुआत हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई थी, तब उन्हें करीब दो महीने श्रीनगर की चेशम शाही उप-जेल में रखा गया था.

जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ बातचीत ‘मानवता के दायरे में’ होगी, तब मीरवाइज हुर्रियत के उन चंद नेताओं में से एक थे जिन्हें नई दिल्ली द्वारा बातचीत में शामिल किया गया था.

हुर्रियत कांफ्रेंस के भीतर मीरवाइज द्वारा बातचीत के समर्थन का कड़ा विरोध हुआ था, जिसके बाद उन्होंने भारी व्यक्तिगत नुकसान भी झेले, जिनमें जून 2014 में उनके चाचा मौलवी मुश्ताक की हत्या और उसी दिन उनके घर पर ग्रेनेड का हमला होना शामिल हैं.

इस सबके बावजूद मीरवाइज ने हुर्रियत के उदारवादी गुट का नेतृत्व करना जारी रखा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ वार्ता प्रक्रिया में शामिल हुए. वार्ता के बाद नई दिल्ली ने हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान की यात्रा करने की भी अनुमति दी, जहां उन्होंने देश के राजनीतिक और सुरक्षा नेतृत्व से मुलाकात की थी.

हुर्रियत के अधिकारी ने कहा, ‘सही और गलत तय करना विवाद को बढ़ाता है, हमारा दृष्टिकोण इससे इतर रहा है. हम विवाद से जुड़े तीनों पक्षों (भारत, पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर के लोग) की चिंताओं और हितों को समझकर समाधान देखते हैं और सभी की संतुष्टि के लिए बातचीत व विचार-विमर्श के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं. यह मुश्किल है, लेकिन सबसे अच्छा शांतिपूर्ण विकल्प यही उपलब्ध है.’

हुर्रियत और मुख्य दलों के कई अन्य नेताओं के साथ-साथ मीरवाइज की गतिविधियों पर 4 अगस्त 2019 को पाबंदियां लगाई गई थीं. इनमें राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला शामिल थे, जिन्हें अब आजाद कर दिया गया है. बाकी दूसरे लोग जम्मू कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों की जेलों में हैं. मीरवाइज एकमात्र नेता हैं जो घर में नजरबंद हैं.

श्रीनगर की जामिया मस्जिद के प्रबंधन निकाय अंजुमन औकाफ के अनुसार, मीरवाइज शुक्रवार और इस्लामिक कैलेंडर के अन्य महत्वपूर्ण दिनों में जामिया मस्जिद में सामूहिक नमाज कराया करते थे, यह मस्जिद 2016 के बाद से 167 शुक्रवारों को अधिकारियों द्वारा बंद कराई गई है. यहां तक कि 2019 की ईद-उल-अजहा की नमाज के बाद से यहां ईद की नमाज पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है.

भारत सरकार से कैदियों को ‘बिना शर्त’ रिहा करने का आग्रह करते हुए हुर्रियत के प्रवक्ता ने कहा, ‘कश्मीरी राजनीतिक नेतृत्व, कार्यकर्ताओं, एक्टिविस्ट, पत्रकारों, युवाओं और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को भारत भर की जेलों में बंद करना और असंतोष या प्रतिरोध को दबाने के लिए सभी प्रकार के दमनकारी उपायों का उपयोग करना, समस्या के समाधान दिशा में एक अत्याचारी दृष्टिकोण है और लंबी अवधि में यह व्यर्थ साबित होगा.’

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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