सुप्रीम कोर्ट उद्योगपति रतन टाटा की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें टेप के लीक होने में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई थी.
नई दिल्ली: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सुप्रीम कोर्ट को बुधवार को अवगत कराया कि कॉरपोरेट घरानों के लिए लॉबी करने वाली नीरा राडिया की कुछ नेताओं, कारोबारियों, मीडियाकर्मियों एवं अन्य लोगों से हुई बातचीत के टेप की जांच में कोई भी आपराधिक तत्व नहीं मिला है.
न्यायालय ने सीबीआई की इन दलीलों का संज्ञान लेते हुए उसे इस मामले में स्थिति रिपोर्ट (Status Report) पेश करने का निर्देश दिया.
सीबीआई की ओर से प्रस्तुत अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ से कहा कि उद्योगपति रतन टाटा द्वारा दायर याचिका, जिसमें राडिया टेप सामने आने के बाद निजता के अधिकार की सुरक्षा की मांग की गई है, को शीर्ष अदालत के निजता के अधिकार के फैसले को ध्यान में रखते हुए निपटाया जा सकता है.
इस पीठ में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं.
रतन टाटा की याचिका में राडिया का टेप सामने आने के मद्देनजर निजता के अधिकार की रक्षा का अनुरोध किया गया था.
भाटी ने कहा, ‘मुझे आपको सूचित करना चाहिए कि सीबीआई को आपके आधिपत्य द्वारा इन सभी बातचीत की जांच करने का निर्देश दिया गया था. 14 प्रारंभिक जांच की गईं और रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में आपके समक्ष रखा गया. उनमें कोई आपराधिक तत्व नहीं पाया गया है. साथ ही, फोन टैपिंग को लेकर दिशा-निर्देश भी हैं.’
एएसजी ने कहा कि निजता के अधिकार से संबंधित फैसले के बाद अब इस मामले में कुछ नहीं बचा है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह दशहरा अवकाश के बाद इस मामले की सुनवाई करेगी, क्योंकि अगले सप्ताह संविधान पीठ बैठ रही है.
पीठ ने कहा, ‘इस बीच, सीबीआई स्थिति रिपोर्ट अपडेट करके पेश कर सकती है.’
इसके साथ ही अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर कर दी. टाटा की ओर से पेश वकील ने सुनवाई शुरू होने के साथ ही स्थगन की मांग की.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में जस्टिस (सेवानिवृत्त) केएस पुट्टास्वामी मामले में अपने आदेश में कहा था कि निजता संविधान संरक्षित अधिकार है.
याचिकाकर्ता के वकील ने न्यायालय को सूचित किया कि गैर सरकारी संगठन सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) ने भी एक याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि इन टेप की बातचीत को व्यापक जनहित में सार्वजनिक किया जाए.
सीपीआईएल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि राडिया दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण कंपनियों के लिए लॉबी करती थीं और इस दौरान सार्वजनिक जीवन वाले व्यक्तियों को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी, जिसका खुलासा हुआ था.
शीर्ष अदालत ने 2013 में कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया की टेप की गई बातचीत के विश्लेषण से उत्पन्न छह मुद्दों की सीबीआई जांच का निर्देश दिया था.
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘राडिया की बातचीत बाहरी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से निजी उद्यमों की गहरी चाल को दर्शाती है.’
सुप्रीम कोर्ट टाटा की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें टेप के लीक होने में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि यह उनके जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार शामिल है.
उन्होंने दलील दी थी कि कॉरपोरेट लॉबिस्ट के रूप में राडिया का फोन कथित कर चोरी की जांच के लिए टैप किया गया था और टेप का इस्तेमाल किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है.
राडिया के फोन की निगरानी के हिस्से के तौर पर बातचीत रिकॉर्ड की गई थी, क्योंकि 16 नवंबर 2017 को उनके खिलाफ तत्कालीन वित्त मंत्री से एक शिकायत की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 9 सालों के भीतर उन्होंने 300 करोड़ रुपये का व्यापारिक साम्राज्य खड़ा कर लिया.
सरकार ने राडिया की 180 दिनों की बातचीत को पहले 20 अगस्त 2008 से 60 दिनों के लिए और फिर 19 अक्टूबर से 60 दिनों के लिए रिकॉर्ड किया था. बाद में 11 मई 2009 को एक नए आदेश के बाद राडिया के फोन को फिर से 60 दिनों के लिए निगरानी में रखना पड़ा था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)