ज्ञानवापी मामला: हिंदू पक्ष की ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग करवाने से जुड़ी याचिका ख़ारिज

पांच हिंदू पक्षकारों में से चार ने ज्ञानवापी मस्जिद से वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान मिले कथित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग कराए जाने की मांग की थी. सरकारी वकील ने बताया कि वाराणसी की ज़िला अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए यह अर्ज़ी ख़रिज कर दी है.

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ज्ञानवापी मस्जिद. (फोटो: पीटीआई)

पांच हिंदू पक्षकारों में से चार ने ज्ञानवापी मस्जिद से वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान मिले कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग कराए जाने की मांग की थी. सरकारी वकील ने बताया कि वाराणसी की ज़िला अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए यह अर्ज़ी ख़रिज कर दी है.

ज्ञानवापी मस्जिद. (फोटो: पीटीआई)

वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद से मिले कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग कराए जाने के अनुरोध वाली याचिका को वाराणसी की जिला अदालत ने शुक्रवार को खारिज कर दिया.

सरकारी वकील राणा संजीव सिंह ने बताया कि जिला न्यायाधीश डॉ. एके विश्वेश ने ‘शिवलिंग’ को सुरक्षित रखने और उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए ‘शिवलिंग’ की वैज्ञानिक जांच और कार्बन डेटिंग की मांग करने वाली हिंदू याचिकाकर्ताओं की अर्जी खारिज कर दी.

हिंदू पक्ष और मस्जिद समिति की दलीलों पर मंगलवार को सुनवाई पूरी होने के बाद जिला अदालत ने 14 अक्टूबर तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था.

हिंदू पक्ष के वकील शिवम गौर के अनुसार, अदालत ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप और जन भावना को ध्यान में रखते हुए कार्बन डेटिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती है और ‘वजूखाना’ सील ही रहेगा.

गौरतलब है कि पांच हिंदू पक्षकार में से चार ने कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग की थी, जो अदालत के आदेश पर कराए गए मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के दौरान ‘वज़ूखाना’ में मिला था. ‘वजूखाना’ एक छोटा जलाशय होता है जिसका उपयोग मुस्लिम नमाज़ अदा करने से पहले वजू (हाथ-पांव धोने आदि) करने के लिए करते हैं.

मस्जिद समिति ने कार्बन डेटिंग की मांग का विरोध किया था और कहा था कि वह ‘शिवलिंग’ नहीं बल्कि वजूखाने के फव्वारे का हिस्सा है.

मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता मुमताज अहमद ने इससे पहले अदालत से कहा था कि कार्बन डेटिंग नहीं करवाई जा सकती है. उन्होंने कहा था कि अगर कार्बन डेटिंग के दौरान उक्त वस्तु को नुकसान पहुंचता है तो यह उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवमानना के समान होगा.

मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के जिलाधिकारी से उक्त वस्तु को सुरक्षित रखने को कहा है, ऐसी परिस्थिति में उसके परीक्षण को तर्कसंगत नहीं बताया जा सकता.

मुस्लिम पक्ष का यह भी कहना है कि वास्तविक वाद श्रृंगार गौरी की पूजा को लेकर है और मस्जिद के ढांचे का इससे कोई वास्ता नहीं है. उन्होंने कहा था कि ऐसी परिस्थिति में न तो पुरातत्व विभाग कोई जांच कर सकता है और न ही वैज्ञानिक जांच किए जाने के बाद कोई रिपोर्ट तैयार की जा सकती है.

वहीं दूसरी ओर, हिंदू याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ‘वजूखाने’ से मिला ‘शिवलिंग’ उनकी वाद से जुड़ी संपत्ति का हिस्सा है और इसलिए कार्बन डेटिंग की जानी चाहिए.

गौरतलब है कि ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर के बगल में बनी है और वाराणसी की अदालत में चल रहे इस मुकदमे से उन दावों को फिर से बल मिलने लगा है कि मुगल बदशाह औरंगजेब के कहने पर मंदिर के एक हिस्से को गिरा कर उसकी जगह मस्जिद बनाई गई थी.

अब तक क्या रहा है घटनाक्रम

गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह समेत पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.

इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.

पूजा की अनुमति मांगने वाली याचिका के ख़िलाफ़ ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन देखने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद समिति ने चुनौती दी थी, जिसे पिछले महीने अदालत ने ख़ारिज कर दिया था.

इससे पहले शीर्ष अदालत ने बीते 17 मई को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.

बीते अप्रैल मा​ह में वाराणसी की एक अदालत ने इस स्थान का सर्वेक्षण और वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. इस पर मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी, लेकिन उसी महीने इसे खारिज कर दिया गया. अदालत ने कोर्ट कमिश्नर के पक्षपाती होने का दावा करने वाली कमेटी की याचिका भी खारिज कर दी थी.

वाराणसी की अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर 17 मई को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.

बीते 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी की अदालत के हालिया आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली एक अपील पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.

मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.

इसी दौरान वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को बीते 17 मई को पद से हटा दिया था.

अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी सर्वेक्षण के लिए एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त किए गए अजय कुमार मिश्रा को उनके एक सहयोगी द्वारा मीडिया में खबरें लीक करने के आरोप में पद से हटा दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)