केंद्र सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट को बताया- ईशा फाउंडेशन को पर्यावरण मंज़ूरी से छूट प्राप्त है

इस साल जनवरी में तमिलनाडु सरकार ने जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के ख़िलाफ़ यह आरोप लगाते हुए मुक़दमा दायर किया था कि इसने केंद्र सरकार की 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत आवश्यक मंज़ूरी लिए बिना कोयंबटूर में अपने परिसर का निर्माण किया है.

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ईशा फाउंडेशन के प्रमुख जग्गी वासुदेव. (फोटो साभार: ट्विटर)

इस साल जनवरी में तमिलनाडु सरकार ने जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के ख़िलाफ़ यह आरोप लगाते हुए मुक़दमा दायर किया था कि इसने केंद्र सरकार की 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत आवश्यक मंज़ूरी लिए बिना कोयंबटूर में अपने परिसर का निर्माण किया है.

ईशा फाउंडेशन के प्रमुख जग्गी वासुदेव. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार (26 सितंबर) को मद्रास हाईकोर्ट को बताया कि सद्गुरु जग्गी वासुदेव का ईशा फाउंडेशन अपने कोयंबटूर परिसर में 2006 से 2020 के बीच हुए निर्माण के लिए एक शैक्षणिक संस्थान के तौर पर पर्यावरण मंजूरी से छूट का दावा कर सकता है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी. राजा और जस्टिस डी. कृष्ण कुमार की दो सदस्यीय पीठ के समक्ष केंद्र सरकारी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता आर. शंकरनारायणन ने बताया कि 2014 के पर्यावरण संरक्षण संशोधन नियम शैक्षणिक संस्थानों, औद्योगिक इकाइयों और अस्पतालों को इस तरह की मंजूरी से छूट प्रदान करते हैं.

उन्होंने कहा कि ईशा फाउंडेशन ‘शिक्षा को बढ़ावा देने वाला संस्थान’ होने के आधार पर ऐसी छूट का दावा कर सकता है और छूट का मकसद ‘उत्पीड़न को रोकना व संतुलन बनाना’ था.

इस साल जनवरी में तमिलनाडु सरकार ने यह आरोप लगाते हुए फाउंडेशन के खिलाफ मुकदमा दायर किया था कि इसने केंद्र सरकार की 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत आवश्यक मंजूरी हासिल किए बिना निर्माण किया था.

ईशा का परिसर कोयंबटूर में वेल्लिंगिरी पहाड़ों की तलहटी में 150 एकड़ की हरी-भरी भूमि में फैला हुआ है. यह पहली बार नहीं है जब फाउंडेशन पर पर्यावरण से संबंधित नियमों के उल्लंघन के आरोप लगे थे.

बाद में, फाउंडेशन ने तमिलनाडु सरकार की कार्रवाई को यह कहते हुए चुनौती दी थी कि 2014 के पर्यावरण संरक्षण संशोधन नियम, 2006 के नियमों का विस्तार थे और केवल यह रेखांकित करने के लिए लाए गए थे कि शैक्षणिक संस्थाएं, औद्योगिक इकाइयां, हॉस्टल, अस्पताल आदि पर्यावरण मंजूरी की पूर्वानुमति से छूट का लाभ उठा सकते हैं.

राज्य सरकार की कार्रवाई को ‘अवैध’ बताते हुए फाउंडेशन ने कहा था कि 2014 के संशोधन ने शैक्षणिक संस्थानों को ‘पूर्वव्यापी छूट’ प्रदान की थी. इसने यह भी कहा था कि वह नियमों के आने से भी पहले से 1994 से अपने परिसर में निर्माण कर रहा था.

तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता आर. षुनमुगसुंदरम ने पहले कहा था कि यह केंद्र सरकार पर है कि वह फाउंडेशन को छूट पर अपना रुख स्पष्ट करे.

सोमवार की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने शुरुआत में छूट को लेकर केंद्र सरकार की खिंचाई की लेकिन अंत में अपना रुख बदल लिया.

बार एंड बेंच के मुताबिक कोर्ट ने शुरुआत में कहा, ‘क्या शिक्षण संस्थान कानून से ऊपर हैं? आप ही हैं जो नियम बनाते हैं और फिर आप खुद छूट देते हैं.’

हालांकि, कुछ क्षण बाद जस्टिस टी. राजा ने कहा कि इस तरह की छूट के अभाव में ‘कोडाइकनाल इंटरनेशनल स्कूल और दून स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थान बचेंगे ही नहीं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘उस स्थिति में, ऊटी और कोडाइकनाल जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की कभी शिक्षा तक पहुंच ही नहीं होगी.’

मामले में बुधवार (28 सितंबर) को आगे की सुनवाई होगी.