विशेष: 1831 में बीगल जहाज ने अपनी यात्रा शुरू की और दुनिया का चक्कर लगाकर 1836 में इंग्लैंड वापस लौटा. इस जहाज के कप्तान रॉबर्ट फिट्ज़रॉय थे. जहाज से जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह भी था कि उस समय 22 वर्ष के चार्ल्स डार्विन इस यात्रा में जहाज पर रहने वाले नेचुरलिस्ट की भूमिका में थे.
बीगल जहाज ने अपनी यात्रा साल 1831 में शुरू की थी और दुनिया का चक्कर लगाकर वह 1836 में इंग्लैंड वापस लौटा. 22 वर्षीय चार्ल्स डार्विन को जहाज में जाने का मौका मिला था, पर एक 22 वर्षीय नौजवान को ऐसा मौका क्यों दिया गया था?
डार्विन को आज हम बीगल के प्रकृतिवादी के नाम से जाना जाता है. पर बीगल में डार्विन के चुनाव से पहले ही एक प्रकृतिवादी (naturalist) का चयन हो चुका था. आधिकारिक रूप से बीगल का प्रकृतिवादी रॉबर्ट मैक्कॉर्मिक नाम का व्यक्ति था. तो फिर डार्विन को क्यों चुना गया?
19वीं सदी के नाविकों की एक आदत थी कि वह समाज के वर्गों के बारे में बहुत सचेत थे. जहाज के कप्तान रॉबर्ट फिट्ज़रॉय एक युवक थे और जहाज की यात्रा के दौरान एक ऐसा साथी चाहते थे जिसके साथ वह खा-पी सके और काम के अलावा इधर-उधर की बातें कर सके.
उस समय के सामाजिक नियम यह कहते थे कि एक कप्तान अपने कर्मचारियों से औपचारिकता निभाकर रखे. इस कारण यात्रा शुरू करने से पहले वह डार्विन से मिले- दोनों युवक एक दूसरे को पसंद आए और फिट्ज़रॉय ने डार्विन को बीगल पर आने का न्योता दिया. बदले में डार्विन एक नौसिखिये प्रकृतिवादी की भूमिका निभा सकते थे.
फिट्ज़रॉय का डार्विन को आमंत्रित करने का एक निजी कारण भी था. फिट्ज़रॉय जानते थे कि उनके परिवार में मानसिक सेहत को लेकर परेशानियां रहीं हैं- फिट्ज़रॉय की वंशावली शाही खानदान से थी और परिवार के कुछ सदस्यों ने आत्महत्या की थी. वह जानते थे कि उनकी मानसिक सेहत के लिए अच्छा होगा अगर बीगल पर उनसे बातचीत करने वाला कोई होगा.
इन परेशानियों के बावजूद फिट्ज़रॉय एक असाधारण युवक थे. 23 की उम्र में उन्हें बीगल का कप्तान नियुक्त किया गया था. यात्रा के शुरुआती दौर में डार्विन, फिट्ज़रॉय के बारे में लिखते हैं कि वह एक असाधारण व्यक्ति हैं.
बीगल के शुरुआती दौर में जब जहाज दक्षिण अमेरिका के तट पर था, मैक्कॉर्मिक ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया. जहाज की ज़िम्मेदारियों का मतलब था कि जब डार्विन महाद्वीप पर उतरकर अनुसंधान कर रहे होते, मैक्कॉर्मिक जहाज तक ही सीमित रहते. डार्विन, इस बीच जगह-जगह से नमूने एकत्रित कर वापस इंग्लैंड भेजते और मैक्कॉर्मिक सिर्फ यह सब देखते रहते. अंततः उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा देकर इंग्लैंड वापस जाने का निर्णय लिया.
