राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2021 में कुल 6,533 लोगों की तस्करी होने की जानकारी मिली है, जिनमें से 2,877 बच्चे और 3,656 वयस्क हैं. इसके अलावा तस्करी के 2,189 मामले दर्ज किए गए, जिनमें केवल 16 फीसदी मामलों में दोषसिद्धि साबित हुई.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में 2021 में रोजाना आठ बच्चों की तस्करी और उनका उत्पीड़न होने संबंधी आंकड़ों का हवाला देते हुए विशेषज्ञों ने एक सख्त मानव तस्करी रोधी कानून की मांग की है.
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मानव तस्करी के कुल 2,189 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2020 में ऐसे 1,714 मामले दर्ज किए गए थे, जो 27.7 प्रतिशत की बढ़त दर्शाते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘कुल 6,533 लोगों की तस्करी होने की जानकारी मिली है, जिनमें से 2,877 बच्चे और 3,656 वयस्क हैं. इसके अलावा 6,213 पीड़ितों को तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया है.’
आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो पिछले एक साल में कुल 2,877 बच्चे तस्करी के शिकार हुए, जो रोजाना तकरीबन आठ बच्चों की तस्करी होने की ओर इशारा करता है.
रिपोर्ट में कहा गया कि तस्करी के 2,189 मामलों में कुल 5,755 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. रिपोर्ट में केवल उन मामलों का उल्लेख है जो मानव तस्करी रोधी इकाइयों (एएचटीयू) द्वारा दर्ज किए गए हैं.
अब तक ऐसी 768 इकाइयां काम कर रही हैं और 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने सभी जिलों में इन इकाइयों को स्थापित करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है.
2021 में इन इकाइयों द्वारा दर्ज किए गए मानव तस्करी के 2,189 मामलों में से सबसे अधिक तेलंगाना (347 मामले), महाराष्ट्र (320 मामले) और असम (203 मामले) में दर्ज किए गए हैं.
विशेषज्ञों ने कहा है, ‘इन आंकड़ों के अनुसार देश में हर दिन आठ बच्चों की तस्करी विभिन्न प्रकार के शोषण जैसे श्रम, यौन शोषण, भीख मांगने के लिए की जाती थी.’
कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन की कार्यकारी निदेशक ज्योति माथुर ने कहा कि भारत में 2021 में अपराध के आंकड़ों के अनुसार बच्चों की तस्करी के चिंताजनक तथ्यों को देखते हुए एक मजबूत तस्करी रोधी कानून की जरूरत है.
माथुर ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2021 में तस्करी की घटनाओं में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई और इन पीड़ितों में 44 प्रतिशत बच्चे हैं.
उन्होंने कहा कि 2021 में रिपोर्ट किए गए ऐसे मामलों की उच्च संख्या केवल हिस्सा भर है. इसी रिपोर्ट में 77,535 बच्चों के लापता होने की सूचना मिली थी और अगर पिछले वर्षों में लापता हुए और लापता रहने वाले बच्चों को इस संख्या में जोड़ा जाता है तो आंकड़ा कुल 1,21,351 बच्चों का हो जाता है.
उन्होंने कहा कि इनमें से अधिकांश बच्चे तस्करी के शिकार हो सकते हैं. चूंकि कई मामले दर्ज नहीं किए जाते हैं, इसलिए वास्तविकता कहीं अधिक गंभीर और चिंताजनक है.
कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील कौशिक गुप्ता के अनुसार, रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि इसमें केवल मानव तस्करी रोधी इकाइयों (एएचटीयू) में दर्ज मानव तस्करी के मामले हैं.
उन्होंने कहा, ‘और भी कई मामले हैं जो एएचटीयू तक पहुंचे नहीं और रिपोर्ट में नहीं आए. इसलिए, मेरी राय में यह रिपोर्ट अधूरी है और सही नहीं है.’
उन्होंने कहा कि यह एक ऐसे कानून की जरूरत को भी उजागर करती है, जिसमें समग्र रूप से तस्करी पर ध्यान दिया जाए. गुप्ता ने कहा कि लोगों को जल्द से जल्द संसद में मानव तस्करी रोधी विधेयक पारित होने का इंतजार है.
