गुजरात पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को बीते जून महीने में साल 2002 के गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साज़िश के लिए गिरफ़्तार किया था.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी, जिन्हें गुजरात पुलिस ने साल 2002 के गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साजिश के लिए गिरफ्तार किया था.
प्रधान न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सीतलवाड़ को गुजरात हाईकोर्ट में नियमित जमानत याचिका पर निर्णय होने तक अपना पासपोर्ट निचली अदालत के पास जमा कराने का निर्देश दिया.
शीर्ष अदालत ने सीतलवाड़ को दंगा मामलों में लोगों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के आरोपों की जांच में संबंधित एजेंसी के साथ सहयोग करने को भी कहा.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सीजेआई यूयू ललित ने कहा, ‘यह रिकॉर्ड पर रखने की बात है कि अपीलकर्ता को लगभग सात दिनों के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था और संबंधित जांच मशीनरी द्वारा हर दिन उनसे पूछताछ की गई थी.’
पीठ ने सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत मंजूर करते हुए कहा, ‘एक महिला अपीलकर्ता गत 25 जून से हिरासत में है. उनके खिलाफ आरोप 2002 के दंगा मामले से जुड़े हैं और जांच एजेंसी को सात दिनों की हिरासत और उसके बाद न्यायिक हिरासत का अवसर दिया गया था.’
मामले के ब्योरेबार जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को नियमित जमानत याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ता की अंतरिम जमानत अर्जी पर विचार करना चाहिए था.
पीठ ने कहा, ‘हिरासत में पूछताछ संबंधी जरूरी अवयव पूरे हो गए हैं, ऐसे में अंतरिम जमानत पर सुनवाई होनी चाहिए थी.’
न्यायालय ने आगे कहा कि सीतलवाड़ सात दिनों के लिए पुलिस हिरासत में थी. पीठ ने कहा कि चूंकि हाईकोर्ट के पास यह मामला लंबित है, इसलिए यह नियमित जमानत याचिका पर विचार नहीं कर रही है.
न्यायालय ने कहा, ‘हम केवल इस बात पर विचार कर रहे हैं कि ऐसी अर्जी लंबित होने के दौरान क्या अपीलकर्ता को हिरासत में ही रखा जाना चाहिए या उन्हें अंतरिम जमानत पर छोड़ा जाना चाहिए. हम तीस्ता सीतलवाड़ की अंतरिम जमानत मंजूर करते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका को सूचीबद्ध करने में देरी को लेकर बृहस्पतिवार को गुजरात हाईकोर्ट के खिलाफ सख्त टिप्पणियां की थीं.
बृहस्पतिवार को मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने संकेत दिया था कि वह सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देगी. इसने गुजरात सरकार के सामने पांच बिंदु भी उठाए थे, जिसमें कार्यकर्ता को जमानत दिए जाने के खिलाफ किसी भी अपराध का उल्लेख नहीं है.
शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा सीतलवाड़ की जमानत याचिका को सूचीबद्ध करने में देरी का कारण जानना चाहा था और पूछा था कि क्या ‘इस महिला को अपवाद समझा गया है.’
न्यायालय ने इस बात पर भी अचरज जाहिर किया था कि आखिरकार हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत अर्जी पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करने के छह सप्ताह बाद 19 सितंबर को याचिका सूचीबद्ध क्यों की थी.
जकिया जाफरी मामले में शीर्ष अदालत के 24 अगस्त के फैसले के बाद सीतलवाड़ के खिलाफ दर्ज मामले का उल्लेख करते हुए पीठने कहा, ‘आज यह मामला जहां पहुंचा है, वह केवल (उच्चतम) न्यायालय में जो कुछ घटित (फैसला) हुआ, उसकी वजह से है.’
गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर तीन अगस्त को राज्य सरकार को नोटिस जारी करके मामले की सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख मुकर्रर की थी.
लाइव लॉ के मुताबिक, शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ‘हमने मामले को केवल अंतरिम जमानत के दृष्टिकोण से देखा है और यह नहीं माना जाएगा कि हमने याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत किए गए निवेदन के गुण-दोष पर कुछ भी व्यक्त किया है. गुण-दोष के आधार पर पूरे मामले पर हाईकोर्ट स्वतंत्र रूप से विचार करेगा और इस अदालत द्वारा की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित नहीं होगा.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले के अन्य आरोपी जमानत के लिए अदालत के इस फैसले पर निर्भर नहीं रह सकते.
सीतलवाड़ की ओर से पेश हुए अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि उनके खिलाफ एफआईआर में बताए गए तथ्य कार्यवाही की पुनरावृत्ति हैं, जो जकिया जाफरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के 24 जून के फैसले के साथ समाप्त हो गई. उन्होंने तर्क दिया कि सीतलवाड़ के खिलाफ आरोपित अपराध तो बनता ही नहीं है.
सिब्बल ने कहा कि सीतलवाड़ के खिलाफ गवाही उनके पूर्व कर्मचारी ने दी थी, जिसे उन्होंने नौकरी से निकाल दिया था. उन्होंने तर्क दिया कि विभिन्न अदालतों ने 2002 के दंगों के मामलों में हलफनामे के आधार पर लोगों को दोषी ठहराया है कि सामाजिक कार्यकर्ता (सीतलवाड़) ने (हलफनामे के) संकलन में मदद की, इसलिए सबूतों से छेड़छाड़ करने का कोई सवाल ही उठता है.
गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि जमानत के लिए आवेदन गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है और अदालत को इस पर विचार करने की अनुमति दी जानी चाहिए.
लाइव लॉ के अनुसार, उन्होंने कहा कि एफआईआर में विवरण के अलावा पर्याप्त सामग्री है, जो कथित अपराध में सीतलवाड़ की संलिप्तता की ओर इशारा करती है.
सीतलवाड़ के खिलाफ दर्ज इस मामले की एफआईआर में गुजरात के पूर्व पुलिस आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट भी आरोपी है.
सीतलवाड़, श्रीकुमार और भट्ट के खिलाफ एफआईआर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते 24 जून को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात प्रशासन के कई अन्य शीर्ष अधिकारियों को 2002 के दंगा मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज किए जाने के एक दिन बाद (25 जून) को दर्ज हुई थी.
मालूम हो कि इससे पहले मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे.
एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के एक हिस्से का हवाला दिया गया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘हमें यह प्रतीत होता है कि गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जो उनके अपने ज्ञान के लिए झूठे थे. वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए.’
एफआईआर में तीनों (सीतलवाड़, श्रीकुमार और भट्ट) पर झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है, ताकि कई लोगों को ऐसे अपराध में फंसाया जा सके जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हो.
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की इस कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. जाफरी के पति एहसान जाफरी, जो कांग्रेस के सांसद भी थे, दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मार दिए गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सीतलवाड़ और उनका एनजीओ जकिया जाफरी के साथ सह-याचिकाकर्ता थे.
गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का एक कोच जलाए जाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवक मारे गए थे, जिसके बाद गुजरात में दंगे फैल गए थे.
इससे पहले अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने 30 जुलाई को इस मामले में सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि उनकी रिहाई से गलत काम करने वालों को संदेश जाएगा कि एक व्यक्ति आरोप भी लगा सकता है और उसका दोष माफ भी किया जा सकता है.
सीतलवाड़ और श्रीकुमार साबरमती केंद्रीय कारावस में बंद हैं. श्रीकुमार ने भी जमानत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मामले के तीसरे आरोपी पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने जमानत के लिए आवेदन नहीं किया है. भट्ट पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में जेल में थे, जब उन्हें इस मामले में गिरफ्तार किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)