11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कोई नेत्र बैंक नहीं है: आरटीआई

आरटीआई आवेदन से मिले आधिकारिक आकड़ों के मुताबिक, देश में अभी कुल 320 नेत्र बैंक हैं. त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा मिजोरम जैसे राज्यों में महज एक नेत्र बैंक है. महाराष्ट्र में सबसे अधिक 77 नेत्र बैंक हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 41, कर्नाटक में 32 और गुजरात में 25 नेत्र बैंक हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, देश में अभी कुल 320 नेत्र बैंक हैं. त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा मिजोरम जैसे राज्यों में महज एक नेत्र बैंक है. महाराष्ट्र में सबसे अधिक 77 नेत्र बैंक हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 41, कर्नाटक में 32 और गुजरात में 25 नेत्र बैंक हैं.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: गोवा और जम्मू कश्मीर समेत 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अभी तक कोई नेत्र बैंक नहीं है. आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है.

हालांकि, डॉक्टरों का कहना है कि अकेले ऐसे बैंकों का होना उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है क्योंकि विशेष रूप से कोविड-19 महामारी को देखते हुए नेत्र दाताओं की मांग में वृद्धि हुई है.

मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता चंद्र शेखर गौड़ द्वारा दायर सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर मिले जवाब के अनुसार, देश में अभी कुल 320 नेत्र बैंक हैं.

इसमें कहा गया है कि 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश- अंडमान और निकोबार द्वीप, अरुणाचल प्रदेश, दादर और नागर हवेली, दमन और दीव, गोवा, जम्मू कश्मीर, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और सिक्किम में कोई नेत्र बैंक नहीं है.

डॉ. श्रॉफ्स चैरिटी आई हॉस्पिटल में नेत्र बैंक की चिकित्सा निदेशक डॉ. मनीषा आचार्य ने कहा कि भारत में कुल 750 नेत्र बैंक हैं लेकिन उनमें से कुछ ही पूरी तरह काम कर रहे हैं, सभी साजो-सामान से लैस हैं और देशभर में 80 प्रतिशत कॉर्निया संग्रह के लिए जिम्मेदार हैं.

आचार्य ने कहा, ‘देशव्यापी नेत्र बैंकिंग नेटवर्क वक्त की जरूरत है और साजो-सामान से लैस एक नेत्र बैंक में नेत्र संग्रह के लिए प्रशिक्षित पेशेवर होने चाहिए. यह एक समाधान हो सकता है, क्योंकि एक नेत्र बैंक स्थापित करने में बड़े निवेश और कई सरकारी नियामक संस्थाओं की मंजूरी की आवश्यकता होती है.’

आंकड़ों के अनुसार, त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा मिजोरम जैसे राज्यों में महज एक नेत्र बैंक है. महाराष्ट्र में सबसे अधिक 77 नेत्र बैंक हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 41, कर्नाटक में 32 और गुजरात में 25 नेत्र बैंक हैं.

गुड़गांव के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में नेत्र रोग विज्ञान की निदेशक डॉ. अनिता सेठी ने कहा कि असल समस्या नेत्रदान को लेकर जागरूकता की कमी की है.

उन्होंने कहा, ‘लोगों को पता ही नहीं है कि नेत्रदान क्या होता है. जब अधिक से अधिक नेत्रदान होंगे, और लोग अपनी आंखों को दान देने के लिए आगे आएंगे, तभी हमारे पास सैकड़ों और नेत्र बैंक हो सकते हैं. इसलिए हमें नेत्र बैंक के बजाय नेत्रदान के बारे में अधिक जागरूकता फैलानी चाहिए, क्योंकि नेत्र बैंक केवल एक स्थान है जहां दान किए गए नेत्र रखे जाते हैं.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सेठी ने कहा कि अधिक आबादी वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जागरूकता और नेत्र बैंकों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.

दिल्ली के मैक्स अस्पताल में नेत्र विभाग की निदेशक डॉक्टर पारुल शर्मा ने कहा कि सिर्फ आई बैंक की स्थापना करना ही पर्याप्त नहीं है, जब तक कि लोग स्वेच्छा से दान के लिए आगे नहीं आते हैं.

आचार्य ने कहा कि राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधित सर्वेक्षण (2019) के मुताबिक, करीब 48 लाख लोग अंधेपन से जूझ रहे हैं और कॉर्निया आधारित अंधापन, दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे बड़ा प्रकार है. पहले स्थान पर मोतियाबिंद है, जिससे करीब 25,000 लोग हर साल प्रभावित होते हैं.

दान किए गए नेत्रों से केवल कॉर्निया आधारित दृष्टिहीनता वाले लोगों को फायदा मिलता है. इसमें आंख के आगे के हिस्से को कवर करने वाले ऊत्तक यानी कॉर्निया में क्षति के कारण दृष्टि चली जाती है.

आरटीआई पर मिले जवाब के अनुसार, 2016-17 से 3,35,940 कॉर्निया संग्रहण किए गए जबकि इस अवधि के दौरान 1,56,419 कॉर्निया प्रतिरोपण हुए.

आचार्य ने कहा कि यदि संक्रमण गंभीर है और उन्नत चरण में पहुंच जाता है, तो धब्बे बन जाते हैं, जिससे आंखों की रोशनी जा सकती है और व्यक्ति को रोशनी वापस प्राप्त करने के लिए प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है.

उन्होंने कहा कि कॉर्निया आधारित अंधेपन के इलाज में चुनौती दूरदराज के इलाकों में रहने वाले मरीजों को फॉलो-अप देखभाल प्रदान करने में है.

उन्होंने कहा कि दूर-दराज के क्षेत्र के लोगों के लिए अपनी सर्जरी के बाद आगे के इलाज के लिए वापस आना मुश्किल होता है. इसके लिए नेत्रदान के अभियान में बढ़ोतरी करना और दूर-दराज के इलाकों में सुसज्जित नेत्र क्लीनिक स्थापित करना आवश्यक है, जो भली ही महत्वपूर्ण सर्जरी न कर सकते हों, लेकिन मरीजों को सर्जरी के बाद का इलाज दे सकें.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)