उधर, डार्विन और फिट्ज़रॉय का रिश्ता तनावों से भरा हुआ रहा. फिट्ज़रॉय, तकनीकी रूप से डार्विन के वरिष्ठ थे, पर दोनों को एक दूसरे की ज़रूरत थी. उनकी बहस सरकार की आर्थिक नीतियों से लेकर, गुलामी और भगवान के अस्तित्व तक चलती थी. फिट्ज़रॉय धार्मिक थे और ईश्वर में विश्वास रखते थे. डार्विन ने सार्वजानिक रूप से कभी इस बारे में पुष्टि तो नहीं की, पर व्यक्तिगत रूप से वे विज्ञान को सर्वोच्च दर्जा देते थे. वैज्ञानिक खोज उन्हें जिस भी राह ले जाना चाहे, वो चलने को तैयार थे.
डार्विन ने ओरिजन ऑफ स्पिशीज़ 1859 में प्रकाशित की. पहले ही दिन पुस्तक की सभी 1,250 कॉपी बिक गईं. डार्विन की निजी किताबें बताती हैं कि प्राकृतिक चयन का विचार उन्हें 1837 में ही था. पर फिर पुस्तक के प्रकाशन मे 22 वर्ष और क्यों लगे?
इसका एक प्राथमिक कारण है कि प्राकृतिक चयन के सिद्धांत में ईश्वर की कोई ज़रूरत नहीं थी. 19वीं सदी में ओरिजन… के प्रकाशन से पहले भी प्रजातियों के आने को लेकर बहुत से विचार थे, पर डार्विन जो कह रहे थे वह मूल रूप से अलग था. उनके द्वारा प्रस्तावित रूपरेखा भौतिकवादी थी.
1860 में इस विचार के समर्थकों और विरोधियों के बीच आयोजित एक गोष्ठी में बहुत विवाद हुआ. डार्विन उनकी ख़राब सेहत के कारण उसमें नहीं जा पाए थे, पर उनके मित्र और समर्थक हेंसलो के नेतृत्व मे यह गोष्ठी हुई. यहां आए एक धर्माध्यक्ष के यह पूछे जाने पर कि क्या डार्विन के समर्थकों के बाप-दादा बंदर थे, हेंसलो ने कहा कि ‘अगर विकल्प एक बंदर और एक प्रतिष्ठित व्यक्ति में है जो वैज्ञानिक बहस में ऊटपटांग बातें करता है, तो वह बंदर को ही चुनेंगे.’
इसी सभा में एक व्यक्ति पहुंचा… फौजी कपड़ों में, व्यग्रता से भरा हुआ. वो फिट्ज़रॉय थे. उनके साथी द्वारा लिखी गई किताब से निस्संदेह उन्हें बहुत दुख पहुंचा था. बाइबिल हाथ में लिए फिट्ज़रॉय सबको बताना चाहते थे कि उन्हें मनुष्यों से ज़्यादा भगवान पर विश्वास है. विरोध के एक क्षण में फिट्ज़रॉय बाइबिल को अपने सिर से ऊपर उठा, ‘बुक, बुक!’ चिल्लाते हैं. शायद बाइबिल की प्राथमिकता स्थापित करने की उनकी यह आखिरी कोशिश थी.
1850 के दशक में न्यूजीलैंड के गवर्नर चुने जाने पर उन्होंने कुछ समय वहां बिताया. लौटने पर फिट्ज़रॉय ने एक और जहाज ‘एरोगेंट’ (Arrogant) का नेतृत्व अपने हाथ में लिया, पर पुर्तगाल पहुंचते ही मानसिक असंतुलन के कारण इसे छोड़ दिया. 1860 के आसपास उन्होंने अखबारों मे मौसम की भविष्यवाणी का काम करना शुरू किया. इस कारण उनका नाम अखबारों में अक्सर रहता था. इसी दौर में उन्होंने ‘फोरकास्टिंग’ (Forecasting) शब्द का आविष्कार किया था.
दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि अंत में वही हुआ जिसका डर फिट्ज़रॉय को 1831 में था. 30 अप्रैल 1865 को वित्तीय संकट और ख़राब सेहत से जूझ रहे फिट्ज़रॉय ने सुबह उठने पर अपनी बेटी को चूमा और बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर अपनी जान ले ली.
(लेखक आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर हैं.)