प्रधान न्यायाधीश के रूप में जस्टिस यूयू ललित का 74 दिन का संक्षिप्त कार्यकाल रहा. वह 65 वर्ष के होने पर इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे. सीजेआई के पद पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो वर्षों का होगा.
नई दिल्ली: जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सोमवार को देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किए गए. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने यह जानकारी दी.
मौजूदा सीजेआई यूयू ललित के 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर सेवानिवृत्त हो जाने के एक दिन बाद नौ नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ लेंगे. सीजेआई के पद पर जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो वर्षों का होगा.
इससे पहले बीते अगस्त माह में जस्टिस यूयू ललित को भारत का 49वां प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. उन्होंने 27 अगस्त को अपना पदभार ग्रहण किया था. प्रधान न्यायाधीश के रूप में जस्टिस ललित का कार्यकाल 74 दिन का संक्षिप्त रहा. वह 65 वर्ष के होने पर इस साल आठ नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे.
जस्टिस ललित दूसरे ऐसे सीजेआई हैं, जो बार से पदोन्नत होकर सीधे शीर्ष अदालत पहुंचे हैं. जस्टिस एसएम सीकरी पहले ऐसे सीजेआई थे, जो 1964 में बार से सीधे शीर्ष अदालत पहुंचे थे. वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे.
जस्टिस चंद्रचूड़ की नियुक्ति को लेकर रीजीजू ने ट्वीट किया, ‘संविधान के द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए माननीय राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को देश का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया है. यह नियुक्ति नौ नवंबर 2022 से प्रभावी होगी.’
Extending my best wishes to Justice DY Chandrachud for the formal oath taking ceremony on 9th Nov. https://t.co/awrT3UMrFy pic.twitter.com/Nbd1OpEnnq
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) October 17, 2022
जस्टिस चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किए गए थे और 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे.
जस्टिस चंद्रचूड़ देश में सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहे जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं. उनके पिता 22 फरवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक भारतीय न्यायपालिका के प्रमुख रहे थे. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सात दशक से अधिक लंबे इतिहास में यह पहला मौका है, जब पिता-पुत्र दोनों ही इस पद पर आसीन हुए.
सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और कानून मंत्रालय में न्याय विभाग के शीर्ष अधिकारियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा हस्ताक्षरित नियुक्ति पत्र आज (सोमवार) दोपहर जस्टिस चंद्रचूड़ को स्वयं सौंपा.
सूत्रों ने बताया कि इसके बाद अगले सीजेआई के रूप में उनकी नियुक्ति की एक आधिकारिक अधिसूचना जारी की गई.
रीजीजू ने एक अन्य ट्वीट में कहा, ‘नौ नवंबर को औपचारिक रूप से शपथ ग्रहण करने के लिए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को अपनी शुभकामनाएं देता हूं.’
सीजेआई ललित ने जस्टिस चंद्रचूड़ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने की 11 अक्टूबर को केंद्र से सिफारिश की थी.
उल्लेखनीय है कि जस्टिस चंद्रचूड़ नीत पीठ ने कोविड-19 संकट के दौरान लोगों द्वारा सामना की गई समस्याओं को दूर करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे. उन्होंने महामारी की दूसरी लहर को ‘राष्ट्रीय संकट’ बताया था.
11 नवंबर, 1959 को जन्मे जस्टिस चंद्रचूड़ को क्रिकेट के प्रति उनके प्रेम के लिए जाना जाता है. बताया जाता है कि वह अपने पिता पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के कर्मचारियों के साथ बंगले के पीछे क्रिकेट खेला करते थे, जिसे उन्हें दिल्ली में आवंटित किया गया था.
काम के प्रति दीवानगी के लिए पहचाने जाने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ ने 30 सितंबर, 2022 को एक पीठ की अध्यक्षता की, जो दशहरा की छुट्टियों की शुरुआत से पहले 75 मामलों की सुनवाई करने के लिए शीर्ष अदालत के नियमित कामकाजी समय से लगभग पांच घंटे अधिक (रात 9:10 बजे) तक बैठी थी.
जस्टिस चंद्रचूड़ पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. वह इस पद पर नियुक्त होने तक 29 मार्च 2000 तक बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जस्टिस चंद्रचूड़ को जून 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पदस्थ किया और उन्हें उसी साल अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था.
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस लॉ सेंटर से एलएलबी की डिग्री ली और इसके बाद अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से ज्यूरिडिकल साइंस में डॉक्टरेट तथा एलएलएम की डिग्री हासिल की थी.
वह सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की और मुंबई विश्वविद्यालय में संवैधानिक कानून के अतिथि प्रोफेसर भी रहे हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ वर्तमान में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जस्टिस चंद्रचूड़ को जून 1998 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में पदस्थ किया और उन्हें उसी साल अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था.
जस्टिस चंद्रचूड़ अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम फैसलों का हिस्सा रहे
देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किए गए जस्टिस डीवाई. चंद्रचूड़ अयोध्या विवाद, निजता का अधिकार जैसे अहम मुकदमों में फैसले देने वाली पीठ का हिस्सा रहे हैं.
जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के गलियारों से बेहद अच्छी तरह वाकिफ हैं, जहां उनके पिता लगभग सात साल और चार महीने तक प्रधान न्यायाधीश रहे थे, जो शीर्ष अदालत के इतिहास में किसी सीजेआई का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है.
हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने व्यभिचार और निजता के अधिकार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के फैसले को पलटने में कोई संकोच नहीं किया था.
‘असहमति को लोकतंत्र के सेफ्टी वाल्व’ के रूप में देखने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ कई संविधान पीठ और ऐतिहासिक फैसले देने वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठों का हिस्सा रहे हैं.
इनमें अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में रखने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित करने जैसे फैसले शामिल हैं.
शीर्ष अदालत के रोस्टर में अधिक ‘उदार’ न्यायाधीशों में से एक माने जाने वाले जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ मामले में उस पूर्ण पीठ का हिस्सा थे, जिसमें न्यायालय ने निजता का अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार माना था.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट पर हाल का फैसला भी दिया है, जिसमें 24 सप्ताह की गर्भावस्था तक विवाहित और अविवाहित महिलाओं दोनों के लिए मुफ्त और सुरक्षित गर्भपात के अधिकार को बरकरार रखा गया है.
हाल ही में जस्टिस चंद्रचूड़ शीर्ष अदालत उन दो न्यायाधीशों में शामिल थे, जिन्होंने शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अपने सदस्यों के विचारों को जानने के लिए अपनाए गए सर्कुलेशन तरीके पर आपत्ति जताई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)