ग़ुलाम नबी आज़ाद का भाजपा में शामिल होने से इनकार, कहा- जम्मू कश्मीर में नई पार्टी बनाऊंगा

कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि उन्हें नई पार्टी के गठन की घोषणा करने की कोई जल्दी नहीं थी, फिर भी वे जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे क्योंकि जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं. वहीं, आज़ाद के समर्थन में कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई के पांच नेताओं ने भी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है.

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New Delhi: Senior Congress leader Ghulam Nabi Azad speaks during a news conference in which MLA's of various local parties in Haryana who joined Congress, in New Delhi, Sunday, Sept. 15, 2019. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI9_15_2019_000167B)
गुलाम नबी आजाद. (फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस छोड़ने वाले वरिष्ठ नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि उन्हें नई पार्टी के गठन की घोषणा करने की कोई जल्दी नहीं थी, फिर भी वे जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे क्योंकि जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं. वहीं, आज़ाद के समर्थन में कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई के पांच नेताओं ने भी पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया है.

गुलाम नबी आजाद. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली/जम्मू: कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने शुक्रवार को भाजपा में शामिल होने की बात से इनकार करते हुए कहा कि वह जम्मू कश्मीर में जल्द ही अपनी नई पार्टी बनाएंगे.

आजाद ने यहां कहा कि वह अपने समर्थकों तथा लोगों से मुलाकात करने के लिए जल्द ही जम्मू कश्मीर जाएंगे.

उन्होंने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजने के बाद टीवी चैनलों से कहा, ‘मैं जल्द ही जम्मू कश्मीर जाऊंगा. मैं जम्मू कश्मीर में जल्द ही अपनी पार्टी बनाऊंगा. मैं भारतीय जनता पार्टी में शामिल नहीं होऊंगा.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, था, आजाद ने कहा, ‘मुझे अभी एक राष्ट्रीय पार्टी शुरू करने की कोई जल्दी नहीं है, लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि जम्मू कश्मीर में चुनाव होने की संभावना है, मैंने जल्द ही वहां एक इकाई शुरू करने का फैसला किया है.’

उन्होंने ने अपनी नई पार्टी के गठन पर कोई और विवरण देने से इनकार कर दिया.

अपने इस्तीफे पर किसी भी चर्चा में घसीटे जाने से इनकार करते हुए आजाद ने कहा, ‘मैंने इस फैसले के बारे में लंबे समय से सोचा है और अब यहां से कोई वापसी नहीं है.’

बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, नई दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए, आजाद ने कहा कि हालांकि उन्हें नई पार्टी के गठन की घोषणा करने की कोई जल्दी नहीं थी, फिर भी वह जल्द ही इसकी घोषणा करेंगे क्योंकि जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं.

अब जबकि विधानसभा चुनावों में आजाद की भागीदारी एक पूर्व निष्कर्ष है, वे यहां अपने व्यक्तिगत प्रभाव और छवि को देखते हुए केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता की कुंजी अच्छी तरह से रख सकते हैं.

साल 2005 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में आजाद की छवि बेहद साफ-सुथरी और सकारात्मक रही. उन्होंने विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाया और उस अवधि के दौरान जम्मू कश्मीर में नए प्रशासनिक जिले भी बनाए.

आजाद के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में सहयोगी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.

कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई के पांच नेताओं ने आजाद के समर्थन में पार्टी से इस्तीफा दिया

इससे पहले आजाद के कांग्रेस से इस्तीफा देने के कुछ घंटों बाद दो पूर्व मंत्रियों सहित पार्टी के पांच वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

सूत्रों ने बताया कि कुछ और नेताओं के भी इस्तीफा देने की संभावना है.

उन्होंने बताया कि आजाद के समर्थन में पूर्व मंत्रियों आरएस छिब और जीएम सरूरी, पूर्व विधायक मोहम्मद अमीन भट, विधानपरिषद के पूर्व सदस्यों नरेश गुप्ता और पार्टी नेता सलमान निजामी ने इस्तीफा दे दिया.

सूत्रों ने बताया कि पूर्व सांसद जुगल किशोर शर्मा और पूर्व विधायकों हाजी अब्दुल राशिद, चौधरी मोहम्मद अकरम और गुलजार अहमद वानी सहित पांच और नेताओं के इस्तीफा देने की संभावना है.

सूत्रों ने बताया कि एक अन्य प्रमुख नेता मुनीर अहमद मीर के भी इस्तीफा देने की संभावना है.

छिब ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को संबोधित अपने इस्तीफा पत्र में कहा, ‘कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में वर्षों से, जम्मू कश्मीर की तरक्की के लिए मैंने पूरी ईमानदारी से प्रयास किये है. मुझे लगता है कि मौजूदा परिस्थितियों में, कांग्रेस ने मेरे राज्य के भविष्य की बेहतरी में योगदान देने में अपनी गति खो दी है.’

