सुप्रीम कोर्ट ने ‘सुल्ली डील्स’ मामले की जांच पर रोक लगाने से इनकार किया

पिछले साल जुलाई में कुछ लोगों ने ‘सुल्ली डील्स’ नामक ऐप पर सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें ‘नीलामी’ के लिए अपलोड कर दी थीं, जिसके बाद ऐप बनाने के आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में कई एफ़आईआर दर्ज कराई गई थीं. ठाकुर ने उन सभी एफ़आईआर को एक साथ जोड़ने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की थी.

सुल्ली डील्स मामले का आरोपी ओमकारेश्वर ठाकुर. (फोटो साभार: एएनआई)

पिछले साल जुलाई में कुछ लोगों ने ‘सुल्ली डील्स’ नामक ऐप पर सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें ‘नीलामी’ के लिए अपलोड कर दी थीं, जिसके बाद ऐप बनाने के आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर के ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में कई एफ़आईआर दर्ज कराई गई थीं. ठाकुर ने उन सभी एफ़आईआर को एक साथ जोड़ने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की थी.

सुल्ली डील्स मामले का आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर. (फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 अगस्त) को ‘सुल्ली डील्स’ मामले में जांच पर रोक लगाने का आदेश देने से इनकार कर दिया.

इस मामले में ऐप बनाने के आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर के खिलाफ कई एफआईआर दर्ज की गई हैं.

सुल्ली डील्स’ एक ऐप है, जो जुलाई 2021 में कंटेंट शेयरिंग प्लेटफॉर्म गिटहब पर सामने आया था. ऐप पर कुछ प्रसिद्ध मुस्लिम महिलाओं की ‘नीलामी’ के लिए उनकी तस्वीर अपलोड कर दी गई थी और उनके लिए आपत्तिजनक शब्द ‘सुल्ली’ का इस्तेमाल किया गया था.

इन महिलाओं के छेड़छाड़ किए गए फोटो आपत्तिजनक विवरण के साथ बिना उनकी सहमति के इस्तेमाल किए गए थे.

ऐप के जरिये लगभग 50-80 मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया गया था. कई महिलाओं द्वारा दिल्ली और नोएडा पुलिस में शिकायत दर्ज कराने के बाद जल्द ही इसे गिटहब ने हटा लिया था.

शीर्ष अदालत आरोपी ठाकुर द्वारा लगाई गई उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने मामले में कई महिलाओं द्वारा दर्ज कराई गईं कई एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की थी.

हालांकि, जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने पाया कि चूंकि मंच पर कई (महिलाओं की) फोटो अपलोड की गई थीं, इसलिए कई अलग-अलग पीड़ित महिलाओं द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गईं और इस प्रकार पूछा कि कैसे सभी एफआईआर को एक साथ जोड़ा जा सकता है?

हालांकि, पीठ ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों को नोटिस जारी किए हैं, लेकिन इसने विभिन्न एफआईआर में जांच पर रोक लगाने की याचिकाकर्ता के आग्रह को ठुकरा दिया.

पीठ के हवाले से लाइव लॉ ने लिखा है, ‘अभी सिर्फ नोटिस. हमें हमारी शंकाएं हैं.’

पीठ ने सुनवाई तीन हफ्ते बाद के लिए निर्धारित की है.

टिप्पणी करते हुए पीठ ने ‘बुली बाई’ ऐप का भी उल्लेख किया, यह लगभग समान नीलामी मंच था, जो इसी साल जनवरी में सामने आया था.

पिछले साल जुलाई में जब सुल्ली डील्स मामला सुर्खियों में था तो इसमें एफआईआर दर्ज की गई थीं, लेकिन तब तक कोई भी गिरफ्तारी नहीं हुई जब तक कि ‘बुली बाई’ सामने नहीं आया और देश भर में आक्रोश फैला.

वास्तव में ‘बुली बाई’ बनाने वाले नीरज बिश्नोई इस साल 6 जनवरी को गिरफ्तार किए गए थे, जबकि ‘सुल्ली डील्स’ बनाने वाले ठाकुर की गिरफ्तारी तीन दिन बाद 9 जनवरी को हुई थी.

दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इस साल मार्च में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज यौन उत्पीड़न के मामले में ठाकुर और बिश्नोई दोनों को जमानत दे दी थी.

हालांकि, उन्हें हिरासत से नहीं छोड़ा गया था, क्योंकि उनके खिलाफ मुंबई में भी आरोप थे, जिनमें उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था.

इसके बाद जून में ठाकुर, बिश्नोई व एक और आरोपी को मुंबई की सत्र अदालत द्वारा मामले में जमानत दे दी गई थी. जिसके बाद मामले के तीन अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी. मतलब कि मामले के सभी छह आरोपी तब से जमानत पर बाहर हैं.

गौरतलब है कि जुलाई 2021 में दिल्ली पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज की थी और यह आरोप लगाया था कि इंटरनेट के एक मंच ‘गिटहब’ पर ‘सुल्ली डील ऑफ द डे’ नाम का एक प्रोग्राम तैयार किया गया, जहां कई मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें उनकी सहमति के बगैर कथित तौर पर ऑनलाइन नीलामी के लिए अपलोड कर दी गईं.

बाद में इस साल जनवरी में दिल्ली पुलिस ने ‘बुल्ली बाई’ ऐप के सिलसिले में एक और एफआईआर दर्ज की और आरोप लगाया गया कि ऐप की सामग्री का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं का अपमान करना था.

बहरहाल, वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव शर्मा के जरिये दायर याचिका में आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर ने कहा कि सुल्ली डील्स ऐप के सिलसिले में एक ही घटना को लेकर आरोपी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में कई एफआईआर और शिकायतें दर्ज की गई हैं.

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में दर्ज की गईं एफआईआर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 और 156 के दायरे से बाहर हैं तथा यह मामला विभिन्न जांच एजेंसियों की जांच की वैधानिक शक्तियों के दुरुपयोग को प्रदर्शित करता है.

इसमें कहा गया है कि दिल्ली में जुलाई 2021 में दर्ज की गई पहली एफआईआर को मुख्य एफआईआर माना जाए और बाद की एफआईआर रद्द की जा सकती हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)