अमेरिकी धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने बिलक़ीस बानो के दोषियों की रिहाई को न्याय का मज़ाक बताया

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की रिहाई पर अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कहा है कि यह क़दम न्याय का उपहास है और सज़ा से मुक्ति के उस पैटर्न का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी लाभ उठाते हैं.

Members of various women's organisations in Delhi raise slogans during a protest against the remission of sentence given to the convicts of Bilkis Banos case by the BJP-led Gujarat government, at Jantar Mantar in New Delhi, Thursday, Aug. 18, 2022. Photo: PTI/Kamal Singh

साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलक़ीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की रिहाई पर अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने कहा है कि यह क़दम न्याय का उपहास है और सज़ा से मुक्ति के उस पैटर्न का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी लाभ उठाते हैं.

बिलक़ीस बानो के दोषियों की सज़ा माफ़ी के ख़िलाफ़ दिल्ली के जंतर-मंतर पर 18 अगस्त 2022 को विभिन्न महिला संगठनों की सदस्यों ने प्रदर्शन किया था. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो का बलात्कार करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की ‘अनुचित’ रिहाई की शुक्रवार (19 अगस्त) को कड़ी निंदा की.

आयोग के उपाध्यक्ष अब्राहम कपूर ने एक बयान में कहा, ‘2002 के गुजरात दंगों के दौरान एक गर्भवती महिला के बलात्कार और मुस्लिमों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे 11 लोगों की जल्द और अनुचित रिहाई की यूएससीआईआरएफ कड़ी निंदा करता है.’

आयोग के आयुक्त स्टीफन श्नेक ने कहा कि रिहाई ‘न्याय का उपहास’ है, और ‘सजा से मुक्ति के उस पैटर्न’ का हिस्सा है, जिसका भारत में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा के आरोपी लाभ उठाते हैं.

श्नेक ने कहा, ‘2002 के गुजरात दंगों में शारीरिक और यौन हिंसा के अपराधियों को उनके कृत्य के लिए जिम्मेदार ठहराने में विफलता न्याय का मजाक है. यह भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में शामिल होने वाले लोगों के लिए ‘दंड मुक्ति के पैटर्न’ का हिस्सा है.’

2008 में 11 पुरुष अपराध के दोषी पाए गए थे और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने शिकायत की थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट करने वाली गुजरात पुलिस आरोपियों को बचा रही है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामला सीबीआई को सौंप दिया था.

शीर्ष अदालत एनएचआरसी के उस अनुरोध पर भी सहमत हो गई थी, जिसमें उसने मामले की सुनवाई महाराष्ट्र में कराने के लिए कहा था, क्योंकि गुजरात सरकार में निष्पक्ष सुनवाई होना सुनिश्चित नहीं था.

15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर गुजरात की भाजपा सरकार के फैसले के तहत इन 11 दोषियों को रिहा करने का आदेश जारी किया गया था और 16 अगस्त को उन्हें गोधरा उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.

रिहाई की सिफारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों को ‘अच्छे संस्कारों’ वाला ‘ब्राह्मण’ बताया था.

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया जा रहा है. इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की है.

दोषियों की रिहाई के बाद बिलकीस बानो ने कहा था, ‘15 अगस्त 2022 को मुझ पर जैसे 20 सालों का सदमा फिर से कहर की तरह टूट पड़ा, जब मैंने सुना कि मेरे परिवार और मेरी जिंदगी बर्बाद करने वाले, मुझसे मेरी तीन साल की बच्ची छीनने वाले 11 दोषियों को रिहा कर दिया गया है और वो आजाद घूम रहे हैं.’

उन्होंने कहा था, ‘यह सुनने के बाद मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैं सुन्न और खामोश-सी हो गई हूं.’ उन्होंने कहा था कि वह सिर्फ इतना ही कह सकती हैं, ‘क्या एक औरत को दिए गए न्याय का अंत यही है?’

बिलकीस ने आगे कहा था, ‘मैंने इस देश की सबसे बड़ी अदालत पर भरोसा किया. मैंने व्यवस्था पर भरोसा किया और मैं धीरे-धीरे अपने सदमे के साथ जीना सीख रही थी. दोषियों की रिहाई ने मेरी शांति छीन ली है और न्याय-व्यवस्था पर से मेरा भरोसा डिग गया है.’

उन्होंने जोड़ा था, ‘मेरा दुख और डगमगाता भरोसा सिर्फ अपने लिए नहीं है, बल्कि उन सब औरतों के लिए है, जो इंसाफ की तलब में आज अदालतों में लड़ रही हैं.’

गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे. दंगों से बचने के लिए बिलकीस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं.

तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकीस के परिवार पर हमला किया था. यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे.

बिलकीस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया था.

मामले की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया.

21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी.

इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था. अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकीस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास देने का आदेश दिया था.