उन्होंने पत्र में कहा, ‘पिछले दशकों में जम्मू कश्मीर ने जो उथल-पुथल देखी है, उसे ध्यान में रखते हुए लोगों को एक बेहतर भविष्य की दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए आजाद जैसे निर्णायक नेता की आवश्यकता है.’

सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस की जम्मू कश्मीर इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष सरूरी ने पार्टी से इस्तीफा देने से पहले कई अन्य नेताओं के साथ दिल्ली में आजाद से मुलाकात की.

आजाद के समर्थक माने जाने वाले इनमें से ज्यादातर नेता नई दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं.

गौरतलब है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने करीब पांच दशकों के बाद शुक्रवार को पार्टी को अलविदा कह दिया और दावा किया कि देश का सबसे पुराना दल अब ‘समग्र रूप से नष्ट हो चुका है’ तथा इसका नेतृत्व आतंरिक चुनाव के नाम पर ‘धोखा दे रहा है.’

उन्होंने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर ‘अपरिपक्व और बचकाने व्यवहार’ का भी आरोप लगाया और कहा कि अब सोनिया गांधी नाममात्र की नेता रह गई हैं क्योंकि फैसले राहुल गांधी के ‘सुरक्षागार्ड और निजी सहायक’ करते हैं.

आजाद ने कांग्रेस से अपना रिश्ता उस वक्त तोड़ा है जब पार्टी संगठनात्मक चुनाव की दिशा में आगे बढ़ रही है. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तिथि निर्धारित करने के संदर्भ में कांग्रेस कार्य समिति रविवार को बैठक करने वाली है. आजाद फिलहाल कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य थे.

उनके इस्तीफे को, पहले से ही समस्याओं का सामना कर रही कांग्रेस के लिए एक और झटका माना जा रहा है. इससे पूर्व कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं जिसमें कपिल सिब्बल, अश्विनी कुमार आदि शामिल हैं.

गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस से इस्तीफे के पत्र के मुख्य बिंदु

कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के पार्टी से इस्तीफे के पत्र के कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

* आजाद ने 1970 के दशक में पार्टी में शामिल होने के बाद से कांग्रेस के साथ अपने लंबे जुड़ाव का जिक्र किया.

* आजाद ने राहुल गांधी पर पार्टी के भीतर परामर्श तंत्र को खत्म करने का आरोप लगाया.

* सभी वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर दिया गया और अनुभवहीन ‘चापलूसों’ की नई मंडली पार्टी के मामलों में दखल देने लगी.

* आजाद ने राहुल गांधी द्वारा सरकारी अध्यादेश को पूरे मीडिया के सामने फाड़ने को ‘अपरिपक्वता’ का ‘उदाहरण’ बताया.

* यह हरकत भी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की 2014 में हुई हार का एक कारण रही.

* आजाद ने कहा कि पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए वह पंचमढ़ी (1998), शिमला (2003) और जयपुर (2013) में हुए पार्टी के मंथन में शामिल रहे हैं, लेकिन तीनों मौकों पर पेश किये गये सलाह-मशवरों पर कभी गौर नहीं किया गया और न ही अनुशंसाओं को लागू किया गया.

* 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए विस्तृत कार्य योजना ‘‘पिछले नौ वर्षों से अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के ‘स्टोररूम’ में पड़ी है.

* वर्ष 2014 से सोनिया गांधी के नेतृत्व में और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में, कांग्रेस ‘शर्मनाक तरीके’ से दो लोकसभा चुनाव हार गई है. पार्टी 2014 और 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनावों में से 39 में भी हार गई.

* 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी की स्थिति खराब हुई है. चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने आवेग में आकर अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

* संप्रग सरकार की संस्थागत अखंडता को खत्म करने वाला ‘‘रिमोट कंट्रोल मॉडल’’ अब कांग्रेस पर लागू होता है.

* आपके (सोनिया गांधी) पास सिर्फ नाम का नेतृत्व है, सभी महत्वपूर्ण फैसले या तो राहुल गांधी लेते हैं, या ‘‘फिर इससे भी बदतर स्थिति में उनके सुरक्षाकर्मी और निजी सहायक लेते हैं.’’

* आजाद ने आरोप लगाया कि पार्टी की कमजोरियों पर ध्यान दिलाने के लिए पत्र लिखने वाले पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं को अपशब्द कहे गए, उन्हें अपमानित किया गया, नीचा दिखाया गया.

* उन्होंने नेतृत्व पर आंतरिक चुनाव के नाम पर पार्टी के साथ बड़े पैमाने पर ‘धोखा’ करने का आरोप लगाया.

