भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन के ख़िलाफ़ 2018 में एक महिला ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे पुलिस ने आधारहीन बताते हुए केस बंद कर दिया था. महिला इसके ख़िलाफ़ निचली अदालत में गईं, जिसने हुसैन पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. हुसैन ने इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस को भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने में ‘पूरी तरह अनिच्छा’ दिखाने को लेकर फटकार लगाई है और उसे निर्देश दिए हैं कि वह तत्काल एफआईआर दर्ज करे और तीन महीनों के भीतर उनके खिलाफ लगे बलात्कार के आरोपों की जांच पूरी करे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, निचली अदालत के 2018 के आदेश को बरकरार रखते हुए, जिसमें पुलिस को हुसैन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था, जस्टिस आशा मेनन ने कहा कि 2018 में पुलिस कमिश्नर को पीड़िता द्वारा भेजी गई शिकायत स्पष्ट रूप से बलात्कार के संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है और शिकायत थाना प्रभारी को भेजी गई तो कानून के तहत अधिकारी एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य था.
17 अगस्त को दिए आदेश में अदालत ने कहा, ‘लेकिन वर्तमान मामले में निस्संदेह 21 जून 2018 को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराने तक महरौली के पुलिस थाना प्रभारी (एसएचओ) ने कुछ नहीं किया. वास्तव में, इस अदालत के समक्ष दायर की गई स्थिति रिपोर्ट कमिश्नर कार्यालय से 20 जून 2018 को महरौली पुलिस थाने में प्राप्त हुई उक्त शिकायत का उल्लेख करती है. अग्रेषित (फॉरवर्ड) शिकायत की प्राप्ति पर एफआईआर दर्ज न करने को लेकर पुलिस को काफी-कुछ स्पष्टीकरण देना है.’
अदालत ने आगे कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए निचली अदालत द्वारा जारी निर्देश को ‘विधि विरुद्ध’ नहीं कहा जा सकता है, इसलिए हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.
जस्टिस मेनन ने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट में चार मौकों पर अभियोजक के बयान की रिकॉर्डिंग का जिक्र है, लेकिन ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई.
आदेश में कहा गया है, ‘एफआईआर केवल व्यवस्था को काम पर लगाती है. यह शिकायत किए गए अपराध की जांच के लिए एक आधार है. जांच के बाद ही पुलिस इस नतीजे पर पहुंच सकती है कि अपराध किया गया या नहीं और अगर किया गया तो किसके द्वारा?’
अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए हुसैन ने तर्क दिया था कि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने के कारणों का खुलासा नहीं किया था और पुलिस द्वारा की गई जांच में महिला के मामले को पूरी तरह झूठा बताया गया था.
अदालत के समक्ष उनके वकील ने तर्क दिया कि हुसैन रात 9.15 के बाद अपने घर से कहीं नहीं गए थे और इसलिए रात 10.30 बजे छतरपुर में नहीं हो सकते थे, जैसा कि महिला ने आरोप लगाया है.
अदालत को बताया गया कि पीड़िता के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) से खुलासा हुआ कि वह रात 10.45 तक द्वारका में रही. पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में निचली अदालत को बताया था कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप पुष्ट नहीं हो सके.
इस तर्क को खारिज करते हुए कि पुलिस के जवाब को निचली अदालत द्वारा सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत एक रिपोर्ट माना जाना चाहिए, जस्टिस मेनन ने कहा कि उससे पहले एफआईआर जरूरी थी और ऐसी जांच के निष्कर्षों के आधार पर पुलिस अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप सकती थी.
अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट को सौंपी जाने वाली ऐसी रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए वह बाध्य नहीं हैं और तय कर सकते हैं कि मामले का संज्ञान लेकर उसे आगे बढ़ाना है या नहीं.
अदालत ने साथ ही कहा कि अगर निचली अदालत जवाब को रद्दीकरण रिपोर्ट के रूप में मानता है, तो भी इसे पीड़िता को नोटिस जारी करना होगा और विरोध याचिका दायर करने का अधिकार देना होगा.
बता दें कि जून 2018 में महिला ने हुसैन पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए निचली अदालत का रुख किया था. महिला ने आरोप लगाया था कि अप्रैल में हुसैन ने उन्हें अपने फॉर्म हाउस बुलाया था और कोल्ड ड्रिंक में नशा मिलाकर उनके साथ बलात्कार किया.
इस बीच, हुसैन ने दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
BJP Leader Syed Shahnawaz Hussain has moved the Supreme Court against yesterday’s Delhi High Court order directing a registration of FIR against him in an alleged 2018 rape case.
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लाइव लॉ के मुताबिक, हुसैन की ओर से अदालत में पेश वकील ने कहा कि अगर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाती है तो इस याचिका का कोई अर्थ नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि हुसैन का राजनीति में 30 सालों से लंबा करिअर है और एक एफआईआर दर्ज होने से उनकी छवि ख़राब होगी.
मुख्य न्यायाधीश रमना (सीजेआई) अगले हफ्ते मामले पर सुनवाई के लिए तैयार हो गए हैं.