पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर के भाई और संगठन में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले अब्दुल रऊफ़ अज़हर को संयुक्त राष्ट्र में ब्लैक लिस्ट में डालने का प्रस्ताव लाया गया था, जिस पर चीन द्वारा तकनीकी तौर पर रोक लगा दी गई. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसे खेदजनक और गै़र-ज़रूरी क़दम क़रार दिया है.
नई दिल्ली: भारत ने जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के भाई एवं पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन के दूसरे नंबर के ओहदेदार अब्दुल रऊफ अजहर को संयुक्त राष्ट्र में काली सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन द्वारा तकनीकी रोक लगाने को ‘खेदजनक’ और ‘गैर जरूरी’ करार दिया है.
इसको लेकर शुक्रवार को भारत की ओर से कहा गया कि वह ऐसे आतंकवादियों को न्याय के कटघरे में लाने का प्रयास जारी रखेगा.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने संवाददाताओं से कहा, ‘हमें इस बात का खेद है कि अब्दुल रऊफ अजहर को काली सूची में डाले जाने के प्रस्ताव पर ‘तकनीकी रोक’ लगाई गई है.’
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई की बात आती है, तब अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक स्वर में बोलने में असमर्थ होता है.
प्रवक्ता ने कहा कि जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अब्दुल रऊफ 1998 में इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी814 के अपहरण, 2001 में संसद पर हमले, 2014 में कठुआ में भारतीय सेना के शिविर पर आतंकी हमले और 2016 में पठानकोट में वायुसेना के अड्डे को निशाना बनाने समेत भारत में अनेक आतंकवादी हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने में शामिल रहा है.
बागची ने कहा कि रऊफ पहले ही भारत और अमेरिका के कानून के तहत वांछित घोषित है और ऐसे वांछित आतंकवादी को लेकर ‘तकनीकी रोक’ लगाना अनावश्यक है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध से जुड़ी व्यवस्था 1267 सहित, ऐसे आतंकवादियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने के अपने सैद्धांतिक रूख को आगे बढ़ाना जारी रखेगा.
उन्होंने इस मुद्दे पर न्यूयार्क में भारत की स्थायी प्रतिनिधि द्वारा 9 अगस्त को दिए गए बयान का भी जिक्र किया.
इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने 9 अगस्त को कहा था कि आतंकवादियों को सूचीबद्ध करने के अनुरोध को बिना स्पष्टीकरण दिए लंबित रखने या बाधित करने की प्रवृत्ति खत्म होनी चाहिए.
उन्होंने कहा था, ‘प्रतिबंध समितियों के प्रभावी कामकाज के लिए उन्हें अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष बनाने की आवश्यकता है. बिना किसी औचित्य के सूचीबद्ध अनुरोधों पर रोक लगाने और उन्हें बाधित करने की प्रवृत्ति समाप्त होनी चाहिए.’
कंबोज ने कहा था, ‘यह बेहद खेदजनक है कि दुनिया के कुछ सबसे खूंखार आतंकवादियों को काली सूची में डालने के वास्तविक व साक्ष्य आधारित प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है. इस तरह के ‘दोहरे मानदंड’ ने सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध व्यवस्था की विश्वसनीयता को सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंचा दिया है.’
उन्होंने उम्मीद जताई थी कि जब अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की बात आएगी तब सुरक्षा परिषद के सभी देश एक सुर में बोलेंगे.
गौरतलब है कि चीन ने बुधवार (10 अगस्त) को रऊफ का नाम काली सूची में डालने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और अमेरिका के समर्थन वाले संयुक्त प्रस्ताव पर तकनीकी रोक लगा दी थी. सुरक्षा परिषद के अन्य सभी 14 सदस्य देशों ने इस कदम का समर्थन किया था.
यह दो महीने से भी कम समय में दूसरा मौका है, जब चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के तहत पाकिस्तान स्थित एक आतंकवादी को काली सूची में डालने के अमेरिका और भारत के प्रस्ताव को बाधित किया है.
चीन ने इससे पहले इस साल जून में पाकिस्तानी आतंकवादी अब्दुल रहमान मक्की को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंधित सूची में शामिल करने के भारत तथा अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव पर आखिरी क्षण में अड़ंगा लगा दिया था.