* पार्टी को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से पहले ‘कांग्रेस जोड़ो यात्रा’ निकालनी चाहिए थी.

कांग्रेस नेताओं पलटवार, कहा- आजाद का डीएनए ‘मोदी-मय’ हुआ, पार्टी के साथ धोखा किया

कांग्रेस ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित सभी पदों से गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे को ‘दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद’ करार देते हुए आरोप लगाया कि आजाद ने पार्टी को धोखा दिया और उनका रिमोट कंट्रोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने आजाद पर निशाना साधते हुए यह भी कहा कि ‘जीएनए’ (गुलाम नबी आजाद) का डीएनए ‘मोदी-मय’ हो गया है.

उन्होंने कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ने ऐसे समय पर यह कदम उठाया जब कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी और ध्रुवीकरण के खिलाफ लड़ रही है तथा त्यागपत्र में कही गई बातें तथ्यपरक नहीं हैं, इसका समय भी ठीक नहीं है.

रमेश ने कहा, ‘जिस व्यक्ति को कांग्रेस नेतृत्व ने सबसे ज़्यादा सम्मान दिया, उसी व्यक्ति ने कांग्रेस नेतृत्व पर व्यक्तिगत आक्रमण करके अपने असली चरित्र को दर्शाया है. पहले संसद में मोदी के आंसू, फिर पद्म विभूषण, फिर मकान का एक्सटेंशन…यह संयोग नहीं, सहयोग है!’

पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी से ‘निजी खुन्नस’ और राज्यसभा में न भेजे जाने के कारण त्यागपत्र में ‘अनर्गल बातें’ की हैं.

कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा, ‘गुलाम नबी आजाद और इन जैसे लोगों को समझ लेना चाहिए कि पार्टी के कार्यकर्ता क्या चाहते हैं… यह सज्जन पांच पृष्ठों के पत्र में डेढ़ पृष्ठ तक यह लिखते हैं कि वह किन-किन पदों पर रहे और फिर लिखते हैं कि उन्होंने नि:स्वार्थ सेवा की.’

उन्होंने दावा किया कि राज्यसभा न भेजे जाने के कारण आजाद तड़पने लगे.

खेड़ा ने आरोप लगाया, ‘पार्टी को कमजोर करने में इन्हीं लोगों का तो योगदान रहा है. आप लोगों की वजह से पार्टी कमजोर हुई… पार्टी का कार्यकर्ता इस धोखे को जानता है. कार्यकर्ता यह भी जानता है कि जो व्यक्ति इस समय धोखा दे रहा है, उसका रिमोट कंट्रोल नरेंद्र मोदी के हाथ में है.’

उन्होंने कहा, ‘आजाद और मोदी जी के प्रेम को हमने खुद देखा है. यह प्रेम संसद में भी दिखा था. उस प्रेम की आज परिणति हुई है… देश का कार्यकर्ता इस व्यक्ति को माफ नहीं करेगा.’

राहुल गांधी के अध्यादेश की प्रति फाड़ने का आजाद द्वारा अपने त्यागपत्र में उल्लेख किए जाने पर खेड़ा ने कहा, ‘आजाद उस वक्त क्यों नहीं बोले? उस वक्त पद था, इसलिए नहीं बोले. मतलब यह है कि आप स्वार्थी हैं. पद है तो नहीं बोलेंगे और जब पद नहीं है तो बोलेंगे.’

कांग्रेस की जम्मू कश्मीर प्रभारी रजनी पाटिल ने ट्वीट किया, ‘जो सोचते हैं कि धोखे से बाजी मार गए, हकीकत में तो कितनों का भरोसा हार गए …. इस सोच के शायद गुलाम ही रहे होंगे, तभी आज खुद को आजाद समझ रहे हैं. बरसों सत्ता को भोगा और संघर्ष के समय मौकापरस्ती में अपनों को छोड़ा, यह सोच गुलामी और धोखे की भावना को ही दर्शाती है.’

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि आजाद की पसंद से ही पिछले दिनों वकार रसूल वानी को जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘आजाद की कांग्रेस नेताओं अंबिका सोनी और रजनी पाटिल के साथ चार बैठकें हुईं. आखिरी बैठक 14 जुलाई को हुई थी. उन्होंने जो सूची सौंपी थी उसी में से जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारी बनाए गए.’

उन्होंने कहा, ‘आजाद को राहुल गांधी पर सवाल करने से पहले यह सोचना चाहिए कि उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कांग्रेस की क्या दुर्गति की. आंध्र प्रदेश के बंटवारे के निर्णय के लिए वह पूरी तरह जिम्मेदार हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट क साथ)