‘इंडिया’ को ‘हिंदिया’ में न बदले भाजपा, ‘हिंदी दिवस’ की जगह ‘भारतीय भाषा दिवस’ मनाएं: स्टालिन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि 'इंडिया’ अपनी अखंडता के लिए जाना जाता है और ‘हिंदिया’ के नाम पर देश को विभाजित करने के उद्देश्य से कोई प्रयास नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार यह ग़लत धारणा थोप रही है कि केवल हिंदी ही भारत के लोगों को एकजुट कर सकती है.

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि ‘इंडिया’ अपनी अखंडता के लिए जाना जाता है और ‘हिंदिया’ के नाम पर देश को विभाजित करने के उद्देश्य से कोई प्रयास नहीं होना चाहिए. केंद्र सरकार यह ग़लत धारणा थोप रही है कि केवल हिंदी ही भारत के लोगों को एकजुट कर सकती है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो साभार: फेसबुक पेज)

नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ‘इंडिया’ को ‘हिंदिया’ में बदलने की कोशिश नहीं करना चाहिए.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सूरत में आयोजित हुए अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक भाषण दिया था, जिसके जवाब में स्टालिन ने उक्त बयान दिया.

उस दौरान शाह ने बुधवार को हिंदी दिवस के अवसर पर बोलते हुए कहा था कि हिंदी प्रतियोगी नहीं बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं की सखी (मित्र) है.

स्टालिन ने ‘हिंदी थोपने’ के खिलाफ अपनी पार्टी के ऐतिहासिक रुख का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘इंडिया’ (भारत) अपनी अखंडता के लिए जाना जाता है और ‘हिंदिया’ के नाम पर देश को विभाजित करने के उद्देश्य से कोई प्रयास नहीं होना चाहिए.

साथ ही, स्टालिन ने कहा कि देश को ‘हिंदी दिवस’ के बजाय ‘भारतीय भाषा दिवस’ मनाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि हिंदी न तो राष्ट्रीय भाषा है और न ही एकमात्र आधिकारिक भाषा है.

स्टालिन ने शाह से आग्रह किया, ‘मैं आग्रह करता हूं कि ‘हिंदी दिवस’ मनाने के बजाय ‘भारतीय भाषा दिवस’ मनाकर संस्कृति और इतिहास को मजबूत किया जाए.’

उन्होंने कहा,’केंद्र को हिंदी के विकास में खर्च किए संसाधानों और अन्य भाषाओं के विकास में खर्च किए संसाधनों के बीच के भारी अंतर को पाटना चाहिए. केंद्र केवल हिंदी और संस्कृत को ही एनईपी (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) के तहत थोप रहा है.’

स्टालिन ने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं को हिंदी के समान आधिकारिक बनाया जाना चाहिए.

उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री से मांग की कि संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध तमिल सहित सभी 22 भारतीय भाषाओं को केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा बनाया जाए.

वहीं, उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ‘हिंदी को एक भाषा के रूप में थोपने के अलावा, सरकार यह गलत धारणा भी थोप रही है कि केवल हिंदी ही भारत के लोगों को एकजुट कर सकती है.’

उन्होंने कहा, ‘हिंदी को प्राथमिकता देने वाला व्यवहार विभिन्न राज्यों के लोगों में अवांछित असंतोष पैदा करता है और उन्हें विभाजित करता है.’

वहीं, उनकी पार्टी द्रमुक की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान के मुताबिक स्टालिन ने कहा कि देश में कई भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं और अमित शाह द्वारा हिंदी की वकालत करना राष्ट्र की विविधता में एकता के आदर्श के खिलाफ है.

बता दें कि बुधवार को शाह ने कहा था कि हिंदी के समृद्ध होने से देश की सभी स्थानीय भाषाएं समृद्ध होंगी व स्थानीय भाषाओं की समृद्धि से हिंदी समृद्ध होगी.

उन्होंने कहा था, ‘जो लोग ये अपप्रचार करते है कि हिंदी स्थानीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धी भाषा है, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि हिंदी प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि सभी स्थानीय भाषाओं की सखी है.’

गौरतलब है कि केंद्र द्वारा हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. यह पहली बार नहीं है जब स्टालिन ने अमित शाह द्वारा हिंदी भाषा को ‘थोपने’ को लेकर नाखुशी जाहिर की है.

इस साल अप्रैल में अमित शाह ने कहा था कि हिंदी, अंग्रेजी का विकल्प हो सकती है.

दिल्ली में संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए शाह ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा.

गृह मंत्री ने कहा था कि अन्य भाषा वाले राज्यों के नागरिक जब आपस में संवाद करें तो वह ‘भारत की भाषा’ में हो.

इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एमके स्टालिन ने कहा था कि शाह का हिंदी पर जोर भारत की ‘अखंडता और बहुलवाद’ के खिलाफ है और यह अभियान सफल नहीं होगा.

ज्ञात हो कि स्टालिन की पार्टी द्रमुक हिंदी विरोधी आंदोलनों में आगे रही है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)