न्यायालय ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य बनाने पर रोक लगाई

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा ज्योतिष पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें नियुक्त किए जाने का झूठा दावा किया है.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. (फोटो साभार: फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा ज्योतिष पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें नियुक्त किए जाने का झूठा दावा किया है.

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य बनाने की प्रक्रिया (पट्टाभिषेक) पर रोक लगा दी है.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा पीठ को यह सूचित करने के बाद आदेश पारित किया कि पुरी में गोवर्धन मठ के शंकराचार्य ने एक हलफनामा दायर किया है कि अविमुक्तेश्वरानंद की ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति का समर्थन नहीं किया गया है.

पीठ ने कहा, ‘अर्जी में किए गए अनुरोध के मद्देनजर इस आवेदन को मंजूर किया गया है.’

सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा ज्योतिष पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें नियुक्त किए जाने का झूठा दावा किया है.

यह मामला 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

याचिका में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने का एक जान-बूझकर प्रयास किया गया है कि इस अदालत के समक्ष कार्यवाही निष्फल हो जाए और एक व्यक्ति जो योग्य नहीं है और अपात्र है, अनधिकृत रूप से पद ग्रहण करता है.

इसमें कहा गया है, ‘इस तरह के प्रयासों को अदालत के अंतरिम आदेश से रोकने की जरूरत है और इसलिए इस आवेदन को स्वीकार किया जा सकता है.’

याचिका में कहा गया है, ‘यह दिखाने के लिए आवश्यक दस्तावेज दाखिल किए जा रहे हैं कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति पूरी तरह से झूठी है, क्योंकि यह नियुक्ति की स्वीकृत प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन है.’

मामले पर अब 18 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई होगी.

मालूम हो कि द्वारकापीठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 99 वर्ष की आयु में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में बीते 11 सितंबर को निधन हो गया था.

स्वामी स्वरूपानंद ने नौ साल की उम्र में ही अपना घर छोड़ दिया था. स्वरूपानंद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रहे. इन्हें 1981 में शंकराचार्य की उपाधि दी गई. उन्होंने राम मंदिर को लेकर भी लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी.

उनके निधन के बाद ऐसी सूचना आई थी कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, हिंदू विद्वानों के अनुसार शंकराचार्य के बिना पीठ नहीं रह सकती. शंकराचार्य हिंदू धर्म की अद्वैत वेदांत परंपरा में मठों के प्रमुखों का आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला पद है.

ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी. इनमें उत्तर में बद्रीकाश्रम ज्योतिष पीठ, पश्चिम में द्वारका का शारदा पीठ, पूर्व में पुरी स्थित गोवर्धन पीठ और कर्नाटक के चिकमगलूर जिले में शृंगेरी शारदा पीठम शामिल हैं.

अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक में शामिल न हों संत: अखाड़ा परिषद प्रमुख

हरिद्वार: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने संतों से शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक में हिस्सा नहीं लेने की अपील करते हुए शनिवार को कहा कि इस तरह का कृत्य अदालत की अवमानना होगी.

दिवंगत स्वामी स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का पट्टाभिषेक 17 अक्टूबर को जोशीमठ में होना है.

महंत रवींद्र पुरी निरंजनी अखाड़े के सचिव भी हैं. उन्होंने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति का विरोध करते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है.

उन्होंने कहा कि संन्यासी अखाड़ों की सहमति के बिना दफनाने से पहले ही उन्हें दिवंगत शंकराचार्य के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करना गलत था.

उन्होंने कहा कि पट्टाभिषेक समारोह में भाग लेना अदालत की अवमानना होगी.

हालांकि, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के शिष्य स्वामी मुकुंदानंद ने बताया कि पट्टाभिषेक पहले ही हो चुका है और 17 अक्टूबर को जोशीमठ में होने वाला कार्यक्रम केवल संत को सम्मानित करने के लिए है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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