मार्च महीने में ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में मानव विज्ञान और दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर और प्रसिद्ध मानवविज्ञानी फिलिपो ओसेला को बिना कोई कारण बताए भारत में प्रवेश देने से इनकार करते हुए डिपोर्ट कर दिया गया था. उन्होंने इसके ख़िलाफ़ अदालत का रुख़ किया है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने ब्रिटिश मानवविज्ञानी फिलिपो ओसेला को मार्च में भारत में प्रवेश से इनकार करने और निर्वासित (डिपोर्ट) किए जाने के खिलाफ उनकी एक याचिका का बुधवार को विरोध किया.
सरकार ने कहा कि ओसेला का नाम ‘ब्लैकलिस्ट की सर्वोच्च श्रेणी’ में है. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि अधिकारियों के पास इस बाबत पर्याप्त सामग्री थी जिससे वे याचिकाकर्ता का नाम ‘ब्लैकलिस्ट’ में डालने और उन्हें निर्वासित करने के लिए विवश हुए.
ओसेला ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में मानव विज्ञान और दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर हैं. वह केरल के विशेषज्ञ हैं और केरल में मछुआरा समुदाय पर अनुसंधान में शामिल रहे हैं. उन्होंने राज्य में 30 से अधिक वर्षों तक सके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन पर व्यापक शोध किया है.
तिरुवनंतपुरम एक सम्मेलन में भाग लेने आए ओसेला को 23 मार्च को भारत में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी और तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर पहुंचने पर डिपोर्ट कर दिया गया था. उस समय ओसेला ने द इंडियन एक्सप्रेस को भेजे गए एक ईमेल में बताया था कि उन्हें भारतीय अधिकारियों द्वारा बिना किसी स्पष्टीकरण के प्रवेश से वंचित कर दिया गया.
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई एक याचिका में मानवविज्ञानी ने कहा है कि उन्हें डिपोर्ट किया जाना ‘असंवैधानिक और मनमाना’ है क्योंकि विभिन्न अभ्यावेदनों के बावजूद आज तक उन्हें इसका कोई कारण नहीं बताया गया. उन्होंने उन रिकॉर्ड को दिखाने का निर्देश देने की भी मांग की है जिनके कारण उन्हें निर्वासित किया गया था.
उनकी याचिका में कहा गया है, ‘तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आव्रजन अधिकारियों के इस मनमाने आचरण के कारण मौजूद नहीं थे. सुबह 4:30 बजे तक प्रोफेसर को वापस ले जाया गया और उसी विमान में बैठा दिया गया, जिसमें वह आए थे और अन्यायपूर्ण तरीके से किसी गंभीर अपराधी की तरह उन्हें डिपोर्ट कर दिया गया.’
याचिका में आगे कहा गया है कि अपनी पिछली यात्राओं के दौरान ओसेला को कभी भी इमिग्रेशन में किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था और वे अपने पूरे जीवन में कभी किसी भी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल नहीं थे.
याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता को उनके सामान में से ब्लड प्रेशर की दवाएं लेने के अनुरोध को भी स्वीकृति नहीं दी गई, जिससे उन्हें एंग्जायटी, हाई ब्लड प्रेशर और घबराहट की समस्या हुई.’ याचिका में यह भी जोड़ा गया है कि इस घटना की देश और दुनिया के शिक्षाविदों ने आलोचना की थी.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त में इस मामले में ओसेला की याचिका पर केंद्र सरकार का रुख पूछा था.
लाइव लॉ के अनुसार, याचिका में प्रतिवादी के बतौर विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, इमिग्रेशन ब्यूरो और विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ), त्रिवेंद्रम शामिल हैं.
बुधवार को केंद्र सरकार के वकील ने अदालत से अनुरोध किया कि संबंधित फाइल का अध्ययन किया जाए.
हालांकि जस्टिस यशवंत वर्मा ने केंद्र से कहा कि अदालत द्वारा किसी विशेष दस्तावेज को देखा जाए, उससे पहले मामले में लिखित जवाब दाखिल किया जाए.
केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय देते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘हलफनामा दाखिल किया जाए. याचिकाकर्ता के लिए यह अनुचित होगा कि हम स्वतंत्र रूप से किसी ऐसी चीज का अवलोकन करें जो एक सीलबंद लिफाफे में पेश की जाती है और उन्हें यह नहीं पता हो कि वह क्या है. अगर वह हलफनामा हमारे लिए कुछ विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेजों को देखने का आधार बनता है … तो हम इसे देखने पर विचार करेंगे.’
मामले की अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी.
गौरतलब है कि ओसेला को डिपोर्ट करने की घटना के कुछ समय बाद जुलाई महीने में ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय में आर्किटेक्चर की प्रोफेसर और शोध निदेशक लिंडसे ब्रेमर को चेन्नई हवाई अड्डे पर आव्रजन अधिकारियों ने उन्हें बिना कोई वैध कारण बताए वापस लंदन भेज दिया गया था. वे आईआईटी मद्रास और उनके विश्वविद्यालय के बीच एक अनुबंध के तहत भारत आई थीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)