राजस्थान सरकार की वेबसाइट पर कहा गया, नये अध्यादेश में भ्रष्ट लोकसेवकों को कोई संरक्षण नहीं, यह संशोधन झूठे मुक़दमों पर अंकुश लगाने के लिए हैं.
नई दिल्ली: विपक्ष और मीडिया संगठनों के विरोध में बावजूद राजस्थान सरकार ने सोमवार को वह विधेयक पेश कर दिया जिसमें किसी भी लोकसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक किया गया है.
राजस्थान सरकार ने दंड विधियां राजस्थान संशोधन विधेयक, 2017 सदन में पेश किया. राजस्थान सरकार ने पिछले महीने आपराधिक कानून राजस्थान संशोधन अध्यादेश, 2017 जारी किया था जिसमें राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी कार्रवाई को लेकर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जांच से उन्हें संरक्षण देने की बात की गई है. यह विधेयक बिना अनुमति के ऐसे मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाता है.
इस बीच राज्य सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर इस बारे में सफाई भी पेश की गई है. वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम राज्य सरकार, नये अध्यादेश में भ्रष्ट लोकसेवकों को कोई संरक्षण नहीं.’
यह लेख कहता है, ‘राज्य सरकार द्वारा प्रख्यापित दंड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की राज्य सरकार की इच्छा शक्ति कमजोर हो रही हो. जीरो टॉलरेंस की अपनी नीति पर कायम रहते हुए सरकार ने कहीं भी भ्रष्ट लोकसेवकों को संरक्षण देने की इस अध्यादेश में बात नहीं कही है.’
राज्य सरकार की दलील है कि ‘दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) एवं 190 (1) में इस प्रकार के संशोधन करने वाला राजस्थान पहला राज्य नहीं है, इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा 23 दिसंबर, 2015 को इसी आशय का संशोधन पारित कर चुकी है. जिसके पिछे सिर्फ और सिर्फ एक ही मंशा है कि धारा 156(3) का कोई भी व्यक्ति गलत इस्तेमाल कर किसी भी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक की छवि खराब न कर सके.’
झूठे मुकदमों के जरिये लोकसेवकों को परेशान या बदनाम करने का हवाला देते हुए कहा गया है कि, ‘क्योंकि धारा 156 (3) में अदालत के माध्यम से पुलिस थानों में अधिकतर छवि खराब करने, नीचा दिखाने और व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण किसी भी प्रतिष्ठित और बड़े से बड़े लोकसेवक के खिलाफ मुकदमें दर्ज करवा दिए जाते हैं और मीडिया में उनके खिलाफ खबर छप जाती हैं. इससे लोकसेवक की छवि तो धूमिल हो ही जाती है और उसे मानसिक संताप तथा झूठी बदनामी का सामना भी करना पड़ता है. बाद में ऎसे अधिकांश प्रकरण झूठे पाये जाते हैं और उनमें पुलिस एफआर लगाती है. इसलिए यह संशोधन ऐसे झूठे मुकदमों पर अंकुश लगाने के लिए किए गए हैं ताकि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोकसेवक अपने कर्तव्यों का निर्वहन बिना किसी मानसिक संताप के कर सकें और उन्हें झूठी बदनामी का शिकार नहीं होना पड़े.’
उदाहरण के तौर पर लेख में बताया गया है कि ‘2013 से 2017 के बीच जितने भी मुकदमे 156(3) में दर्ज हुए, उनमें से करीब 73 प्रतिशत मुकदमों में पुलिस ने एफआर लगाई. यानि इस अवधि में इन करीब 73 प्रतिशत लोगों को झूठी बदनामी का सामना करना पड़ा. उन्हें दोषी नहीं होते हुए भी न केवल मानसिक संताप झेलना पड़ा बल्कि न्यायालय और कार्यपालिका का समय भी जाया हुआ.
