निर्वाचन आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे एक पत्र में कहा है कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है, क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. सिब्बल के साथ माकपा ने भी इसकी आलोचना की है.
नई दिल्ली: राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुनावी वादों की वित्तीय व्यवहार्यता के बारे में मतदाताओं को प्रामाणिक जानकारी देने को लेकर आदर्श आचार संहिता में बदलाव के संबंध में राजनीतिक दलों से राय मांगने के लिए, निर्वाचन आयोग पर निशाना साधते हुए बुधवार को कहा कि हो सकता है चुनाव निगरानीकर्ता को खुद एक आचार संहिता की जरूरत हो.
सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे गए एक पत्र में निर्वाचन आयोग (ईसी) ने कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है, क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे.
आयोग ने इन दलों से 19 अक्टूबर तक प्रस्ताव पर अपने विचार देने को कहा है.
इस घटनाक्रम पर टिप्पणी करते हुए सिब्बल ने कहा, ‘निर्वाचन आयोग, उच्चतम न्यायालय में मुफ्त सौगात पर होने वाली बहस से अलग रहने का हलफनामा दाखिल करने के बाद पलट जाता है. यह धोखा देने के बराबर होगा. अब इसे आदर्श आचार संहिता में शामिल करना चाहते हैं.’
ELection Commission
Does a u-turn after filing affidavit in Supreme Court that it will stay out on freebie debate. Would amount to overreach.
Now wishes to include it in the Model Code of Conduct
Maybe EC itself needs a Model Code of Conduct !
— Kapil Sibal (@KapilSibal) October 5, 2022
उन्होंने ट्विटर पर कहा, ‘हो सकता है निर्वाचन आयोग को ही आदर्श आचार संहिता की जरूरत हो.’
ईसी ने अपने पत्र में कहा था, ‘चुनावी घोषणा पत्रों में स्पष्ट रूप से यह संकेत मिलना चाहिए कि वादों की पारदर्शिता, समानता और विश्वसनीयता के हित में यह पता लगना चाहिए कि किस तरह और किस माध्यम से वित्तीय आवश्यकता पूरी की जाएगी.’
उल्लेखनीय है कि अपने पत्र में आयोग ने कहा है कि आदर्श चुनाव संहिता में प्रस्तावित संशोधन के अनुसार चुनाव घोषणा पत्रों में चुनावी वादों का औचित्य दिखना चाहिए.
निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए आम आदमी पार्टी (आप) ने कहा कि सरकारों को करदाताओं का पैसा नेताओं, उनके परिवार के सदस्यों और मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बल्कि जनता को सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च करना चाहिए.
पार्टी ने कहा कि लोगों को बिजली, पानी, स्कूल और अन्य सुविधाएं मुहैया कराना किसी भी सरकार की ‘मुख्य जिम्मेदारी’ होती है.
आयोग के प्रस्ताव पर पार्टी की राय के बारे में पूछे जाने पर पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता आतिशी ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘आम आदमी पार्टी (निर्वाचन आयोग के समक्ष) अपना विचार रखेगी.’
आयोग ने यह पत्र ऐसे समय में लिखा है, जब कुछ दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री ने ‘रेवड़ी संस्कृति’ का उल्लेख करते हुए कुछ राजनीतिक दलों पर कटाक्ष किया था. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों के बीच इसे लेकर बहस शुरू हुई थी.
आयोग ने चुनाव घोषणा पत्र में किए गए वादों से जुड़ी वित्तीय आवश्यकता का विवरण देने के लिए राजनीतिक दलों के लिए एक प्रारूप भी प्रस्तावित किया है. उसने कहा है कि यदि निर्धारित समयसीमा के भीतर राजनीतिक दलों का जवाब नहीं आता है, तो यह मान लिया जाएगा कि उनके पास इस विषय पर कहने के लिए कुछ विशेष नहीं है.
आयोग ने कहा है कि निर्धारित प्रारूप, सूचना की प्रकृति और सूचनाओं की तुलना के लिए मानकीकरण हेतु आवश्यक है.
निर्वाचन आयोग ने यह भी कहा कि किए गए वादों के वित्तीय प्रभाव पर पर्याप्त सूचना मिल जाने से मतदाता विकल्प चुन सकेंगे. आयोग ने यह भी कहा कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता.
आयोग ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावी घोषणाओं का ब्योरा समय पर उसे उपलब्ध नहीं कराते.
राजनीतिक दलों द्वारा नीतिगत घोषणाओं को विनियमित करना निर्वाचन आयोग का काम नहीं: माकपा
वाम दलों ने निर्वाचन आयोग के प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि नीति घोषणाओं को ‘विनियमित’ करना निर्वाचन आयोग का काम नहीं है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक बयान में कहा, ‘संविधान निर्वाचन आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का आदेश देता है. यह निर्वाचन आयोग का काम नहीं है कि वह नीतिगत घोषणाओं और कल्याणकारी उपायों को विनियमित करे जिनका राजनीतिक दल लोगों से वादा करते हैं. यह पूरी तरह से लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का विशेषाधिकार है.’
पार्टी ने कहा, ‘हम लोगों की चिंताओं और उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए नीतिगत उपायों की पेशकश करने के राजनीतिक दलों के अधिकार को सीमित करने या विनियमित करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध करते हैं. निर्वाचन आयोग का प्रस्ताव एक अनुचित कदम है.’
‘रेवड़ी’ बहस से संबंधित नहीं है आयोग का प्रस्ताव: चुनाव आयोग अधिकारी
द हिंदू के मुताबिक, राजनीतिक दलों की ओर से मिली आलोचना के बीच आयोग के एक अधिकारी ने कहा कि हालिया प्रस्ताव ‘रेवड़ी कल्चर’ को लेकर चल रही बहस से नहीं बल्कि पहले से दिए गए दिशानिर्देशों के बेहतर अनुपालन से संबंधित है.
गोपनीयता की शर्त पर आयोग के एक शीर्ष अधिकारी ने इस अख़बार से कहा, ‘ये दोनों मुद्दे मौलिक रूप से अलग हैं, कानूनी रूप से और सैद्धांतिक रूप से भी. पहला, मुफ्त सौगात को परिभाषित करना और उन्हें कानून या अदालत के निर्देशों द्वारा विनियमित करना है. दूसरा केवल उनके बारे में बताने से जुड़ा है और उसे नए कानून या अदालत के आदेश की जरूरत नहीं है, और यह राजनीतिक दलों के घोषणा करने के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है कि वे क्या उचित समझते हैं.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)