दिल्ली के जंतर मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शन में अभिनेत्री शबाना आज़मी, महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन, फिल्म निर्माता गौहर रज़ा और छात्र संगठन आइसा भी शामिल हुए. प्रदर्शन के दौरान कहा गया कि दोषियों की रिहाई से देश में संदेश गया है कि मुस्लिम महिलाओं के बलात्कारियों को सज़ा नहीं दी जाएगी, बल्कि माला पहनाकर पुरस्कृत किया जाएगा.
नई दिल्ली: बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की गुजरात की भाजपा सरकार की क्षमा नीति के तहत रिहाई के विरोध में छात्र और महिला समूह शनिवार (27 अगस्त) को जंतर मंतर पर एकजुटता दिखाने के लिए एकत्र हुए.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन में पूर्व सांसद और अभिनेत्री शबाना आजमी, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की सचिव कविता कृष्णन और वैज्ञानिक-फिल्म निर्माता गौहर रजा के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) समर्थित आइसा और कई अन्य संगठन भी शामिल हुए.
अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) भी प्रदर्शन का हिस्सा था. उसने दोषियों की रिहाई को देश के संवैधानिक और धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर तमाचा करार दिया.
आइसा कार्यकर्ताओं ने कहा कि 15 अगस्त को ‘क्षमा देते हुए’ 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला देश के संवैधानिक मूल्यों तथा धर्म-निरपेक्ष ताने-बाने पर एक तमाचा है.
आइसा ने एक बयान में कहा, ‘कठुआ से लेकर उन्नाव और हाथरस तथा गुजरात तक प्रवृत्ति एक जैसी है, सरकार बलात्कारियों को बचा रही है.’
इस दौरान, डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता गौहर रजा ने फैज अहमद फैज की नज्म ‘चंद रोज और’ पढ़ी.
अनुभवी अभिनेत्री शबाना आजमी ने महिलाओं तथा हाशिए पर पड़े अन्य वर्गों पर ‘फासीवादी’ हमले तथा अत्याचारों से लड़ने की आवश्यकता पर बल दिया.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों ने कहा कि दोषियों की रिहाई दिखाती है कि देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं और इसने यह संदेश दिया है कि भले ही न्यायपालिका न्याय दे दे, नेताओं द्वारा इसे पलटा जा सकता है.
शबाना आजमी ने कहा कि सभी को एक साथ आगे आना चाहिए और अपनी आवाज उठानी चाहिए, क्योंकि जो बिलकीस बानो के साथ हुआ है, उसे सहा नहीं जा सकता है.
आजमी ने कहा, ‘1992 के कानून का हवाला देकर गुजरात सरकार द्वारा सजा माफी का आदेश पारित किया गया था. लेकिन इस साल के शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा था कि बलात्कार के दोषियों को सजा माफी नहीं दी जा सकती.’
उन्होंने आगे सवाल उठाते हुए कहा, ‘फिर यह कैसे हुआ? क्या केंद्र सरकार के निर्देश के बिना गुजरात सरकार के लिए यह कदम उठाना संभव है? एक महिला और एक भारतीय होने के नाते मुझे लगता है कि हम सभी को अपनी आवाजें उठानी चाहिए और कहना चाहिए कि जो बिलकीस बानो और उनके परिवार के साथ हुआ, वह हम नहीं सहेंगे.’
इसे देश में महिलाओं के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा का स्पष्ट संदेश बताते हुए अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने कहा, ‘जो संदेश गया है, वो यह है कि मुस्लिम महिलाओं के बलात्कारियों को सजा नहीं दी जाएगी, बल्कि माला पहनाई जाएगी और पुरुस्कृत किया जाएगा.’
कृष्णन ने कहा कि आरोपियों को सजा माफी नहीं दी गई है, बल्कि पुरस्कार दिया गया है. उन्होंने कहा, ‘इसके लिए उन्हें माला पहनाई गई और मिठाई बांटी गई.’
शनिवार का यह प्रदर्शन अन्य शहरों में भी आयोजित हुआ था, इसमें रिहाई आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी.
इस दौरान एक्टिविस्ट शबनम हाशमी ने कहा, ‘सरकार ने दिखाया है कि भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए कोई जगह नहीं है और भले ही महिला पर हमला भी हो जाए, उन्हें आसानी से न्याय नहीं मिलेगा. अगर उन्हें न्याय मिल भी जाए तो राजनीतिक व्यवस्था उसे पलट देगी.’
दिल्ली आइसा सचिव नेहा ने कहा, ‘आम तौर पर हम जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन के लिए नोटिस नहीं देते हैं. इस बार हमने एक दिन पहले नोटिस दिया और हमें अनुमति देने से इनकार कर दिया गया. इसलिए हमने कार्यक्रम में एक सप्ताह की देरी की और पुलिस को आयोजन के संबंध में छह दिन का नोटिस दिया.’
बता दें कि बीते 15 अगस्त को गुजरात की भाजपा सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत इस मामले के 11 दोषियों की उम्र कैद की सजा को माफ कर दिया था, जिसके बाद उन्हें 16 अगस्त को गोधरा के उप-कारागार से रिहा कर दिया गया था.
सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में जेल से बाहर आने के बाद बलात्कार और हत्या के दोषी ठहराए गए इन लोगों का मिठाई खिलाकर स्वागत किया जा रहा है. वहीं, रिहाई की सिफारिश करने वाले पैनल के एक सदस्य भाजपा विधायक सीके राउलजी ने बलात्कारियों को ‘अच्छे संस्कारों’ वाला ‘ब्राह्मण’ बताया था.
इसे लेकर कार्यकर्ताओं ने आक्रोश जाहिर किया था. इसके अलावा सैकड़ों महिला कार्यकर्ताओं समेत 6,000 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से दोषियों की सजा माफी का निर्णय रद्द करने की अपील की है.
मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी, 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा बरकरार रखी थी.
उन्हें भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था.
वर्ष 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में आगजनी की घटना के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था, घटना के समय वह पांच महीने की गर्भवती थीं. मारे गए लोगों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी.
राकांपा की महिला कार्यकर्ताओं ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ प्रदर्शन किया
ठाणे: इधर महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की ठाणे-पालघर इकाई की महिला कार्यकर्ताओं ने बिलकीस बानो मामले में गुजरात सरकार द्वारा 11 दोषियों को रिहा किए जाने के खिलाफ शनिवार को प्रदर्शन किया.
ठाणे में शिवाजी स्क्वायर पर विरोध-प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने केंद्र और गुजरात की भाजपा सरकारों के खिलाफ नारेबाजी की.
राकांपा की ठाणे-पालघर महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष रुता अव्हाड ने कहा कि बिलकीस बानो मामले में दोषियों की रिहाई ऐसे समय में हुई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में महिलाओं को सशक्त बनाने और उनका सम्मान करने की बात कही थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)