अडानी की फर्म को ग़लत भूमि आवंटन के चलते गुजरात सरकार को 58 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ

गुजरात विधानसभा के समक्ष पेश अपनी पांचवीं रिपोर्ट में लोक लेखा समिति ने बताया है कि वन और पर्यावरण विभाग द्वारा मुंद्रा पोर्ट और कच्छ में स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) में अडानी केमिकल्स को दी गई वन भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी ने राज्य सरकार को 58.64 करोड़ रुपये कम भुगतान किया.

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(फोटो: रॉयटर्स)

गुजरात विधानसभा के समक्ष पेश अपनी पांचवीं रिपोर्ट में लोक लेखा समिति ने बताया है कि वन और पर्यावरण विभाग द्वारा मुंद्रा पोर्ट और कच्छ में स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) में अडानी केमिकल्स को दी गई वन भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी ने राज्य सरकार को 58.64 करोड़ रुपये कम भुगतान किया.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: बुधवार को गुजरात विधानसभा के समक्ष पेश अपनी पांचवीं रिपोर्ट में लोक लेखा समिति (पीएसी) ने बताया है कि वन और पर्यावरण विभाग द्वारा मुंद्रा पोर्ट और कच्छ में स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) में अडानी केमिकल्स को दी गई वन भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी ने राज्य सरकार 58.64 करोड़ रुपये कम भुगतान किया.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पीएसी ने तीन महीने में कंपनी से पूरी राशि वसूल करने और भूमि के अनुचित वर्गीकरण, राज्य सरकार को नुकसान और कंपनी को ‘अनुचित’ लाभ पहुंचाने के लिए संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की है.

अपनी रिपोर्ट में कांग्रेस विधायक पुंजा वंश की अध्यक्षता वाली पीएसी ने भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की एक ऑडिट रिपोर्ट का हवाला दिया है जिसमें भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी को हुए 58.64 करोड़ रुपये के ‘अनुचित’ लाभ का जिक्र किया गया है.

पीएसी की रिपोर्ट के अनुसार, अडानी केमिकल्स लिमिटेड के एक प्रस्ताव के संबंध में केंद्र सरकार ने 2004 में कच्छ जिले के मुंद्रा और ध्राब गांवों में क्रमशः 1,840 हेक्टेयर और 168.42 हेक्टेयर भूमि आवंटित करने की सैद्धांतिक मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च, 2008 के एक फैसले में भारत के जंगलों को छह स्थितिजन्य श्रेणियों में वर्गीकृत करते हुए इसका शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) भी तय किया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2009 में राज्य सरकार ने मेसर्स अडानी की एक नई प्रस्तावित योजना को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के सामने पेश किया और केंद्र ने फरवरी 2009 में सैद्धांतिक मंजूरी दी.

एनपीवी को छह श्रेणियों को तय करने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, कच्छ में इको क्लास II (7.30 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के एनपीवी के साथ) और इको क्लास IV (4.30 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर के एनपीवी के साथ) के तहत वर्गीकृत किया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर 2008 में, वन संरक्षक, भुज ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में पाया था कि विचाराधीन भूमि दलदली थी और क्रीक क्षेत्र मैंग्रोव से भरा था. इसके बावजूद उप वन संरक्षक (कच्छ पूर्व) ने इस भूमि को इको क्लास IV के तहत रखते हुए कंपनी से 2008.42 हेक्टेयर वन भूमि के एनपीवी के रूप में 87.97 करोड़ रुपये वसूल किए.

पीएसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वन और पर्यावरण विभाग ने समिति को भेजे गए एक लिखित उत्तर में बताया था कि हस्तांतरित भूमि वास्तव में इको क्लास IV के अंतर्गत आती है.

रिपोर्ट में समिति की 25 सितंबर, 2019 की अपनी उस बैठक का उल्लेख भी किया गया है, जिसमें विभाग के एक प्रतिनिधि ने इस बात से इनकार किया था कि विचाराधीन भूमि इको क्लास II के अंतर्गत आती है. यह भी कहा गया है कि इको क्लास IV वर्गीकरण के तौर पर भूमि का एनपीवी सुप्रीम कोर्ट के 2008 के फैसले के अनुसार तय किया गया था जिसे केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन मिलने के बाद कंपनी से वसूल किया गया.

पीएसी ने दर्ज किया है, ‘समिति का मानना है कि मुंद्रा पोर्ट और सेज़ के लिए वन भूमि के उद्देश्य परिवर्तन के लिए मेसर्स अडानी से इको क्लास II के अनुसार एनपीवी की वसूली के बजाय विभाग ने इको क्लास IV के अनुसार एनपीवी की लिया. विभाग के इस फैसले से सरकार को 58.67 करोड़ रुपये की कम प्राप्त हुए.

इसने भूमि के अनुचित वर्गीकरण के लिए जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने, तीन महीने के भीतर कंपनी से इको क्लास II के अनुसार एनपीवी की वसूली करने और ऐसा होने के बाद समिति को सूचित करने की सिफारिश की है.

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