सेंट्रल विस्टा परियोजना: उखाड़कर कहीं और लगाए गए 402 पेड़ों में से केवल 30 फीसदी जीवित बचे

वन विभाग ने दिल्ली हाईकोर्ट को एक हलफनामा सौंपा है, जिसमें बताया गया है कि निर्माण के दौरान केंद्र सरकार की बहुप्रतीक्षित ‘सेंट्रल विस्टा परियोजना’ में उखाड़े गए 400 से अधिक पेड़ों में से केवल 121 जीवित बचे हैं.

(फोटो साभार: एचसीपी डिजाइंस)

वन विभाग ने दिल्ली हाईकोर्ट को एक हलफनामा सौंपा है, जिसमें बताया गया है कि निर्माण के दौरान केंद्र सरकार की बहुप्रतीक्षित ‘सेंट्रल विस्टा परियोजना’ में उखाड़े गए 400 से अधिक पेड़ों में से केवल 121 जीवित बचे हैं.

(फोटो साभार: एचसीपी डिजाइंस)

नई दिल्ली: नए संसद भवन निर्माण की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा परियोजना में उखाड़े गए 400 से अधिक पौधे जिन्हें कहीं और लगा दिया गया था, उनमें से केवल 121 ही बच पाए हैं.

यह खुलासा इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में हुआ है. यह रिपोर्ट इस साल मई में वन विभाग द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट को एक हलफनामे के रूप में सौंपे गए आंकड़ों पर आधारित है.

‘प्लॉट नंबर 118 पर मौजूदा संसद भवन का प्रस्तावित विस्तार और जीर्णोद्धार’ शीर्षक वाली परियोजना के लिए पेड़ों को प्रत्यारोपित किया गया था.

प्रत्यारोपित किए गए पेड़ों की वास्तविक संख्या में से केवल 30 फीसदी ही जीवित बचे हैं, जो कि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा अपने हलफनामे में बताई गई संख्या 266 से बेहद कम हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट सीपीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी के हवाले से कहती है कि विभाग की मई की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रत्यारोपित किए गए 402 पेड़ों में से 267 पेड़ जीवित थे. उनमें से 130 में से 102 नए संसद भवन स्थल पर थे और बाकी बचे 272 में से 165 बदरपुर के एनटीपीसी ईको पार्क में थे.

वहीं, विशेषज्ञों ने पेड़ों की जीवित रहने की दर को कम बताया है.

इस विषय पर द वायर के लिए लिख चुकीं कांची कोहली ने ट्विटर पर कहा कि यह नतीजे अपेक्षित थे.

वास्तव में, पहली रिपोर्ट आने के बाद से ही इस फैसले की आलोचना की जा रही थी.

स्कॉलर वल्लारी शील ने द वायर साइंस के लिए लिखा था कि यह विचार, विशेष तौर पर सेंट्रल विस्टा में, वैज्ञानिक रूप से गलत था, क्योंकि ‘पारिस्थितिकी तंत्र को प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है, उन्हें विकसित और परिपक्व होने में कई दशक लगते हैं.’

शील ने आगे इस बात पर प्रकाश डाला था कि इस तरह के कदम की सफलता या विफलता का आकलन करना पहली ही नजर में मुश्किल क्यों नजर आता है:

‘पेड़ों को हटाने के पीछे का यह विचार दिल्ली वन विभाग के हालिया आरटीआई जवाब के आलोक में और भी चौंकाने वाला है, जो स्वीकारता है कि पिछले 10 सालों से दिल्ली में और पिछले दो दशकों से एनडीएमसी के इलाकों में कोई वृक्ष गणना नहीं हुई है. सेंट्रल विस्टा परियोजना पर एनडीएमसी क्षेत्र में ही काम हो रहा है. इसका मतलब है कि पुनर्विकास और बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई के लिए निर्धारित इस बड़े क्षेत्र में पेड़ों की संख्या, विविधता और उनके हालातों पर कोई सटीक आधिकारिक डेटा हमारे पास नहीं है.’

दिल्ली के सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास में सार्वजनिक परामर्श की कमी और स्पष्ट दिखाई देती जल्दबाजी अक्सर गंभीर आलोचनाओं का शिकार बनी है.

द वायर ने उन कई उदाहरणों के संबंध में रिपोर्ट की है जब विभिन्न वर्ग के नागरिकों, वास्तुकारों, शहरी योजनाकारों, इतिहासकारों और राजनेताओं ने परियोजना के कामकाज में कम पारदर्शिता होने की बात कही थी.

मालूम हो कि सितंबर 2019 में घोषित सेंट्रल विस्टा पुनरुद्धार परियोजना में 900 से 1,200 सांसदों के बैठने की क्षमता वाले एक नए त्रिकोणीय संसद भवन की परिकल्पना की गई है, जिसका निर्माण अगस्त, 2022 तक किया जाना था, जब देश अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाने वाला था. हालांकि इसी महीने यह समयसीमा पूरी हो चुकी है.

अनुमानित रूप से कुल 20,000 करोड़ रुपये की लागत के साथ मौजूदा समय में चार परियोजनाएं नया संसद भवन, सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्विकास, तीन कॉमन केंद्रीय सचिवालय इमारतें और उपराष्ट्रपति आवास का निर्माण होना है.

यह योजना लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैली हुई है. केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के मुताबिक नई इमारत संसद भवन संपदा की प्लॉट संख्या 118 पर बनेगी.

नई इमारत में ज्यादा सांसदों के लिए जगह होगी, क्योंकि परिसीमन के बाद लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की संख्या बढ़ सकती है. इसमें करीब 1400 सांसदों के बैठने की जगह होगी. लोकसभा के लिए 888 (वर्तमान में 543) और राज्यसभा के लिए 384 ( वर्तमान में 245) सीट होगी.

राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर की दूरी तक फैली परियोजना के तहत 2024 तक एक सार्वजनिक केंद्रीय सचिवालय का निर्माण किया जाना है.