जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत गिरफ़्तारी, संपत्ति की कुर्की और ज़ब्ती से संबंधित ईडी की शक्तियों को बरक़रार रखा था. इसकी समीक्षा के लिए दायर कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम की याचिका की सुनवाई में सीजेआई एनवी रमना की पीठ ने माना कि दो मुद्दों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) 2002 के तहत गिरफ्तारी समेत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बरकरार रखने के फैसले की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई करने के लिए गुरुवार को राजी हो गया और उसने इस मामले पर केंद्र से जवाब देने को कहा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई को एक महत्वपूर्ण फैसले में पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की और जब्ती से संबंधित ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) प्रदान नहीं करने सहित प्रथमदृष्टया दो मुद्दों पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
न्यायालय ने कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम की उस अर्जी को बुधवार को स्वीकार लिया था जिसमें उन्होंने पीएमएलए कानून के तहत गिरफ्तारी, जांच और संपत्ति की जब्ती के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बहाल रखने के शीर्ष अदालत के पिछले महीने के फैसले पर पुनर्विचार के लिए खुली अदालत में सुनवाई का अनुरोध किया था.
लाइव लॉ के मुताबिक, पीठ ने कहा, ‘सुनवाई को विस्तार देने की जरूरत नहीं है. हम तीनों (जज) फैसले के दो बिंदुओं पर समीक्षा करने की जरूरत महसूस करते हैं. हम मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के पूरी तरह समर्थन में हैं. देश ऐसे अपराधों को वहन नहीं कर सकता है. इसका उद्देश्य सही है.’
पीठ में दो अन्य जज जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार हैं. यह फैसला सुनाने वाली पिछली पीठ के सदस्य हैं जबकि जस्टिस एएम खानविलकर रिटायर हो चुके हैं, इसलिए उनकी जगह सीजेआई रमना समीक्षा याचिका पर सुनवाई वाली पीठ में शामिल हुए थे.
गौरतलब है कि समीक्षा याचिकाओं पर सामान्य तौर पर चेंबर में विचार किया जाता है. हालांकि, अपवादस्वरूप बुधवार को पीठ ने मामले में खुली सुनवाई की अनुमति दी थी.
केंद्र की ओर से प्रस्तुत हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा क़ानून को भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का मुद्दा बताते हुए याचिका का विरोध किया गया.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हालांकि पूरे ही फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया, लेकिन सीजेआई अपने रुख पर कायम रहे और कहा कि प्रथमदृष्टया यही दो मुद्दे हैं, जिन पर हमने पुनर्विचार का सोचा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, ईसीआईआर के अलावा कोर्ट जिस दूसरे मुद्दे की समीक्षा करेगा, वह बेगुनाही की अवधारणा को बदलना है.
गौरतलब है कि 27 जुलाई के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की प्रति उपलब्ध कराना ‘अनिवार्य नहीं है’ और किसी आरोपी को गिरफ्तार करते समय ईडी द्वारा इसके आधार का खुलासा किया जाना ही पर्याप्त है.
अदालत ने कहा था कि पीएमएलए विशेष कानून है और दीवानी कार्रवाई के साथ-साथ अभियोजन शुरू करने के उद्देश्य से जांच/पड़ताल की जटिलता को देखते हुए किसी मामले में ईसीआईआर उपलब्ध न कराने को गलत नहीं माना जा सकता.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)