योगी आदित्यनाथ से जुड़े नफ़रती भाषण मामले में शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा

वर्ष 2007 में दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ गोरखपुर के एक थाने में एफ़आईआर दर्ज की गई थी. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुक़दमा चलाने से इनकार के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी के ख़िलाफ़ याचिका को ख़ारिज कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक)

वर्ष 2007 में दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ गोरखपुर के एक थाने में एफ़आईआर दर्ज की गई थी. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुक़दमा चलाने से इनकार के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी के ख़िलाफ़ याचिका को ख़ारिज कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

योगी आदित्यनाथ. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वर्ष 2007 के कथित नफरत फैलाने वाले भाषण (Hate Speech) से संबंधित उस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शामिल हैं.

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ सुनवाई कर रही है.

याचिकाकर्ता परवेज परवाज ने यूपी सरकार के 3 मई, 2017 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि योगी तब तक मुख्यमंत्री बन चुके थे और क्या वह मंजूरी देने की प्रक्रिया में भाग ले सकते थे?

हालांकि हाईकोर्ट ने 22 फरवरी, 2018 को जांच में कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि या मंजूरी देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार ने योगी आदित्यनाथ पर 2007 में गोरखपुर और आस-पास के जिलों में मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा भड़काने के आरोप में मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.

याचिकाकर्ता परवाज की ओर से पेश अधिवक्ता फुजैल अहमद अयूबी ने कहा था कि हाईकोर्ट ने इस सवाल पर ध्यान नहीं दिया था, ‘क्या राज्य किसी आपराधिक मामले में प्रस्तावित आरोपी के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 196 के तहत आदेश पारित कर सकता है, जो इस बीच मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाते हैं और संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत प्रदत्त व्यवस्था के अनुसार कार्यकारी प्रमुख हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, धारा 196 कहती है कि कोई भी अदालत धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना और सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिकूल कार्य करना) या 295ए (जान-बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, जिसका उद्देश्य केंद्र या राज्य सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके आहत करना है) के तहत अपराध का संज्ञान नहीं लेगी.

सीजेआई ने रेखांकित किया कि एक क्लोजर रिपोर्ट पहले ही दायर की जा चुकी है और पूछा है कि इसके बाद मंजूरी का कोई सवाल कैसे हो सकता है.

अयूबी ने कहा कि केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) ने भाषण वाली डीवीडी की जांच की और क्राइम ब्रांच द्वारा जांच में प्रथमदृष्टया अपराध पाया गया और अभियोजन की मंजूरी मांगी गई, जिसे अस्वीकार कर दिया गया.

उत्तर प्रदेश की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि मामले में कुछ भी नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि (संबंधित भाषण की) डीवीडी सीएफएसएल को भेजा गया था और पता लगा कि इसमें छेड़छाड़ की गई थी.

रोहतगी ने कहा कि न्यायालय को जुर्माना लगाकर मामले को खरिज कर देना चाहिए. रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2008 में एक टूटी हुई डीवीडी दी थी और फिर पांच साल बाद उन्होंने कथित तौर पर अभद्र भाषा की एक और सीडी दी.

मालूम हो कि दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों को लेकर तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों के खिलाफ गोरखपुर के एक थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी. यह आरोप लगाया था कि आदित्यनाथ द्वारा कथित नफरती भाषण के बाद उस दिन गोरखपुर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं थीं.

मालूम हो कि गोरखपुर की जिला सत्र अदालत ने जुलाई 2020 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा करने वाले 65 वर्षीय कार्यकर्ता परवेज परवाज़ को 2018 के एक गैंगरेप मामले में दोषी ठहराकर उन्हें एक अन्य आरोपी महमूद उर्फ जुम्मन के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

परवेज परवाज ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (घटना के समय गोरखपुर के सांसद) पर 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर रेलवे स्टेशन गेट के सामने भड़काऊ भाषण देने और उसके कारण गोरखपुर व आस-पास के जिलों में बड़े पैमाने पर हिंसा होने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)