सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि झारखंड हाईकोर्ट ने मामलों की गंभीरता पर विचार किए बिना आरोपियों को बड़ी धनराशि जमा करने की शर्त पर ज़मानत दी है. कोर्ट ने कहा कि अदालतों को ज़मानत का फैसला अपराध की प्रकृति के आधार पर करना चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को जमानत का फैसला अपराध की प्रकृति के आधार पर करना चाहिए, न कि आरोपी की भुगतान क्षमता के आधार पर.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, ऐसा कहते हुए शीर्ष अदालत ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई उस प्रक्रिया को खारिज कर दिया, जिसके तहत अपराध की प्रकृति पर विचार किए बिना एक पर्याप्त राशि जमा करने की शर्त पर कई आरोपियों को जमानत दे दी गई थी और अंतरिम सहायता पीड़ित मुआवजे के तौर पर एक मोटी राशि का भुगतान करने के लिए कहा गया था.
शीर्ष अदालत के सामने हाईकोर्ट द्वारा पारित ऐसे कई आदेश सामने आए और उसने कहा कि अदालत के एकल न्यायाधीश द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को कानून का कोई समर्थन नहीं है.
ऐसे ही एक आदेश में, हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके माता-पिता को 25,000 रुपये का बॉन्ड प्रस्तुत करने और 7.5 लाख रुपये अंतरिम सहायता पीड़िता मुआवजा के रूप में जमा करने पर गिरफ्तारी पूर्व जमानत की रियायत दे दी थी. यह उतनी ही राशि थी, जितनी पत्नी के मुताबिक उसके परिवार द्वारा पति को दहेज के रूप में दी गई थी.
शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले आरोपी की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने शर्तों को खारिज कर दिया और कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कानून सम्मत नहीं है.
पीठ ने कहा कि गिरफ्तारी पूर्व जमानत संबंधी राहत की मांग वाली याचिकाएं धन वसूली की कार्रवाई नहीं होती हैं, और आमतौर पर इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने का कोई औचित्य नहीं है कि गिरफ्तारी पूर्व जमानत की रियायत दिए जाने के लिए गिरफ्तारी से आशंकित व्यक्ति को भुगतान करने को कहा जाए.
अदालत ने यह भी कहा कि इससे पहले भी हाईकोर्ट ने दहेज से लेकर आईपीसी की धारा 420, धारा 376 और पॉक्सो एक्ट तक विभिन्न प्रकार के अपराधों में आरोपियों को जमानत देते हुए ऐसे ही आदेश पारित किए.
शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के ऐसे सभी मामलों का उल्लेख करते हुए कहा कि सभी मामलों में सामान्य पहलू यह है कि हाईकोर्ट के एक विशेष न्यायाधीश ने अपराध की प्रकृति पर निर्भर जमानत की जरूरत पर विचार किए बिना ही एक धनराशि जमा करने की शर्त पर जमानत दे दी.
साथ ही, पीठ ने इन मामलों में नए सिरे से न्याय करने की बात कही.