लोक सेवकों की ओर से किया गया भ्रष्टाचार राष्ट्र के ख़िलाफ़ अपराध: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट ने ‘नौकरी के बदले नकद’ घोटाले की आपराधिक शिकायत संबंधित पक्षों के बीच समझौते के आधार पर निरस्त कर दी थी.

(फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट ने ‘नौकरी के बदले नकद’ घोटाले की आपराधिक शिकायत संबंधित पक्षों के बीच समझौते के आधार पर निरस्त कर दी थी.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोक सेवकों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार शासकीय निकायों और समाज के खिलाफ अपराध है और अदालतें इससे ‘विशिष्ट अदायगी संबंधी मुकदमों’ की तरह नहीं निपट सकतीं.

जस्टिस एसए नज़ीर और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें हाईकोर्ट ने ‘नौकरी के बदले नकद’ घोटाले की आपराधिक शिकायत संबंधित पक्षों के बीच समझौते के आधार पर निरस्त कर दी थी.

न्यायालय ने कहा, ‘यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि एक लोक सेवक की ओर से किया गया भ्रष्टाचार शासकीय निकायों और समाज के खिलाफ बड़ा अपराध है. न्यायालय आधिकारिक पद के दुरुपयोग और भ्रष्ट प्रथाओं को अपनाने से संबंधित मामलों से उस प्रकार से नहीं निपट सकता जैसे किसी विशिष्ट अदायगी के मामले को निपटाया जाता है, जहां भुगतान किए गए धन की वापसी मात्र से अनुबंध धारक संतुष्ट हो सकता है.’

पीठ ने कहा, ‘इसलिए हम मानते हैं कि आपराधिक शिकायत खारिज करने का हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह से गलत था.’

मामले में शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर आरोपी का समर्थन किया था और इस आधार पर मामले को खारिज करने की प्रार्थना की थी कि पीड़ितों का आरोपी के साथ केवल धन का विवाद था और इसे अदालत के बाहर सुलझा लिया गया था.

उन्होंने दलील दी कि दो समूहों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण उनकी शिकायत अधिक गंभीर मुद्दे में परिवर्तित हो गई.

उन्होंने कहा कि मूल रूप से रोजगार हासिल करने के लिए पैसे के भुगतान का दावा करने वाले व्यक्ति ने आरोपी के समर्थन में व्यक्तिगत हलफनामा दायर किया था.

जब संबद्ध याचिका सुनवाई के लिए आई तो राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि घटना साल 2014 में हुई थी और उसी साल आरोपी और पीड़ितों के बीच समझौता हो गया था.

हाईकोर्ट ने इन दलीलों पर ध्यान दिया और आपराधिक शिकायत खारिज कर दी थी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीर्ष अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए अदालतों को अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में सचेत रहना चाहिए, वह भी जब अपराध न केवल शिकायतकर्ता और आरोपी पर बल्कि दूसरों पर भी प्रभाव डालने में सक्षम हों.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)