कोर्ट का इशरत जहां मामले की जांच करने वाले आईपीएस अधिकारी की बर्ख़ास्तगी रोकने से इनकार

गुजरात में इशरत जहां की कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की जांच करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले बर्ख़ास्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के बाद अब दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बर्ख़ास्तगी के आदेश में उसके हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

गुजरात में इशरत जहां की कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की जांच करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले बर्ख़ास्त कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक के बाद अब दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बर्ख़ास्तगी के आदेश में उसके हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच में मदद करने वाले वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सतीश चंद्र वर्मा को उनकी निर्धारित सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले बर्खास्त करने के केंद्र के आदेश पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया.

हालांकि, अदालत ने केंद्र से वर्मा की बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली याचिका पर आठ सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा.

वर्मा को 30 सितंबर को उनकी निर्धारित सेवानिवृत्ति से एक महीने पहले 30 अगस्त को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था, जब विभागीय जांच में उन्हें ‘मीडिया के साथ बातचीत’ सहित विभिन्न आरोपों का दोषी पाया गया था.

उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद वर्मा ने उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसमें उन्हें अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी गई थी.

शीर्ष अदालत ने 19 सितंबर को केंद्र के बर्खास्तगी आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी और कहा था कि यह उच्च न्यायालय के ऊपर है कि वह इस सवाल पर विचार करे कि बर्खास्तगी के आदेश पर रोक जारी रहेगी या नहीं.

उच्च न्यायालय में सोमवार को जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा, ‘हमने साक्षात्कार के लिखित विवरण का अवलोकन करने के बाद उसे रिकॉर्ड में रखा है और जांच रिपोर्ट भी देखी है.’

पीठ ने कहा, ‘हमारा विचार है कि इस स्तर पर 30 अगस्त, 2022 के बर्खास्तगी के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता को किसी भी स्थिति में 30 सितंबर, 2022 को सेवानिवृत्त होना है. नतीजतन, हम बर्खास्तगी के आदेश को रोकने या इस पर हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं.’

उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, वर्मा के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने 2 और 3 मार्च, 2016 को मीडिया के साथ बातचीत की और गुवाहाटी में नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन के आधिकारिक परिसर में एक समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार में बिना किसी सक्षम प्राधिकारी से अनुमति के उन मामलों पर अनधिकृत रूप से बात की, जो उनके कर्तव्यों के दायरे में नहीं थे.

उन पर मुठभेड़ के संबंध में मीडिया में बयान देने का आरोप लगाया गया था, जिसके कारण केंद्र और गुजरात सरकारों की आलोचना हुई और इसने पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया.

यह भी आरोप लगाया गया कि वर्मा ने यह स्पष्ट नहीं किया कि उनके द्वारा व्यक्त विचार निजी थे और यह सरकार की राय नहीं थी.

वर्मा के वकील ने कहा कि वह इस बात पर विवाद नहीं करेंगे कि एक समाचार चैनल के एक रिपोर्टर को उनके मुवक्किल ने साक्षात्कार दिया था, लेकिन दावा किया कि यह दबाव वाली परिस्थितियों में दिया गया था.

अदालत ने कहा कि इस पर विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता ने एक समाचार चैनल को उन पहलुओं से संबंधित साक्षात्कार दिया था, जो साक्षात्कार के समय उसके कर्तव्यों के दायरे में नहीं थे. अदालत ने कहा कि यह साक्षात्कार उन पहलुओं से भी संबंधित था, जो विचाराधीन थे.

शुरुआत में वर्मा ने विभागीय जांच को चुनौती दी थी, लेकिन बाद में उन्होंने उच्च न्यायालय से अपनी याचिका में संशोधन करने का आग्रह किया कि वह अपने बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देना चाहते हैं.

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज और केंद्र सरकार के स्थायी वकील हरीश वैद्यनाथन ने कहा कि उन्हें संशोधन की अनुमति देने पर कोई आपत्ति नहीं है.

अदालत ने अधिकारी को याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी.

यदि बर्खास्तगी प्रभावी हो जाती है, तो वर्मा पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ के हकदार नहीं होंगे. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वर्मा आखिरी बार तमिलनाडु में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में महानिरीक्षक के रूप में तैनात थे.

वर्मा ने अप्रैल 2010 से अक्टूबर 2011 के बीच इशरत जहां मामले की जांच की थी. गुजरात उच्च न्यायालय ने बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी, लेकिन वर्मा अदालत के आदेश पर जांच दल का हिस्सा बने रहे.

जांच में गुजरात के छह पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें आईपीएस अधिकारी पीपी पांडे, डीजी वंजारा, जीएल सिंघल और एनके अमीन शामिल हैं.

मालूम हो कि अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस के साथ कथित फर्जी मुठभेड़ में इशरत जहां, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर मारे गए थे. इशरत जहां मुंबई के समीप मुंब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा थीं.

पुलिस ने दावा किया था कि ये चारों लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की आतंकी साजिश रच रहे थे. हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच टीम ने मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था. इसके बाद सीबीआई ने कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)