सरकार के कुछ दोस्तों को थाली में सजाकर क़र्ज़ दिया जा रहा है: कांग्रेस

कांग्रेस ने अडानी समूह की ऋण स्थिति पर न्यूयॉर्क स्थित क्रेडिट रिसर्च फर्म ‘क्रेडिटसाइट्स’ के विश्लेषण का हवाला देते हुए दावा किया कि सभी प्रमुख अडानी संस्थाओं का कुल ऋण 2,30,000 करोड़ रुपये के क़रीब है. कांग्रेस ने यह जानना चाहा कि कौन बैंकों पर इस तरह के क़र्ज़ देने के लिए दबाव डाल रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था भारी ख़तरे में पड़ गई है.

(फोटो साभार: ट्विटर)

कांग्रेस ने अडानी समूह की ऋण स्थिति पर न्यूयॉर्क स्थित क्रेडिट रिसर्च फर्म ‘क्रेडिटसाइट्स’ के विश्लेषण का हवाला देते हुए दावा किया कि सभी प्रमुख अडानी संस्थाओं का कुल ऋण 2,30,000 करोड़ रुपये के क़रीब है. कांग्रेस ने यह जानना चाहा कि कौन बैंकों पर इस तरह के क़र्ज़ देने के लिए दबाव डाल रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था भारी ख़तरे में पड़ गई है.

(फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि ‘सरकार के कुछ दोस्तों को थाली में सजाकर’ ऋण दिया जा रहा है और यह जानना चाहा कि कौन बैंकों पर इस तरह के कर्ज देने के लिए दबाव डाल रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था भारी खतरे में पड़ गई है.

विपक्षी दल ने अडानी समूह की ऋण स्थिति पर न्यूयॉर्क स्थित क्रेडिट रिसर्च फर्म ‘क्रेडिटसाइट्स’ के विश्लेषण का हवाला देते हुए दावा किया कि सभी प्रमुख अडानी संस्थाओं का कुल सकल ऋण 2,30,000 करोड़ रुपये के करीब है.

कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि कोई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार द्वारा देश पर थोपी गई आर्थिक और वित्तीय स्थिति का विश्लेषण करता है, तो यह मानने का कोई कारण नहीं होगा कि यह एक ‘बुरे सपने’ की तरह है.

उन्होंने कहा, ‘सबसे प्रमुख चिंता सरकार पर कर्ज का बढ़ता बोझ है. 2022-23 के अंत तक केंद्र सरकार का घरेलू और विदेशी कर्ज तथा अन्य देनदारियां बढ़कर 152.17 लाख करोड़ पर पहुंच गई, जबकि 2013-14 के अंत तक यह आंकड़ा 55.9 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह वित्त वर्ष 2023 में प्रति व्यक्ति कर्ज बढ़कर एक लाख 09 हजार रुपये हो चुका है. जबकि (31 मार्च, 2014) में प्रति व्यक्ति कर्ज लगभग 43 हजार रुपये था.’

वल्लभ ने कहा, ‘सरकार के कुछ दोस्तों को थाली में सजाकर’ कर्ज दिया जा रहा है, जिसने राष्ट्रीय ऋण दायित्वों के शीर्ष पर पहुंचने से देश के लिए एक चिंताजनक स्थिति पैदा कर दी है.’

उन्होंने कहा, ‘हाल में न्यूयॉर्क स्थित क्रेडिट रिसर्च फर्म ‘क्रेडिटसाइट्स’ ने अडानी समूह की ऋण स्थिति पर अपना विश्लेषण प्रकाशित किया. इस विश्लेषण से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. सभी प्रमुख अडानी संस्थाओं का कुल सकल ऋण 2,30,000 करोड़ रुपये के करीब है.’

वल्लभ ने रिपोर्ट के हवाले से कहा, ‘पिछले दो वर्षों (अप्रैल 2020 से जून 2022 तक) में अडानी समूह 48 हजार करोड़ का कर्ज ले चुका है, जिसमें से अडानी समूह ने 18,770 करोड़ रुपये केवल एसबीआई से कर्ज के रूप में लिए है.’

उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक महत्वाकांक्षी ऋण-वित्त पोषित विकास योजनाएं अंतत: बड़े पैमाने पर कर्ज के जाल में फंस सकती हैं.

द टेलीग्राफ के मुताबिक, ध्यान देने योग्य अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि क्रेडिटसाइट्स की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से कहती है, ‘गौतम अडानी के सत्तारूढ़ मोदी प्रशासन के साथ भी अच्छे संबंधों का मज़ा भी उठाते हैं. अडानी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों उनके (मोदी) गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान से एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं.’

अडानी के साथ मोदी की निकटता के आरोप का समर्थन करने के लिए वल्लभ ने श्रीलंका का वाकया याद किया जिसमें श्रीलंका के सरकारी स्वामित्व वाले सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष ने एक संसदीय पैनल के समक्ष दावा किया था कि भारतीय प्रधानमंत्री ने तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे पर अडानी समूह को अक्षय ऊर्जा परियोजना देने के लिए दबाव डाला था. हालांकि अधिकारी ने बाद में अपना बयान वापस ले लिया था और पद से भी इस्तीफा दे दिया था.

उन्होंने कहा, ‘साथ ही 2014 में जैसे ही मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आई, एसबीआई ने अडानी समूह के साथ एक अरब अमेरिकी डॉलर के लिए एक सैद्धांतिक समझौता तैयार किया और दुनियाभर के कई बैंकों को धन मुहैया कराने के लिए एक साथ लाया गया.’

वल्लभ ने कहा, ‘एक नया मामला सामने आया है जो एक प्रमुख टेलीविजन समाचार चैनल (एनडीटीवी) में अडानी समूह द्वारा 29.19 प्रतिशत हिस्सेदारी के जरिये उसके चोरी-छिपे अधिग्रहण से संबंधित है. इसे चैनल के संस्थापकों से किसी तरह की बातचीत या सहमति के बिना लागू किया गया. अडानी समूह ने अन्य 26 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की खुली पेशकश की भी घोषणा की.’

वल्लभ ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को जवाब देना चाहिए कि सरकार की ओर से कौन एसबीआई जैसे बैंकों पर दबाव डाल रहा है कि वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और बैंकों को भारी खतरे में डाल दें.

उन्होंने पूछा, ‘वित्त मंत्रालय और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) एक प्रमुख टीवी समाचार चैनल के अधिग्रहण प्रकरण पर चुपचाप क्यों बैठे हैं.’

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘दोस्तों’ के लिए हर तरह के करार सुनिश्चित कर रहे हैं और दूसरी तरफ उनके कारोबार को बढ़ावा देने के लिए बैंकों के खजाने खोले गए हैं.

उन्होंने ट्विटर पर कहा, ‘खतरे को ध्यान में रखे बिना 2.3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया. दोस्तों का विकास, अर्थव्यवस्था का विनाश!’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)