तस्करी रोधी कार्यकर्ता सुरेश कुमार ने कहा कि पिछले रिपोर्ट किए गए मामलों की तुलना में देश में मानव तस्करी के मामलों में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
उन्होंने कहा, ‘इन मामलों में दोषी सिद्धि की दर केवल लगभग 1.5 प्रतिशत है. दोषसिद्धि की खराब दर मानव तस्करी के अत्यधिक संगठित अपराध को बढ़ावा देती है.’
कुमार ने आगे कहा, मानव तस्करी से निपटने के लिए देश को एक व्यापक पीड़ित-केंद्रित कानून की आवश्यकता है. मानव तस्करी के बचाए गए लोगों को दोबारा सामान्य जीवन में लौटने के लिए एक दीर्घकालिक समर्थन की जरूरत है.
मानव तस्करी के केवल 16 फीसदी मामलों में 2021 में दोषियों को सज़ा मिली: एनसीआरबी
मानव तस्करी के मामलों में दोषसिद्धि की दर देश भर में कम बनी हुई है. यह एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट में सामने आया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में देश भर में मानव तस्करी रोधी इकाइयों के तहत (एएचटीयू) पुलिस ने 2,189 मामले दर्ज किए थे, जिनमें से 84.7 फीसदी मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किया गया और केवल 16 फीसदी मामलों में दोषसिद्धि साबित हुई.
इस दौरान 11 राज्यों के दोषसिद्धि संबंधी आंकड़े उपलब्ध नहीं थे, जबकि आठ राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में कोई भी दोषसिद्धि नहीं हुई.
इस मामले में झारखंड का प्रदर्शन शीर्ष पर रहा, जहां 2021 में दर्ज हुए 92 मामलों में से 84.2 फीसदी मामलों में दोषसिद्धि हो सकी.
2020 में दर्ज किए तस्करी के 1,714 मामलों में से 85.2 फीसदी मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किया गया था, लेकिन कुल मामलों में से केवल 10.6 फीसदी मामलों में ही दोषसिद्धि साबित होते देखी गई थी.
2019 में कुल 2,260 मानव तस्करी के मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें से पुलिस ने 83.7 फीसदी मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किया था, जबकि दोषिसिद्धि 22 फीसदी में हुई थी. चार राज्यों में दोषसिद्धि का कोई भी मामला सामने नहीं आया था.
2021 में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दोषसिद्धि की दर शून्य रही है, उनके नाम हैं: अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा, तेलंगाना, दिल्ली, चंडीगढ़ और जम्मू कश्मीर.
इनमें से पुलिस ने हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना में 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में अंतिम आरोप-पत्र दायर किया था और गोवा व हरियाणा में 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में.
तस्करी के सबसे अधिक मामले तेलंगाना (347), महाराष्ट्र (320) और असम (203) में दर्ज किए गए थे.
पिछले तीन सालों में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मानव तस्करी के सबसे अधिक मामले सामने आए हैं. इसके बाद असम, झारखंड, केरल, ओडिशा और राजस्थान का नंबर आता है. तेलंगाना को छोड़कर, सभी राज्यों में 2020 में मामलों में कमी देखी गई थी, जब कोरोना महामारी का पहला साल था और लॉकडाउन लगा था.
वर्ष-2021 में मानव तस्करी के सबसे अधिक पीड़ित ओडिशा के: एनसीआरबी
भुवनेश्वर: एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा में पिछले साल देश में सबसे अधिक मानव तस्करी के पीड़ित सामने आए.
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल देशभर में मानव तस्करी के कुल 6,533 पीड़ित सामने आए, जिनमें अकेले 1,475 पीड़ित ओडिशा के थे. ओडिशा के मानव तस्करी पीड़ितों में 444 महिलाएं और 497 बच्चे शामिल हैं.
रिपोर्ट में बताया गया कि देशभर से पिछले साल 6,213 लोगों को मानव तस्करों के चंगुल से बचाया गया, जिनमें से 1,290 ओडिशा के थे.
