भारतीय आयुर्वेदिक दवा निर्माता संगठन द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि विकिपीडिया पर आयुर्वेद को ‘छद्म वैज्ञानिक विधा’ के रूप में वर्णित किया गया है. इससे आयुर्वेद की छवि को नुकसान पहुंचता है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (21 अक्टूबर) को भारतीय आयुर्वेदिक दवा निर्माता संगठन द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. याचिका में दावा किया गया था कि आयुर्वेद को लेकर विकिपीडिया में दर्ज सूचना मानहानिकारक है.
जनहित याचिका में कहा गया कि विकिपीडिया पर आयुर्वेद को ‘छद्म वैज्ञानिक (Pseudoscientific)’ विधा के रूप में वर्णित किया गया है. उक्त लेख को अनावश्यक बताते हुए याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह आयुर्वेद की छवि खराब करने के एकमात्र इरादे से लिखा गया है.
लाइव लॉ ने याचिका के हवाले से कहा है, ‘चिंता की बात यह है कि यह पूरी तरह से बेतुका, बिना ढंग से शोध किया और पूर्वाग्रह से ग्रस्त लेख है और गूगल पर आयुर्वेद सर्च करने पर सबसे पहले लेख के तौर पर सामने नजर आता है.’
इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि विकिपीडिया की सामग्री आयुर्वेद की छवि को नुकसान पहुंचाती है, जो कि वर्षों के ‘समर्पित अनुसंधान और अभ्यास’ के बाद विकसित हुई है.
हालांकि, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि विकिपीडिया के लेख संपादित किए जा सकते हैं.
आगे, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि जनहित याचिका दायर होने के बाद विकिपीडिया पर उस प्रविष्टि के ‘कुछ हिस्सों’ को संपादित किया गया था. रिपोर्ट लिखे जाने के समय तक विकिपीडिया पर अभी भी उल्लेख है कि आयुर्वेद Pseudoscientific है.
पीठ ने मामले पर विचार करने से इनकार करते हुए अपने आदेश में कहा, ‘हमें अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार करने का कोई कारण नजर नहीं आता. हालांकि पक्षकार कानून में उपलब्ध अन्य उपायों का लाभ उठा सकते हैं.’
2014 में जब से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में आई है, आयुर्वेद को एक नया महत्व मिलने लगा है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत ‘आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष)’ विभाग को अपने आप में अधिकार संपन्न बनाकर एक मंत्रालय के रूप में बढ़ावा दिया गया है.
आयुर्वेद का एक संभावित खतरनाक इस्तेमाल कोविड-19 महामारी के दौरान तब देखा गया था, जब आयुष मंत्रालय ने भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में आयुष सोसाइटी को कोविड-19 संक्रमण के इलाज के लिए चार आयुर्वेदिक दवाओं से युक्त किट वितरित करने का निर्देश दिया. इन किट का परीक्षण नहीं किया गया था और जो भी इनका इस्तेमाल करता, उन्हें गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हो सकता था.
इसके अलावा इस किट में शामिल आयुर्वेदिक दवाओं में से एक- रामदेव की पतंजलि द्वारा बनाई गई ‘कोरोनिल’, वर्तमान में दिल्ली हाईकोर्ट में दायर मामले के केंद्र में है, जहां डॉक्टरों के कई संघों ने रामदेव और उनकी कंपनी पर आरोप लगाए हैं कि उन्होंने कोविड-19 के इलाज के तौर पर दवा की मार्केटिंग करके गलत बयानी की और जनता में ऊहापोह की स्थिति पैदा की.
इस याचिका में एलोपैथिक डॉक्टरों के खिलाफ की गई रामदेव की अपमानजनक टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए चिंता जताई गई है.