पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने शाहजहांपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का रुख़ किया था, जिसमें उनके ख़िलाफ़ दर्ज बलात्कार के मामले को वापस लेने की मांग वाली राज्य सरकार की याचिका को अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को शाहजहांपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद सरस्वती के खिलाफ बलात्कार के मामले को वापस लेने की मांग के राज्य सरकार के आवेदन को अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की पीठ ने सरस्वती के खिलाफ मामला वापस लेने के फैसले को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार की भी जमकर खिंचाई की.
पीठ ने टिप्पणी की कि शाहजहांपुर के जिला मजिस्ट्रेट आरोपी के खिलाफ अभियोजन की वापसी के लिए एक भी अच्छा कारण बताने में विफल रहे. अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत दायर इस प्रकार की याचिकाओं में ठोस और तथ्यात्मक कारण बताए जाने चाहिए.
अदालत ने वरिष्ठ सरकारी वकील से कहा कि वे अपने राजनीतिक आकाओं के सामने नतमस्तक हो गए हैं.
अदालत ने टिप्पणी की, ‘वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी ने यह तक उल्लेख नहीं किया है कि किस सामग्री के आधार पर उन्होंने अपने ‘स्वतंत्र मष्तिष्क’ का इस्तेमाल किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मुकदमे की वापसी से न्याय होगा या यह व्यापक जनहित में है. सिर्फ ‘स्वतंत्र मस्तिष्क’ शब्दावली का उल्लेख कर देना गंभीर शक पैदा करता है कि संबंधित वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी क्या अदालत के अधिकारी हैं या कार्यपालिका के एजेंट हैं.’
अदालत ने कहा कि वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी राज्य सरकार के इशारे पर नाच रहे हैं. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. वह कोर्ट के भी अधिकारी हैं, इसलिए उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए.
याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने कहा, ‘निचली अदालत के फैसले पर गौर करने के बाद इस अदालत का विचार है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की संपूर्ण प्रक्रिया, उच्चतम न्यायालय द्वारा तय मानकों के अनुरूप नहीं है और इस तरह से यह अदालत इसमें हस्तक्षेप करना ठीक नहीं समझती.’
गौरतलब है कि स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने शाहजहांपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को चुनौती देने के लिए अदालत का रुख किया था, जिसमें उनके खिलाफ बलात्कार का मामला वापस लेने की मांग वाली राज्य सरकार की याचिका (सीआरपीसी की धारा 321 के तहत) को अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था.
सीआरपीसी की धारा 321 सरकारी वकील या सहायक सरकारी वकील को किसी भी व्यक्ति पर से मुकदमा वापस लेने का अधिकार देती है. इसके लिए अदालत की अनुमति अनिवार्य होती है.
बता दें कि अगस्त 2019 में शाहजहांपुर स्थित स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय में पढ़ने वाली एक छात्रा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो अपलोड कर चिन्मयानंद पर शारीरिक शोषण तथा कई लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने का आरोप लगाया था. इसके साथ ही यह भी कहा था कि उन्हें और उनके परिवार को जान का खतरा है.
इस मामले में पीड़िता के पिता ने कोतवाली शाहजहांपुर में अपहरण और जान से मारने के आरोप में विभिन्न धाराओं के तहत चिन्मयानंद के विरुद्ध मामला दर्ज कराया था लेकिन इससे पहले ही चिन्मयानंद के अधिवक्ता ओम सिंह ने पीड़िता के पिता के खिलाफ पांच करोड़ रुपये की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज करा दिया.
इस बीच छात्रा गायब हो गई थीं और कुछ दिन बाद वे राजस्थान में मिली थीं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उन्हें शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया गया था और तभी अदालत ने एसआईटी को मामले की जांच का निर्देश दिया था.
इस मामले में चिन्मयानंद को 20 सितंबर 2019 को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. अक्टूबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिन्मयानंद को जमानत दे दी. इसे लेकर काफी आलोचना भी हुई थी.
बाद में पीड़िता अपने बयान से पलट गई थीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)