‘भारत में अपराध-2021’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा के बचाए गए 1,290 लोगों में से 1,018 लोगों की तस्करी बंधुआ मजदूरी के लिए की गई थी. राज्य में वर्ष 2020 में मानव तस्करी के 741 पीड़ित सामने आए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा में गत वर्ष मानव तस्करी के 136 मामले सामने आए, जो वर्ष 2020 के 103 मामलों से अधिक है. इनमें से कई ऐसे मामले थे, जिनमें पीड़ितों की संख्या एक से अधिक थी.
नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में भारतीय दंड संहिता, विशेष और स्थानीय कानूनों के तहत दर्ज अपराधों में पिछले साल 15.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
ओडिशा में दलितों के खिलाफ अपराध में 13.73 प्रतिशत और आदिवासियों के खिलाफ अपराध में 8.33 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. देश में ओडिशा पांचवां राज्य है, जहां सबसे अधिक 64 बाल विवाह के मामले दर्ज हुए हैं.
ओडिशा में हत्या के प्रयास के 5,062 मामले और लूटपाट के 2,814 मामले दर्ज हुए हैं और दोनों ही श्रेणी में अपराध प्रति लाख आबादी के लिहाज से राज्य का देश में दूसरा स्थान है.
ओडिशा का 355 मामलों के साथ डकैती की दर में सबसे खराब रिकॉर्ड है जबकि औद्योगिक और राजनीतिक दंगों में क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर है.
एनसीआरबी के मुताबिक राज्य में पिछले साल 1,411 लोगों की हत्या हुई जबकि अपहरण के 5,630 मामले दर्ज हुए.
दिल्ली में मानव तस्करी के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए: एनसीआरबी आंकड़े
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2021 में आठ केंद्रशासित प्रदेशों में से दिल्ली में मानव तस्करी के सबसे अधिक मामले दर्ज किए और 2020 की तुलना में इसमें 73.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मानव तस्करी के सभी 509 पीड़ितों को बचा लिया गया. मानव तस्करी से पीड़ित अधिकतर लोग बंधुआ मजदूरी से, जबकि उनमें से कुछ मामले यौन शोषण व छोटे अपराधों से जुड़े थे.
हालांकि, पीड़ितों में से किसी की भी बच्चों से जुड़ी अश्लील फिल्मों (चाइल्ड पोर्नोग्राफी), भीख मांगने या मानव अंगों को हटाने के लिए तस्करी नहीं की गई थी.
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2020 में देश भर में कई बार कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन लागू किया गया.
उन्होंने कहा, ‘स्वाभाविक रूप से नगर में 2021 में मानव तस्करी के मामलों में वृद्धि देखी गई, जब लोगों की आवाजाही धीरे-धीरे फिर शुरू हुई.’
उन्होंने कहा, ‘पलायन भी एक प्रमुख कारण है. नौकरियों के अवसरों के लिए एक प्रमुख केंद्र होने के नाते, कुछ डीलर युवाओं और बेरोजगार लोगों को लुभावने लालच देकर आकर्षित करने की कोशिश करते हैं. हालांकि, गंतव्य तक पहुंचने के बाद उन्हें वास्तविकता का पता चलता है. या तो उन्हें बिल्कुल ही भुगतान नहीं किया जाता या जितना वादा किया गया था उससे बहुत कम भुगतान किया जाता है.’
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में 509 लोगों की तस्करी की गई, जिनमें से ज्यादातर पुरुष और 143 महिलाएं थीं. दिल्ली में मानव तस्करी के शिकार 437 पीड़ित 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के थे, जिनमें 100 लड़कियां थीं.
आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मानव तस्करी के आरोप में 174 लोगों को गिरफ्तार किया गया और 13 लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया गया. हालांकि किसी को भी अदालतों ने दोषी या आरोप-मुक्त नहीं ठहराया है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, ‘अन्य राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में, दिल्ली में मामले तुरंत दर्ज किए जाते हैं. हमारे यहां शिकायतों के ऑनलाइन पंजीकरण की भी सुविधा है और हर शिकायत की सत्यता की जांच की जाती है और उसके हिसाब से कार्रवाई की जाती है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)