राज्य सरकार का कहना है कि ‘इन संशोधनों का अर्थ कतई ये नहीं है कि किसी भी लोकसेवक के खिलाफ अदालत के माध्यम से पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज होगा ही नहीं. इसके लिए 180 दिन के अंदर मंजूरी प्राधिकारी को किसी लोकसेवक के खिलाफ जांच कर सुनिश्चित करना होगा कि मुकदमा दर्ज होने योग्य है या नहीं. यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो इसकी स्वीकृति दी जाएगी और मुकदमा दर्ज कर कानून सम्मत कार्यवाही होगी.’
सरकार की तरफ से कहा गया है, ‘अब तक यही होता आया है कि मुकदमा झूठा हो या सच्चा, मुकदमा दर्ज होते ही वह मीडिया के लिए बड़ी खबर बन जाता है और निर्दोष होते हुए भी संबंधित लोकसेवक को सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ता है. उसका नाम, उसका फोटो, और उसके परिवार के बारे में जानकारी तक प्रकाशित हो जाती है और उसकी मान-मर्यादा को, जो ठेस पहुंचती है, उसे वह जीवनभर नहीं भूल पाता. भले ही बाद में प्रकरण झूठा निकल जाए. अब तक जितने भी ऐसे प्रकरण दर्ज हुए हैं उनमें ज्यादातर बाद में झूठे ही निकले हैं. संशोधनों के बाद भी भ्रष्ट लोकसेवक कानून के दायरे से बाहर नहीं हो पाएगा. क्योंकि अगर आरोपों में सच्चाई पाई गई तो उसके खिलाफ हर हाल में कानूनी कार्यवाही की जाएगी.’
इसके समर्थन में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी का भी हवाला दिया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि ‘सिस्टम में तभी सुधार हो सकता है जब ईमानदार अधिकारी या लोकसेवक को संरक्षण मिले तथा भ्रष्ट को यह महसूस कराया जा सके कि वो कानून से ऊपर नहीं है.’ सुप्रीम कोर्ट के हवाले से सरकार ने यह माना है कि ‘ईमानदार लोकसेवक को संरक्षण मिलना न केवल उसके हितों की रक्षा के लिए बल्कि समाज हित में भी जरूरी है.’
इसके साथ ही इस लेख में राज्य में दर्ज मामलों के आंकड़े देते हुए कहा गया है कि ‘राजस्थान उन चुनिंदा राज्यों में है, जहां पिछले साढ़े तीन साल में एसीबी ने 1158 केस रजिस्टर किए हैं. इनमें 818 लोकसेवक तो ट्रैप हुए हैं जबकि आय से अधिक संपत्ति के 51 एवं पद के दुरुपयोग के 289 केस शामिल हैं. राज्य सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 में किसी तरह का संशोधन नहीं किया है.’
मीडिया पर अंकुश लगाने का विचार नहीं: सरकार
विधानसभा में सोमवार को पेश दंड विधियां राजस्थान संशोधन विधेयक, 2017 के चौतरफा विरोध पर राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने कहा कि इस विधयेक के माध्यम से सरकार की मंशा मीडिया पर अंकुश लगाने की नहीं है.
राठौड़ और परनामी ने राजस्थान विधानसभा परिसर में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार यह विधेयक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लाई है, कोई भ्रष्टाचारी इसके चंगुल से नहीं छूटेगा.
संसदीय कार्य मंत्री ने कहा कि विधेयक सदन में रखा गया है. चर्चा के दौरान विपक्षी अपनी बात कहें, सरकार जरूर जवाब देगी. परनामी ने कहा कि सदन में विधेयक पर चर्चा होने के बाद स्थिति साफ हो जाएगी. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मीडिया पर अंकुश लगाने का विचार नहीं है, लेकिन किसी व्यक्ति को मीडिया ट्रायल में दोषी ठहरा देना भी उचित नहीं है. उन्होंने कहा सदन में चर्चा होने दीजिए सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा.