करिअर को लेकर अनिश्चितता के बीच तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद कई भारतीय छात्र यूक्रेन लौटे

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि केंद्र सरकार द्वारा यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों में दाखिला न देने की बात कहने के बाद कई राज्यों से मेडिकल के अंतिम सालों के विद्यार्थी यूक्रेन लौट गए हैं और कई अन्य जाने की योजना बना रहे हैं. छात्रों का कहना है कि उनके पास करिअर बचाने का कोई और विकल्प नहीं है.

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मार्च 2022 में युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीय वायुसेना के विमान द्वारा भारत लौटा भारतीय विद्यार्थियों का एक दल. (फोटो साभार: ट्विटर/@IAF_MCC)

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि केंद्र सरकार द्वारा यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों में दाखिला न देने की बात कहने के बाद कई राज्यों से मेडिकल के अंतिम सालों के विद्यार्थी यूक्रेन लौट गए हैं और कई अन्य जाने की योजना बना रहे हैं. छात्रों का कहना है कि उनके पास करिअर बचाने का कोई और विकल्प नहीं है.

मार्च 2022 में युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारतीय वायुसेना के विमान द्वारा भारत लौटा भारतीय विद्यार्थियों का एक दल. (फोटो साभार: ट्विटर/@IAF_MCC)

नई दिल्ली: फरवरी महीने में रूसी हमले के बाद यूक्रेन से वापस देश में आए कई राज्यों के मेडिकल छात्र वहां की तनावपूर्ण स्थिति के बावजूद फिर यूक्रेन लौट गए हैं. साथ ही कई अन्य भी जाने की योजना बना रहे हैं.

डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, केरल से आने वाले मेडिकल के अंतिम वर्ष के एक छात्र ने अख़बार को नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि उनकी जानकारी में कम से कम 90 छात्र यूक्रेन वापस जा चुके हैं और कई अन्य, जिनमें लड़कियां भी शामिल हैं, आगामी हफ़्तों में वापस जाने की योजना बना रहे हैं.

छात्र के अनुसार, अंतिम वर्ष के छात्र मुख्य रूप से अपने जोखिम पर लौटने का विकल्प चुन रहे हैं क्योंकि वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पाठ्यक्रम पूरा होने पर उन्हें ऑफलाइन एजुकेशन सर्टिफिकेट मिल सके. छात्र मोल्दोवा जैसे पड़ोसी देशों के जरिये यात्रा कर रहे हैं और यूक्रेन की सीमाओं को पार कर रहे हैं. छात्र ने बताया कि वे पश्चिमी यूक्रेन के अपेक्षाकृत सुरक्षित हिस्सों में रह रहे हैं.

एक इमिग्रेशन अधिकारी ने बताया कि चूंकि इस क्षेत्र में कोई यात्रा प्रतिबंध नहीं है, इसलिए छात्रों को यात्रा करने से नहीं रोका जा सकता है, केवल सलाह दी जा सकती है.

गौरतलब है कि रूस के हमले के बाद इस साल की शुरुआत में यूक्रेन से कुल 18,000 छात्रों को निकाला गया था. इनमें करीब 4,500 मेडिकल के फाइनल वर्ष में थे. नियमानुसार राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग केवल विदेशों में ऑफलाइन शिक्षा की स्वीकृति देता है. साथ ही, शैक्षणिक गतिशीलता कार्यक्रम को भी यूक्रेन के सभी विश्वविद्यालयों द्वारा मंजूर नहीं किया गया था.

इसके अलावा कई छात्र अन्य देशों में उनके क्लीनिकल ट्रेनिंग कार्यक्रम को लेकर भी आशंकित थे. यही कारण है जिसके चलते कई छात्र यूक्रेन लौटने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

ज्ञात हो कि भारत में मेडिकल कॉलेजों में शिक्षा जारी रखने के लिए छात्रों और अभिभावकों की याचिकाएं अब तक अदालत के समक्ष लंबित हैं.

ऑल केरल यूक्रेन मेडिकल स्टूडेंट्स एंड पेरेंट्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष वेणुगोपाल कन्नोथ ने इस अख़बार से कहा कि बेबसी के कारण कई छात्रों को अपने जोखिम पर यूक्रेन लौटने के लिए मजबूर किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘विशेष रूप से अंतिम वर्षों के छात्रों के संबंध में बात करें, तो उनके परिवारों ने पहले से ही शिक्षा के लिए ऋण लिया था और छात्रों ने कोर्स के सभी साल यूक्रेन में बिताए थे. इसलिए जब तक कि भारत सरकार उनके लिए अनुकूल निर्णय- कि वे यहां पढ़ाई पूरी कर सकें- नहीं लेती, उनके पास यूक्रेन में शिक्षा पूरी करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है.’

हालांकि, केरल अकेला राज्य नहीं है जहां से मेडिकल के छात्र-छात्राएं वापस यूक्रेन लौटे हैं.

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि बीते सप्ताह अपना करिअर बचाने के उद्देश्य से असम से भी कई भारतीय छात्र यूक्रेन लौटे हैं.

अख़बार के अनुसार, इनमें भी अधिकांश अंतिम सालों वाले छात्र हैं, जो अपनी प्रैक्टिकल कक्षाएं पूरी करने के मकसद से वापस जा रहे हैं.

टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में चौथे सेमेस्टर की छात्रा निकिता सितंबर के मध्य में मध्य असम के अपने गृहनगर नगांव से निकल गई थीं.

उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘पश्चिमी यूक्रेन के शहरों में छात्र आश्वस्त हैं कि उन्हें अब नियमित कक्षाओं में शामिल होना चाहिए. मैं यूक्रेन लौटे असम के छात्रों के पहले बैच में से हूं और संभवत: असम से विश्वविद्यालय आने वाली एकमात्र छात्रा जो 1 अक्टूबर को कक्षाएं शुरू होने से पहले यहां पहुंची.’

निकिता ने आगे बताया, ‘कई अन्य लोगों के भी यहां लौटने की संभावना है क्योंकि हमारे पास अपना करिअर बचाने का कोई अन्य व्यावहारिक समाधान नहीं है.’

मौसम हजारिका एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी हैं, जिन्हें अपनी बेटी समद्रिता को उनकी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए पश्चिमी यूक्रेन के उज़होरोड नेशनल यूनिवर्सिटी में फिर से भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा.

ज्ञात हो कि पिछले महीने केंद्र सरकार ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) अधिनियम, 2019 के तहत किसी भी प्रावधान के अभाव में भारतीय विश्वविद्यालयों में नहीं लिया  जा सकता है और इस तरह की कोई भी छूट देने से देश में चिकित्सा शिक्षा के मानकों में गंभीर रूप से बाधा आएगी.

फरवरी-मार्च में घर लौटने वाले 200 असम के छात्रों में से अधिकांश सरकारी मेडिकल संस्थानों में मेडिकल छात्र हैं. जहां पश्चिमी यूक्रेन के लिए जाने वाले छात्र अपनी सुरक्षा को लेकर लगभग आश्वस्त हैं, सूमी जैसे सुदूर पूर्वोत्तर शहर, जहां से काफी संख्या में छात्र असम लौटे थे, में पढ़ने वाले विद्यार्थी अभी भी अनिश्चितता की स्थिति में हैं.

‘ग्रीन कॉरिडोर’ के माध्यम से सुरक्षित निकासी से पहले सूमी में एक बंकर में लगभग दो सप्ताह बिताने वाली नीलोम कलिता सूमी स्टेट यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस फाइनल ईयर की छात्रा है.

उन्होंने बताया, ‘हम आश्वस्त नहीं हैं कि यूक्रेन में स्थिति में जल्द कोई सुधार होगा. यहां तक कि हमारा विश्वविद्यालय भी नहीं चाहता है कि हम परिसर में रहें. इस समय कक्षाओं और परीक्षा में भाग लेने के लिए ऑनलाइन माध्यम ही एकमात्र विकल्प है.’

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