सरकार ने देश को अंधेरे में रखा, एमएसपी को लेकर समिति नहीं बनाना चाहती: राकेश टिकैत

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार पर अपने उन उद्योगपति दोस्तों की मदद करने के लिए एमएसपी पर क़ानून नहीं बनाने का आरोप लगाया, जो कम दरों पर किसानों से फसल ख़रीदते हैं और उच्च कीमतों पर प्रसंस्कृत उत्पाद बेचते हैं.

राकेश टिकैत. (फोटो: पीटीआई)

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार पर अपने उन उद्योगपति दोस्तों की मदद करने के लिए एमएसपी पर क़ानून नहीं बनाने का आरोप लगाया, जो कम दरों पर किसानों से फसल ख़रीदते हैं और उच्च कीमतों पर प्रसंस्कृत उत्पाद बेचते हैं.

राकेश टिकैत. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: किसान नेता राकेश टिकैत ने सोमवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर समिति नहीं बनाना चाहती और इस मामले में देश को अंधेरे में रखा जा रहा है.

उन्होंने केंद्र सरकार पर अपने उन उद्योगपति दोस्तों की मदद करने के लिए एमएसपी पर कानून नहीं बनाने का आरोप लगाया, जो कम दरों पर किसानों से फसल खरीदते हैं और उच्च कीमतों पर प्रसंस्कृत उत्पाद बेचते हैं.

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता टिकैत ने दिल्ली में कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 में हुए किसानों के विरोध प्रदर्शन को याद करते हुए कहा कि किसान समूह और केंद्र सरकार के बीच केवल डिजिटल समझौता और दस्तावेजों का आदान-प्रदान हुआ था.

उन्होंने दिल्ली में गांधी पीस फाउंडेशन के एक कार्यक्रम में दावा किया कि कागजात में कहा गया है कि भविष्य की नीति के लिए किसानों से सलाह ली जाएगी, लेकिन कोई परामर्श नहीं हुआ और देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध के बावजूद विधेयक लाए गए.

टिकैत ने कहा, ‘दूसरा मुद्दा फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का है. सरकार ने यह कहकर देश को लंबे समय तक अंधेरे में रखा कि वह एक समिति बना रही है, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा (समिति के सदस्यों के) नाम नहीं दे रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘जब समिति बनाने का समय था, तब उन्होंने कहा कि हमें नाम दें और हम समिति की घोषणा करेंगे. लेकिन वह एमएसपी के लिए समिति नहीं थी! इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि सरकार एमएसपी के लिए समिति नहीं बनाना चाहती.’

गौरतलब है कि बीते 19 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरकार की समिति को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि निरस्त किए जा चुके कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले ‘तथाकथित किसान नेता’ इसके सदस्य हैं.

एसकेएम ने अपने बयान में आरोप लगाया था कि सरकार ने अपने पांच वफादारों को समिति में शामिल किया है, जिन्होंने खुले तौर पर तीन किसान विरोधी कानूनों की वकालत की थी और ये सभी या तो सीधे भाजपा-आरएसएस से जुड़े हैं या उनकी नीतियों का समर्थन करते हैं.

दिल्ली की तीन सीमाओं पर किसानों के एक साल तक प्रदर्शन के बाद नवंबर 2021 में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एमएसपी पर कानूनी गारंटी के लिए किसानों की मांग पर चर्चा करने के लिए एक समिति गठित करने का वादा किया था.

कृषि मंत्रालय ने इस संबंध में समिति की घोषणा करते हुए एक गजट अधिसूचना जारी की थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, टिकैत ने सोमवार को मांग की कि एमएसपी सिस्टम पूरे देश में लागू किया जाए.

उन्होंने कहा, ‘सरकार कागज पर कुछ दिखाती है और कुछ अन्य दरों पर फसलों को खरीदती है. केंद्र सरकार के कॉरपोरेट मित्र फसल को सस्ते दामों पर खरीदते हैं और प्रसंस्करण के बाद उच्च कीमत पर बेचते हैं, इसलिए सरकार एमएसपी पर कानून नहीं बनाना चाहती है.’

हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के अपने दौरे का हवाला देते हुए उन्होंने किसानों, सब्जी और फल-उत्पादकों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला, जिसमें मांग की गई थी कि सब्जियों, फलों और डेयरी उत्पादों पर भी एमएसपी निर्धारित किया जाए, ताकि किसानों के शोषण को रोका जा सके.

उन्होंने कहा कि बिहार में ‘मंडी व्यवस्था’ 17 साल पहले बंद हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य के बहुत से किसान और श्रमिक अपनी आजीविका कमाने के लिए अन्य स्थानों पर पलायन कर रहे हैं.

टिकैत ने कहा, ‘बिहार के लोग जो अब मजदूर हैं, उनके नाम पर हम में से कई लोगों की तुलना में अधिक जमीन थी, लेकिन उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा, क्योंकि उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिला. उन्होंने अपने परिवार, घरों और खेतों को छोड़ दिया और अब एक कमरे में रहते हैं, क्योंकि वे कारखानों में काम करते हैं.’

बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि बिहार पहला राज्य बन गया था, जहां मंडी अधिनियम लागू किया गया था और वहां मंडियों को फिर से शुरू करने के लिए आंदोलन की तैयारी चल रही है.

टिकैत ने कहा, ‘जब यह सब योजना बनाई जा रही थी, बिहार में एक नई सरकार का गठन किया गया. हम नई सरकार से भी मिले और उनसे कहा कि आप इसे (मंडी एक्ट) जितनी जल्दी लागू कर दें, उतना अच्छा होगा.’

उन्होंने कहा, ‘नई सरकार के साथ हमारी बैठक में हमने उनसे कहा कि सबसे पहले उन्हें मंडियों को फिर से शुरू करना चाहिए. छह (सितंबर) को हमारी एक बैठक है, जिसमें बिहार में मंडी प्रणाली के पुनरुद्धार पर विचार-विमर्श किया जाएगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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