गुजरात की साबरमती जेल से रिहा किए जाने के बाद तीस्ता सीतलवाड़ को ज़मानत की औपचारिकताओं के लिए सत्र न्यायालय में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें बिना अनुमति देश नहीं छोड़ने को कहा है. सीतलवाड़ को गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साज़िश के लिए बीते जून महीने में गिरफ़्तार किया गया था.
अहमदाबाद: सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ गिरफ्तारी के दो महीने से अधिक समय बाद शनिवार को जेल से बाहर आ गईं. बीते दो सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी थी.
सीतलवाड़ को गुजरात पुलिस ने साल 2002 के गुजरात दंगों की जांच को गुमराह करके ‘निर्दोष लोगों’ को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने की कथित साजिश के लिए बीते जून महीने में गिरफ्तार किया था.
बीते 26 जून को गिरफ्तार की गईं सीतलवाड़ को अहमदबाद स्थित साबरमती सेंट्रल जेल से रिहा किया गया. शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार, उन्हें जमानत की औपचारिकताओं के लिए सत्र न्यायाधीश वीए राणा के समक्ष पेश किया गया था.
विशेष लोक अभियोजक अमित पटेल ने बताया कि सत्र अदालत ने उन्हें 25,000 रुपये का निजी मुचलका भरने और उसकी अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ने को कहा.
शीर्ष अदालत ने अपने दो सितंबर के आदेश में कहा था कि सीतलवाड़ को निचली अदालत के समक्ष पेश किया जाएगा, जो उन्हें ऐसी शर्तों के अधीन अंतरिम जमानत पर रिहा करेगी, जिन्हें वह उचित समझे.
पीठ ने सीतलवाड़ को गुजरात हाईकोर्ट में नियमित जमानत याचिका पर निर्णय होने तक अपना पासपोर्ट निचली अदालत के पास जमा कराने का निर्देश दिया था. अदालत ने सीतलवाड़ को दंगा मामलों में लोगों को फंसाने के लिए सबूत गढ़ने के आरोपों की जांच में संबंधित एजेंसी के साथ सहयोग करने को भी कहा था.
शीर्ष अदालत ने बीते एक सितंबर को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा सीतलवाड़ की जमानत याचिका को सूचीबद्ध करने में देरी का कारण जानना चाहा था और आश्चर्य जताया था कि ‘क्या इस महिला के मामले को अपवाद’ बनाया गया है.
न्यायालय ने इस बात पर भी अचरज जाहिर किया था कि आखिरकार हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत अर्जी पर राज्य सरकार को नोटिस जारी करने के छह सप्ताह बाद 19 सितंबर को याचिका सूचीबद्ध क्यों की थी.
गुजरात हाईकोर्ट ने सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर तीन अगस्त को राज्य सरकार को नोटिस जारी करके मामले की सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख मुकर्रर की थी.
सीतलवाड़ और सह-आरोपी एवं पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार को गुजरात पुलिस ने 25 जून को हिरासत में लिया था और एक अदालत ने उनकी पुलिस हिरासत की अवधि समाप्त होने के बाद उन्हें दो जुलाई को न्यायिक हिरासत में भेज दिया था.
सीतलवाड़ के खिलाफ दर्ज इस मामले की एफआईआर में गुजरात के पूर्व पुलिस आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट भी आरोपी है.
सीतलवाड़, श्रीकुमार और भट्ट के खिलाफ एफआईआर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते 24 जून को गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात प्रशासन के कई अन्य शीर्ष अधिकारियों को 2002 के दंगा मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गई क्लीनचिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज किए जाने के एक दिन बाद (25 जून) को दर्ज हुई थी.
मालूम हो कि इससे पहले मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ और श्रीकुमार गुजरात में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के इशारे पर की गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थे.
एफआईआर में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के एक हिस्से का हवाला दिया गया था, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘हमें यह प्रतीत होता है कि गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जो उनके अपने ज्ञान के लिए झूठे थे. वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए.’
एफआईआर में तीनों (सीतलवाड़, श्रीकुमार और भट्ट) पर झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है, ताकि कई लोगों को ऐसे अपराध में फंसाया जा सके जो मौत की सजा के साथ दंडनीय हो.
सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की इस कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था. जाफरी के पति एहसान जाफरी, जो कांग्रेस के सांसद भी थे, दंगों के दौरान अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार में मार दिए गए थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में सीतलवाड़ और उनका एनजीओ जकिया जाफरी के साथ सह-याचिकाकर्ता थे.
गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस का एक कोच जलाए जाने की घटना में अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवक मारे गए थे, जिसके बाद गुजरात में दंगे फैल गए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)