जम्मू प्रशासन ने मंगलवार को अधिकृत तहसीलदारों को एक वर्ष से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रहने वाले लोगों को आवासीय प्रमाणपत्र जारी कर ख़ुद को मतदाता के तौर पर रजिस्टर कराने का अधिकार दिया था. भाजपा को छोड़कर सूबे के सभी दलों ने इसका विरोध किया था.
जम्मू: जम्मू प्रशासन ने एक वर्ष से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रह रहे लोगों को मतदाता के रूप में पंजीकरण कराने में सक्षम बनाने के लिए तहसीलदारों को आवासीय प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार देने के अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया है.
हालांकि, इस आदेश को वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया गया है. लेकिन, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़कर जम्मू कश्मीर के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने संबंधित आदेश का विरोध किया था, जिसके बाद जम्मू प्रशासन ने इसे वापस ले लिया है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार को बताया, ‘आदेश वापस ले लिया गया है.’
उल्लेखनीय है कि जम्मू में अधिकारियों ने मंगलवार सुबह अधिकृत तहसीलदारों (राजस्व अधिकारियों) को एक वर्ष से अधिक समय से शीतकालीन राजधानी में रहने वाले लोगों को आवासीय प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार दिया था. इस कदम से मतदाता सूची के विशेष सारांश संशोधन में इन लोगों के नाम शामिल होने की बात कही गई थी.
बताया गया था कि जिला निर्वाचन अधिकारी एवं उपायुक्त (जम्मू) अवनि लवासा ने पाया था कि कुछ पात्र मतदाता आवश्यक दस्तावेज न होने की वजह से मतदाता के रूप में अपना पंजीकरण नहीं करा पा रहे हैं. इस समस्या पर गंभीरता से गौर करने के बाद उन्होंने मंगलवार को यह आदेश जारी किया था.
नए मतदाताओं के पंजीकरण, मतदाता सूची से कुछ लोगों के नाम हटाने और सूची में सुधार करने के लिए 15 सितंबर से केंद्र-शासित प्रदेश में मतदाता सूची का विशेष सारांश संशोधन शुरू किया गया था. इसे लेकर कई राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची में ‘गैर-स्थानीय’ लोगों को शामिल करने को लेकर चिंता जाहिर की थी.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता और गुपकर गठबंधन के प्रवक्ता एमवाई तारिगामी ने गुरुवार के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस तरह के आदेश जारी करने के कदम पर सवाल उठाए.
उन्होंने कहा, ‘सबसे पहले, यह आश्चर्यजनक है कि ऐसा अनुचित आदेश जारी किया गया था. अगर आदेश को रद्द किया गया है तो एक प्रति आमजन के साथ तुरंत साझा की जानी चाहिए.’
उन्होंने कहा कि सरकारी तंत्र को चुनावी प्रक्रिया की संवेदनशीलता के बारे में सावधान रहना चाहिए और ‘इस वैध लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हेरफेर का कोई प्रयास नहीं होना चाहिए.’
बीते शनिवार को नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की अध्यक्षता में गुपकर गठबंधन ने 14 सदस्यीय समिति के गठन की घोषणा की थी, जो संशोधित मतदाता सूची में गैर-स्थानीय लोगों को शामिल करने और हेरफेर करने के किसी भी प्रयास के मुद्दे पर रणनीति तैयार करेगी.
पैनल में गुपकर गठबंधन के पांच दल और कांग्रेस, शिवसेना, डोगरा स्वाभिमान संगठन पार्टी (डीएसएसपी) और डोगरा सदर सभा (डीएसएस) जैसे कई अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य शामिल हैं.
इससे पहले स्थानीय दलों ने मतदाताओं के पंजीकरण संबंधी निर्वाचन आयोग के आदेश की आलोचना की थी.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जम्मू में नए मतदाताओं के पंजीकरण संबंधी निर्वाचन आयोग के आदेश की आलोचना करते हुए मंगलवार को केंद्र सरकार पर निशाना साधा.
पूर्व मुख्यमंत्री का कहना था कि जम्मू कश्मीर को धार्मिक व क्षेत्रीय स्तर पर बांटने के भाजपा के कथित प्रयासों को ‘विफल’ किया जाना चाहिए क्योंकि ‘चाहे वह कश्मीरी हो या डोगरा, हमारी पहचान और अधिकारों की रक्षा तभी संभव होगी जब हम एकसाथ आकर कोशिश करेंगे.’
महबूबा ने एक ट्वीट में कहा था कि निर्वाचन आयोग ने आदेश में नए मतदाताओं के पंजीकरण को मंजूरी देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू में भारत सरकार औपनिवेशिक सोच के तहत मूल निवासियों को विस्थापित कर नए लोगों को बसाने के लिए कार्रवाई कर रही है.
वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस का कहना था कि भाजपा चुनाव से ‘डरी’ हुई है और उसे पता है कि उसकी बड़ी हार होगी.
इसी तरह, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने कहा था कि गैर-स्थानीय लोगों के संबंध में जारी नया आदेश ‘बेहद संदिग्ध’ है और इस मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ है.’
उधर, जम्मू कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष विकार रसूल वानी ने इस आदेश को स्थानीय मतदाताओं की शक्ति को कम करने के लिए भाजपा का ‘गेम प्लान’ बताया था.
इस बीच, भाजपा की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंदर रैना ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हालांकि आदेश वापस ले लिया गया है, पर भारत का संविधान लोगों को एक विशेष स्थान पर मतदाता के रूप में पंजीकृत होने की अनुमति देता है.
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर 2018 में भाजपा के पीडीपी के साथ गठबंधन से हाथ खींचने के बाद से ही किसी निर्वाचित सरकार के बिना रहा है. अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधान निरस्त किए जाने और क्षेत्र का विशेष दर्जा वापस लेने के बाद जम्मू और कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. मतदाता सूची अपडेट होने के बाद यहां विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद जताई जा रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)