भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन के ख़िलाफ़ 2018 में एक महिला ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी, जिसे पुलिस ने आधारहीन बताते हुए केस बंद कर दिया था. महिला इसके ख़िलाफ़ निचली अदालत में गईं, जिसने हुसैन पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने भी इसी आदेश को बरक़रार रखा था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन के खिलाफ 2018 के कथित बलात्कार मामले के संबंध में सभी कार्यवाही पर रोक लगा दी.
बता दें कि हुसैन ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस यूयू ललित ने नोटिस जारी करते हुए कहा, ‘प्रथमदृष्टया हमारा मत है कि मामले पर विचार करने की जरूरत है, हम नोटिस जारी करेंगे और सारी कार्यवाही पर रोक लगाएंगे.’
मामले पर अब अगले महीने सुनवाई होगी. इस बीच, शीर्ष अदालत ने शिकायतकर्ता, जिन्हें आरोपी के कहने पर कथित तौर से डराया-धमकाया गया है, को पुलिस से सुरक्षा मांगने की स्वतंत्रता दी है जो सुरक्षा देने के लिए बाध्य होगी.
जस्टिस एस. रविंद्र भट और सुधांशु धूलिया भी पीठ में शामिल थे, जिसने शिकायतकर्ता पक्ष को उनकी आपत्तियां दर्ज कराने की स्वतंत्रता दी है.
मामला पिछले हफ्ते प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष त्वरित सुनवाई के लिए आया था.
हुसैन की ओर से प्रस्तुत हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस धारणा पर फैसला दिया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच होती है, यह गलत कानून लागू करना है.
रोहतगी ने कहा, ‘इस तरह तो कोई भी उच्च पदाधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाकर उनकी छवि खराब कर सकता है.’ साथ ही, उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट में जांच करने तक के लिए पर्याप्त आधार नहीं मिला.
उन्होंने कहा कि सभी आरोप हुसैन के भाई के खिलाफ थे. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उन्होंने (हुसैन के भाई ने) 2013 में शादी का झांसा देकर उनके साथ बलात्कार किया. हालांकि, शिकायत 4 साल बाद 2018 में दर्ज हुई. हुसैन के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने शिकायतकर्ता को उनके भाई के साथ मसले का हल ढूंढने के लिए अपने फार्म हाउस बुलाया था. हालांकि, उन्होंने पीड़िता को एक पेय पदार्थ (ड्रिंक) दिया, जिससे वह बेहोश हो गईं, जिसके बाद हुसैन ने उनका लाभ उठाया.
रोहतगी ने कहा, ‘शिकायत में यौन हमले की बात नहीं है.’
बता दें कि भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन के खिलाफ जून 2018 में आईपीसी की धारा 376, 328, 120बी और 506 के तहत एक शिकायत दर्ज कराई गई थी.
बाद में, शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत एक याचिका दायर करके पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देने की मांग की थी. 4 जुलाई 2018 को शहर पुलिस ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष एक स्थिति रिपोर्ट (एटीएस) दी थी. इसमें जांच के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया था कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों का कोई पुख्ता आधार नहीं था.
इस रिपोर्ट के बावजूद भी मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे. यह आदेश विशेष जज द्वारा बरकरार रखा गया, जिन्होंने पाया कि 2013 के आपराधिक संशोधन अधिनियम ने यह अनिवार्य कर दिया है कि बलात्कार के मामलों में पुलिस पीड़िता का बयान दर्ज करे. इसके अलावा, एफआईआर दर्ज करने के संबंध में कहा था कि जो जांच की गई वह प्राथमिक जांच थी और मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने एटीआर को रद्दीकरण रिपोर्ट न मानकर सही किया.
विशेष न्यायाधीश के इस आदेश के खिलाफ अपील की गई, जिस पर फैसला सुनाते हुए बीते सप्ताह दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि 2018 में पुलिस कमिश्नर को पीड़िता द्वारा भेजी गई शिकायत स्पष्ट रूप से बलात्कार के संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है और शिकायत थाना प्रभारी को भेजी गई तो कानून के तहत अधिकारी एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य था.
17 अगस्त को दिए आदेश में अदालत ने कहा, ‘लेकिन वर्तमान मामले में निस्संदेह 21 जून 2018 को मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज कराने तक महरौली के पुलिस थाना प्रभारी (एसएचओ) ने कुछ नहीं किया. वास्तव में, इस अदालत के समक्ष दायर की गई स्थिति रिपोर्ट कमिश्नर कार्यालय से 20 जून 2018 को महरौली पुलिस थाने में प्राप्त हुई उक्त शिकायत का उल्लेख करती है. अग्रेषित (फॉरवर्ड) शिकायत की प्राप्ति पर एफआईआर दर्ज न करने को लेकर पुलिस को काफी-कुछ स्पष्टीकरण देना है.’
अदालत ने आगे कहा कि एफआईआर दर्ज करने के लिए निचली अदालत द्वारा जारी निर्देश को ‘विधि विरुद्ध’ नहीं कहा जा सकता है, इसलिए हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है.
साथ ही कहा कि पुलिस द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट में चार मौकों पर अभियोजक के बयान की रिकॉर्डिंग का जिक्र है, लेकिन ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि एफआईआर क्यों दर्ज नहीं की गई.
आदेश में कहा गया है, ‘एफआईआर केवल व्यवस्था को काम पर लगाती है. यह शिकायत किए गए अपराध की जांच के लिए एक आधार है. जांच के बाद ही पुलिस इस नतीजे पर पहुंच सकती है कि अपराध किया गया या नहीं और अगर किया गया तो किसके द्वारा?’