गुजरात में उद्योगों के साथ चुनाव आयोग का एमओयू अनिवार्य मतदान की दिशा में आक्रामक क़दम: माकपा

गुजरात में 1,000 से अधिक कॉरपोरेट घरानों ने चुनाव आयोग के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो ‘अपने कर्मचारियों की चुनावी भागीदारी की निगरानी करेंगे और अपनी वेबसाइटों या कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर ऐसे कर्मचारियों का नाम प्रकाशित करेंगे, जो छुट्टी लेने के बाद भी मतदान नहीं करते हैं.

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सीताराम येचुरी. (फोटो: पीटीआई)

गुजरात में 1,000 से अधिक कॉरपोरेट घरानों ने चुनाव आयोग के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो ‘अपने कर्मचारियों की चुनावी भागीदारी की निगरानी करेंगे और अपनी वेबसाइटों या कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर ऐसे कर्मचारियों का नाम प्रकाशित करेंगे, जो छुट्टी लेने के बाद भी मतदान नहीं करते हैं.

सीताराम येचुरी. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने गुजरात के चुनाव आयुक्त द्वारा मतदान में कर्मचारियों की भागीदारी पर नजर रखने के लिए राज्य की औद्योगिक इकाइयों के साथ किए गए समझौता ज्ञापन (एमओयू) को रद्द करने की मांग की है.

येचुरी ने इन एमओयू को ‘मतदान को अनिवार्य बनाने की दिशा में उठाया गया आक्रामक कदम’ करार दिया है.

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त को लिखे एक पत्र में येचुरी ने विभिन्न खबरों का हवाला देते हुए कहा है कि यह ‘बेहद चौंकाने वाला’ है कि निर्वाचन आयोग ने गुजरात के 1,000 से अधिक कॉरपोरेट घरानों के साथ ‘मतदान में कर्मचारियों की भागीदारी’ की निगरानी करने और वोट न डालने वाले कर्मचारियों के नाम कंपनी की वेबसाइट या कार्यालय नोटिस बोर्ड पर प्रकाशित करने के लिए समझौते किए हैं.

उन्होंने लिखा है, ‘हम दृढ़ता से महसूस करते हैं कि यह बेहद अपमानजनक है. निर्वाचन आयोग ने दावा किया है कि यह मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता को दूर करने का एक प्रयास है, लेकिन तथ्य यह है कि मतदान न करने वालों का नाम लेना और उन्हें शर्मसार करना अनिवार्य मतदान की दिशा में उठाया गया एक आक्रामक कदम है.’

माकपा नेता ने खबरों का हवाला देते हुए कहा है कि मतदान में 1,107 औद्योगिक इकाइयों के कर्मचारियों की भागीदारी पर नजर रखने के लिए 233 एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

उन्होंने लिखा है, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें आपको याद दिलाना पड़ रहा है कि भारत के संविधान द्वारा अनुच्छेद-326 के तहत मतदान के अधिकार की गारंटी दी गई है. आपको यह भी याद दिला दें कि अनिवार्य मतदान के अधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था. केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री द्वारा 2015 में दायर जवाब में कहा गया था कि यदि अनिवार्य मतदान की व्यवस्था शुरू की जाती है तो इससे देश में एक अलोकतांत्रिक माहौल कायम हो सकता है.’

येचुरी ने आगे कहा है कि मतदान के अधिकार को मौलिक कर्तव्य के रूप में लागू करने में कॉरपोरेट घरानों को शामिल करने का निर्वाचन आयोग का कदम पूरी तरह से असंवैधानिक है.

उन्होंने लिखा है, ‘इसके अलावा यह चुनावी बॉन्ड के जरिये विवादास्पद गुमनाम कॉरपोरेट फंडिंग की सुविधा प्रदान करके कॉरपोरेट घरानों को पहले से ही चुनाव प्रक्रिया में शामिल करता है. यही नहीं, ईवीएम से मतगणना की मौजूदा प्रक्रिया में मत-पत्रों को मिलाने की पहले की प्रथा अब प्रचलन में नहीं है. ईवीएम से गिनती प्रत्येक बूथ के मतदान पैटर्न को पारदर्शी रूप से बताती है.’

येचुरी ने कहा है, ‘यह कदम कॉरपोरेट पर्यवेक्षण की इस प्रक्रिया द्वारा सत्यापित होने वाले श्रमिकों को डराने-धमकाने और प्रतिशोधी कार्रवाई के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है. यह गुप्त मतदान का मजाक बनाता है. इसलिए, हम निर्वाचन आयोग से इस कथित कदम को रद्द करके संबंधित विवाद को खत्म करने का आग्रह करते हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गुजरात के मुख्य चुनाव अधिकारी पी. भारती ने अखबार को बताया, ‘हमने 233 एमओयू (समझौता ज्ञापन) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों को लागू करने में हमारी मदद करेंगे. गुजरात में पहली बार हम 1,017 औद्योगिक इकाइयों से संबंधित कार्यबल की चुनावी भागीदारी की निगरानी करेंगे.’

उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत इकाइयों के साथ-साथ उद्योग निकायों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. बोर्ड में और अधिक लोगों को लाने का प्रयास मतदान के दिन तक जारी रहेगा.

इस साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग ने जून में केंद्र और राज्य सरकार के विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और 500 से अधिक कर्मचारियों वाली कॉरपोरेट संस्थाओं से कहा था कि वे उन कर्मचारियों की पहचान करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त करें, जो मतदान के दिन छुट्टी लेते हैं, लेकिन मतदान नहीं करते हैं.

अपने हाल के गुजरात दौरे के दौरान सीईसी राजीव कुमार ने कहा था कि आयोग अनिवार्य मतदान को लागू नहीं कर सकता है, लेकिन बड़े उद्योगों में उन श्रमिकों की पहचान करना चाहता है जो छुट्टी का लाभ उठाने के बावजूद मतदान नहीं करते हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या यह अनिवार्य मतदान की दिशा में एक कदम है, उन्होंने कहा था, ‘चूंकि मतदान अनिवार्य नहीं है, यह उन लोगों की पहचान करने का प्रयास है जो मतदान नहीं करते हैं.’

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में 69 प्रतिशत और 2019 के लोकसभा चुनाव में 64 प्रतिशत मतदान हुआ था. सीईओ ने कहा कि 2017 में कम मतदान वाले मतदान केंद्रों की पहचान कर ली गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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