गुजरात: 2016 के विरोध प्रदर्शन मामले में कोर्ट ने जिग्नेश मेवाणी को छह महीने की सज़ा सुनाई

गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जिग्नेश मेवाणी को 2016 के एक विरोध प्रदर्शन से जुड़े मामले में सड़क अवरुद्ध करने को लेकर यह सज़ा सुनाई गई है. इससे पहले मई महीने में गुजरात की एक अदालत ने साल 2017 में बगैर अनुमति के ‘आज़ादी रैली’ निकालने के लिए मेवाणी को तीन महीने क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

/
जिग्नेश मेवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक)

गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जिग्नेश मेवाणी को 2016 के एक विरोध प्रदर्शन से जुड़े मामले में सड़क अवरुद्ध करने को लेकर यह सज़ा सुनाई गई है. इससे पहले मई महीने में गुजरात की एक अदालत ने साल 2017 में बगैर अनुमति के ‘आज़ादी रैली’ निकालने के लिए मेवाणी को तीन महीने क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

जिग्नेश मेवाणी. (फोटो साभार: फेसबुक)

अहमदाबाद: अहमदाबाद की एक अदालत ने शुक्रवार को गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष एवं विधायक जिग्नेश मेवाणी तथा 18 अन्य लोगों को 2016 के एक विरोध प्रदर्शन से जुड़े मामले में ‘दंगा भड़काने एवं गैरकानूनी तरीके से भीड़ एकत्र करने’ के आरोप में छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई.

यह मामला मेवाणी और उनके सहयोगियों द्वारा एक सड़क को अवरुद्ध करने से जुड़ा था.

अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पीएन गोस्वामी ने मेवाणी और अन्य पर जुर्माना भी लगाया, हालांकि उनकी सजा को 17 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया, ताकि वे अपील कर सकें.

मेवाणी के अलावा अन्य आरोपी राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच से जुड़े हुए हैं. जिग्नेश और 19 अन्य के खिलाफ 2016 में यहां विश्वविद्यालय थाने में एक मामला दर्ज किया गया था.

यह मामला गुजरात विश्वविद्यालय के कानून विभाग के एक निर्माणाधीन भवन का नाम डॉ. बीआर आंबेडकर के नाम पर रखने की मांग पर जोर देने के लिए सड़क जाम करने से संबंधित था.

भारतीय दंड संहिता की धारा 143 (गैरकानूनी तरीके से एकत्र होना) और 147 (दंगा) के साथ-साथ गुजरात पुलिस कानून की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी. मामले की सुनवाई के दौरान एक आरोपी की मौत हो गई.

प्रमुख दलित नेता मेवाणी 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुए थे. बाद में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अपनी गुजरात इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था.

उल्लेखनीय है कि इससे पहले मई महीने में गुजरात की एक अदालत ने साल 2017 में मेहसाणा से बनासकांठा ज़िले के धनेरा तक बगैर अनुमति के ‘आज़ादी रैली’ निकालने के लिए निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी और नौ अन्य लोगों को तीन महीने क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

मेवाणी को उसके एक हफ्ते पहले ही असम पुलिस द्वारा दर्ज एक मामले में ज़मानत पर रिहा किया गया था. 19 अप्रैल को असम पुलिस ने मेवाणी को गुजरात से गिरफ्तार किया गया था और पूर्वोत्तर राज्य असम ले गई थी.

असम पुलिस ने मेवाणी के खिलाफ यह कार्रवाई उनके द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लेकर एक कथित ट्वीट किए जाने के बाद की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री मोदी ‘गोडसे को भगवान मानते हैं.’ ट्वीट से संबंधित मामले में 25 अप्रैल को जमानत मिलने के तुरंत बाद पुलिस ने उन्हें एक  महिला पुलिसकर्मी से कथित तौर पर छेड़छाड़ के आरोप में फिर गिरफ्तार किया था.

 26 अप्रैल को बारपेटा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मुकुल चेतिया ने मेवाणी को जमानत देने से इनकार करते हुए उन्हें पांच दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया था. इसके बाद मेवाणी ने 28 अप्रैल को नई जमानत याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई के बाद उन्हें जमानत मिली थी.

बारपेटा जिला न्यायाधीश ने 29 अप्रैल को मेवाणी को जमानत देते हुए कहा था कि पुलिस ने उन्हें हिरासत में रखने के लिए छेड़छाड़ का झूठा मामला गढ़ा था. अदालत ने ‘झूठी एफआईआर’ दर्ज करने के लिए असम पुलिस की खिंचाई भी की थी.

मेवाणी भाजपा सरकार के मुखर आलोचक रहे हैं. असम से रिहा होने के बाद उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय से की गई एक प्रेस वार्ता में कहा था कि उनके ख़िलाफ़ दर्ज मामले गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें ‘बदनाम करने’ की ‘पूर्व नियोजित साज़िश’ का हिस्सा थे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)