एल्गार परिषद मामला: कार्यकर्ता अरुण फरेरा ने डिफॉल्ट ज़मानत के लिए अदालत का रुख़ किया

एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी अरुण फरेरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई अपनी याचिका में कहा है कि उनका मामला अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के समान ही है, जिन्हें अदालत द्वारा दिसंबर 2021 में डिफॉल्ट ज़मानत दी गई थी.

अरुण फरेरा. (फोटो साभार: ट्विटर)

एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी अरुण फरेरा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर की गई अपनी याचिका में कहा है कि उनका मामला अधिवक्ता सुधा भारद्वाज के समान ही है, जिन्हें अदालत द्वारा दिसंबर 2021 में डिफॉल्ट ज़मानत दी गई थी.

अरुण फरेरा. (फोटो साभार: ट्विटर)

मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपियों में से एक सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा ने सह-आरोपी सुधा भारद्वाज की तरह ही अपने लिए भी डिफॉल्ट जमानत की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुधा भारद्वाज को दिसंबर 2021 में डिफॉल्ट जमानत मिली थी.

निर्धारित समय के भीतर जांच पूरी नहीं होने या आरोप-पत्र दाखिल नहीं करने की स्थिति में आरोपी डिफॉल्ट जमानत मांगने का पात्र हो जाता है.

फरेरा की याचिका शुक्रवार को जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस शर्मिला देशमुख की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन जस्टिस डेरे ने बिना कोई कारण बताए खुद को सुनवाई से अलग कर लिया. अब यह याचिका दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की जाएगी.

अधिवक्ता सत्यनारायणन आर. के माध्यम से दायर अपनी याचिका में कार्यकर्ता ने कहा कि उनका मामला भारद्वाज के समान ही है, जिन्हें हाईकोर्ट द्वारा डिफॉल्ट जमानत दी गई थी.

याचिका में कहा गया है, ‘एकमात्र विशिष्ट कारक यह है कि याचिकाकर्ता (फरेरा) ने 94वें दिन डिफॉल्ट जमानत की अर्जी (निचली अदालत में) दायर की, जबकि सह-आरोपी सुधा भारद्वाज ने इसे 91वें दिन दायर की थी.’

हाईकोर्ट ने भारद्वाज को डिफॉल्ट जमानत देते हुए कहा था कि पुणे सत्र अदालत ने पुणे पुलिस को आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की अनिवार्य अवधि समाप्त होने के बाद कुछ और मोहलत दी थी, जबकि सत्र अदालत के पास इसका अधिकार क्षेत्र नहीं था.

याचिका में कहा गया है, ‘इस निर्णय का लाभ इस याचिकाकर्ता (फरेरा) को भी दिये जाने आवश्यकता है. हाईकोर्ट ने दिसंबर 2021 में अन्य आठ आरोपियों को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने समय पर डिफॉल्ट जमानत लेने के अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया था.

संबंधित निर्णय में कहा गया था कि भारद्वाज ने पुणे की अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप-पत्र दाखिल करने की 90 दिनों की अवधि समाप्त होने के साथ ही डिफॉल्ट जमानत की मांग की गई थी, जबकि इन आठ आरोपियों ने अपनी अर्जियां दाखिल करने में देरी की थी.

फरेरा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और प्रतिबंधित आतंकी संगठन भाकपा (माओवादी) का सदस्य होने और माओवादी विचारधारा का प्रचार करने के लिए राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

उनकी याचिका के अनुसार, सितंबर 2018 में फरेरा ने पुणे की विशेष अदालत के समक्ष डिफॉल्ट जमानत की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था.

जून 2019 में फरेरा और आठ अन्य आरोपियों द्वारा मामले में डिफॉल्ट जमानत के लिए एक साथ आवेदन इस आधार पर दायर किया गया था कि पुणे की विशेष अदालत के पास पुणे पुलिस द्वारा दायर आरोप-पत्र का संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है, जो शुरू में मामले की जांच कर रही थी.

सितंबर 2019 में इन आठ आरोपियों की अर्जी को कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद नौ आरोपियों ने बंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. दिसंबर 2021 में हाईकोर्ट ने केवल भारद्वाज को डिफाल्ट जमानत दी, लेकिन अन्य की दलीलों को खारिज कर दिया.

इसके बाद आरोपियों ने एक समीक्षा याचिका दायर की, जिसे इस साल हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया. इसके बाद फरेरा ने डिफॉल्ट जमानत के लिए याचिका दायर की है.

संबंधित मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित करने से पहले मामले की जांच करने वाली पुणे पुलिस ने दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था.

मालूम हो कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. मामले के एक आरोपी फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत के दौरान पिछले साल मुंबई के एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी, जबकि तेलुगू कवि वरवरा राव चिकित्सकीय जमानत पर जेल से बाहर हैं. सुधा भारद्वाज को भी नियमित जमानत पर रिहा किया गया है. 13 अन्य आरोपी विभिन्न जेलों में बंद हैं.

मालूम हो कि 2018 में शुरू हुए एल्गार परिषद मामले की जांच में कई मोड़ आ चुके हैं, जहां हर चार्जशीट में नए-नए दावे किए गए. मामले की शुरुआत हुई इस दावे से कि ‘अर्बन नक्सल’ का समूह ‘राजीव गांधी की हत्या’ की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बना रहा है.

यह विस्फोटक दावा पुणे पुलिस ने किया था, जिसके फौरन बाद 6 जून 2018 को पांच लोगों- रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता सुधीर धावले, महेश राउत और शिक्षाविद शोमा सेन को गिरफ्तार किया गया था.

इसके बाद अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्नोन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq bandarqq dominoqq pkv games slot pulsa pkv games pkv games bandarqq bandarqq dominoqq dominoqq bandarqq pkv games dominoqq