एल्गार परिषद मामला: आरोपी कार्यकर्ता वर्णन गोंजाल्विस डेंगू से पीड़ित, अस्पताल में भर्ती

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता 65 वर्षीय वर्णन गोंजाल्विस के वकील ने बताया कि वह लगभग 10 दिनों से बीमार हैं. हालांकि तलोजा केंद्रीय जेल के कर्मचारी उन्हें केवल दवा देते रहे और उचित इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करने से इनकार कर दिया था.

मानवाधिकार कार्यकर्ता वर्णन गोंजाल्विस. (फोटो: पीटीआई)

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के आरोपी मानवाधिकार कार्यकर्ता 65 वर्षीय वर्णन गोंजाल्विस के वकील ने बताया कि वह लगभग 10 दिनों से बीमार हैं. हालांकि तलोजा केंद्रीय जेल के कर्मचारी उन्हें केवल दवा देते रहे और उचित इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करने से इनकार कर दिया था.

मानवाधिकार कार्यकर्ता वर्णन गोंजाल्विस. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले के एक आरोपी कार्यकर्ता वर्णन गोंजाल्विस डेंगू से पीड़ित हैं. गोंजाल्विस के वकील ने बृहस्पतिवार को एक विशेष अदालत को इस बारे में सूचित किया, जो चिकित्सा आधार पर अस्थायी जमानत के लिए उनकी अर्जी पर सुनवाई कर रही है.

वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल को मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उन्हें ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है.

वकील के अनुसार, 65 वर्षीय गोंजाल्विस के निमोनिया से भी पीड़ित होने की आशंका है.

चिकित्सा आधार पर अस्थायी जमानत के लिए गोंजाल्विस की अर्जी विशेष एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) अदालत के समक्ष लंबित है. बृहस्पतिवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान वकील ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल डेंगू बुखार से पीड़ित हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, 10 दिन पहले वर्णन गोंजाल्विस को तेज बुखार शुरू था. वह कई बार जेल में बेहोश हो गए थे. हालांकि, तलोजा केंद्रीय जेल के कर्मचारियों ने उन्हें केवल पैरासिटामॉल दिया और अस्पताल में रेफर करने से इनकार कर दिया.

8 सितंबर को उनकी पत्नी और उनकी वकील सुसान अब्राहम के विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत में जाने के बाद अदालत ने एक आदेश जारी किया. तब जाकर आखिरकार उन्हें सरकारी जेजे अस्पताल ले जाया गया. उस समय तक गोंजाल्विस की हालत पहले से खराब हो चुकी थी.

जेजे अस्पताल ने पुष्टि की है कि गोंजाल्विस करीब दो सप्ताह से डेंगू से पीड़ित हैं और उन्हें निमोनिया भी हो सकता है.

मामले में कई कार्यकर्ताओं के आवासों और कार्यालयों पर छापेमारी के बाद गोंजाल्विस को पुणे पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत 2018 में गिरफ्तार किया था.

गोंजाल्विस एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार होने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे. पुणे पुलिस – जिसने 2019 के अंत तक मामले की जांच की थी- ने दावा किया था कि गोंजाल्विस और अन्य आरोपी ‘अर्बन नक्सल’ हैं और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं.

उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजीव गांधी की तरह हत्या की साजिश रचने का भी आरोप है.

इस मामले की जांच को साल 2020 में एनआईए को सौंप दिया गया था. मामले में अदालत में कोई प्रगति नहीं हुई और एनआईए की चार्जशीट में प्रधानमंत्री की हत्या की किसी योजना का उल्लेख नहीं है. हालांकि, भारतीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की स्वतंत्र जांच ने भारतीय राज्य द्वारा किए गए दावों की सत्यता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.

बीते 7 सितंबर को जैसे ही वकीलों और गोंजाल्विस के परिवार को उनकी बीमारी के बारे में पता चला, तब उन्होंने मुंबई में विशेष एनआईए अदालत के समक्ष अस्थायी जमानत के लिए एक आवेदन दायर किया.

गोंजाल्विस के वकील लार्सन फर्टाडो ने आवेदन में कहा है कि वह 7 सितंबर को तलोजा जेल गए थे. मामले के अन्य आरोपियों ने उन्हें सूचित किया था कि गोंजाल्विस की हालत खराब है.

मामले के सह-आरोपी मुंबई के अधिकार कार्यकर्ता सुधीर धावले ने फर्टाडो को बताया कि वह अपनी डायरी में गोंजाल्विस के स्वास्थ्य के बारे में नोट कर रहे हैं. नोट्स के मुताबिक, 30 अगस्त को गोंजाल्विस पहली बार बीमार हुए थे.

नोट्स के अनुसार, इसके 8वें दिन गोंजाल्विस का केवल मलेरिया परीक्षण किया गया. गोंजाल्विस का इलाज कर रहे डॉक्टर ने जेल अधिकारियों से कहा था कि यह टाइफाइड या डेंगू का मामला हो सकता है. हालांकि, जेल अधिकारियों ने परीक्षण का आदेश नहीं दिया.

आवेदन में कहा गया है कि 7 सितंबर को गोंजाल्विस द्वारा तलोजा जेल के अधिकारियों के सामने हाथ जोड़कर याचना करने के बाद ही उन्हें अंततः जेजे अस्पताल ले जाया गया. यहां उन्हें दो घंटे से भी कम समय के लिए ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया और वापस भेज दिया गया.

गुरुवार (8 सितंबर) को अर्जी पर आखिरकार एनआईए कोर्ट और जज आरजे कटारिया ने जेल अधिकारियों को तत्काल पर्याप्त चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का आदेश दिया. गोंजाल्विस को अब अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उन्हें निगरानी में रखा गया है.

न्यायाधीश कटारिया ने तलोजा जेल अधीक्षक यूटी पवार को उचित चिकित्सा करने और इलाज में देरी के कारणों की व्याख्या करने के लिए 12 सितंबर को अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा है.

मालूम हो कि पिछले चार वर्षों में एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई जेल में रहते हुए गंभीर रूप से बीमार पड़े हैं. हर बार उन्हें चिकित्सकीय हस्तक्षेप के लिए निचली अदालत और बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा.

झारखंड के 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता  फादर स्टेन स्वामी का उचित इलाज करने में जेल अधिकारियों की देरी के कारण अंतत: उनकी पांच जुलाई 2021 को मृत्यु हो गई थी. कैदियों के अधिकार कार्यकर्ता गोंजाल्विस ने उनके अंतिम दिनों में स्वामी की देखभाल की थी.

एक अन्य कैदी, वरवरा राव जेल में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्थायी चिकित्सा जमानत दी थी.

पुलिस ने दावा किया था कि 31 दिसंबर, 2017 को एल्गार परिषद के सम्मेलन में भड़काऊ भाषण के कारण अगले दिन पुणे जिले के भीमा-कोरगांव गांव के आसपास हिंसा भड़की थी. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई अन्य घायल हो गए थे.

मालूम हो कि 2018 में शुरू हुए एल्गार परिषद मामले की जांच में कई मोड़ आ चुके हैं, जहां हर चार्जशीट में नए-नए दावे किए गए. मामले की शुरुआत हुई इस दावे से कि ‘अर्बन नक्सल’ का समूह ‘राजीव गांधी की हत्या’ की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बना रहा है.

यह विस्फोटक दावा पुणे पुलिस ने किया था, जिसके फौरन बाद 6 जून 2018 को पांच लोगों- रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता सुधीर धावले, महेश राउत और शिक्षाविद शोमा सेन को गिरफ्तार किया गया था.

इसके बाद अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)