मक्की लश्कर-ए-तैयबा के सरगना एवं 26/11 मुंबई हमलों के मुख्य साजिशकर्ता हाफिज सईद का रिश्तेदार है. वह लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा (जेयूडी) के राजनीतिक मामलों का प्रमुख है और लश्कर के विदेश संबंध विभाग का मुखिया रह चुका है.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों के अनुसार, लश्कर भारत में कई बड़े आतंकी हमलों में शामिल रहा है, जिनमें 26/11 मुंबई आतंकी हमला, वर्ष 2000 में लाल किले पर हमला, जनवरी 2008 में रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमला, 2018 में खानपोरा (बारामुल्ला) हमला, जून 2018 में श्रीनगर हमला और 2018 में गुरेज/बांदीपोरा हमला शामिल हैं.
बहरहाल, इस विषय पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने प्रेस वार्ता में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था, ‘हमें इस व्यक्ति पर पाबंदी लगाने के आवेदन का आकलन करने के लिए और वक्त चाहिए.’
श्रीलंका एक संप्रभु देश, अपने फैसले खुद लेता है: चीनी अनुसंधान पोत के मुद्दे पर भारत
वहीं, भारत ने श्रीलंका के सामरिक रूप से अहम हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन के अत्याधुनिक अनुसंधान पोत को नहीं आने देने के लिए दबाव डालने के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए शुक्रवार को कहा कि श्रीलंका एक संप्रभु देश है और वह अपने फैसले स्वतंत्र रूप से करता है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने संवाददाताओं से कहा कि हम बयान में भारत के बारे में आक्षेप को खारिज करते हैं. उन्होंने कहा, ‘श्रीलंका एक संप्रभु राष्ट्र है और वह स्वतंत्र रूप से अपने फैसले करता है.’
बागची ने कहा कि जहां तक भारत-श्रीलंका संबंधों का सवाल है, आपको मालूम है कि हमारी पड़ोस प्रथम नीति के केंद्र में श्रीलंका है.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने पत्रकार वार्ता में कहा था कि बीजिंग ने इस मुद्दे पर आई खबरों का संज्ञान लिया है.
उन्होंने कहा था, ‘चीन तथा श्रीलंका के बीच सहयोग दोनों देशों के बीच स्वतंत्र रूप से है और उनके साझा हित मेल खाते हैं तथा यह किसी तीसरे पक्ष को निशाना नहीं बनाते हैं.’
उन्होंने कहा था कि सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर श्रीलंका पर ‘दबाव डालना अर्थहीन’ है.
गौरतलब है कि चीन के बैलिस्टिक मिसाइल एवं उपग्रह निगरानी पोत ‘युआन वांग 5’ को गुरुवार (11 अगस्त) को हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचना था और ईंधन भरने के लिए 17 अगस्त तक वहीं रुकना था.
इस बीच, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बागची ने कहा कि भारत ने श्रीलंका के गंभीर आर्थिक संकट को देखते हुए इस वर्ष 3.8 अरब डालर की अभूतपूर्व सहायता प्रदान की है.
उन्होंने कहा कि भारत, श्रीलंका में लोकतंत्र, स्थिरता और आर्थिक स्थिति पटरी पर लाने के उसके प्रयासों का पूरी तरह से समर्थन करता है.
प्रवक्ता ने कहा कि जहां तक भारत-चीन का प्रश्न है, हमने सतत रूप से इस बात पर जोर दिया है कि हमारे संबंध एक दूसरे के प्रति सम्मान, संवेदनशीलता और हितों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ सकते हैं.
उन्होंने कहा कि सुरक्षा चिंताओं का विषय प्रत्येक देश का संप्रभु अधिकार है, हम अपने हितों के बारे में सबसे अच्छे ढंग से निर्णय कर सकते हैं.
बागची ने कहा कि यह स्वाभाविक रूप से हमारे क्षेत्र और खास तौर पर सीमावर्ती क्षेत्रों की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखकर होता है.
उल्लेखनीय है कि 12 जुलाई को श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने चीनी पोत को हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा करने की मंजूरी दे दी थी. हालांकि, आठ अगस्त को मंत्रालय ने कोलंबो स्थित चीनी दूतावास को पत्र लिखकर जहाज की प्रस्तावित डॉकिंग (रस्सियों के सहारे जहाज को बंदरगाह पर रोकना) को स्थगित करने का अनुरोध किया था.
उसने इस आग्रह के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं की. उस समय तक ‘युआन वांग 5’ हिंद महासागर में दाखिल हो चुका था.
हंबनटोटा बंदरगाह को उसकी स्थिति के चलते रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. इस बंदरगाह का निर्माण मुख्यत: चीन से मिले ऋण की मदद से किया गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)