राजस्थान ने पत्रकारों पर क़ानून के दस्ताने पहनकर हाथ डाला. छत्तीसगढ़ और यूपी की पुलिस ने एक प्रतिष्ठित पत्रकार के घर में मुंह-अंधेरे घुसकर बेशर्मी का परिचय दिया.
वरिष्ठ संपादक विनोद वर्मा को उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से मुंह-अंधेरे तीन और चार बजे के बीच उठाकर इंदिरापुरम थाने ले जाने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस बारह घंटे तक वर्मा के ख़िलाफ़ ग़ाज़ियाबाद अदालत में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर सकी. शाम ढलते वक़्त ही वह अदालत को ट्रांजिट रिमांड के लिए संतुष्ट कर पाई और अब आगे छत्तीसगढ़ की अदालत होगी.
बताते हैं, जब वर्मा को पुलिस ने रिमांड के लिए पेश किया तो अदालत ने वह सीडी मांगी जिसका हल्ला पुलिस ने मीडिया में मचाया था. जो पुलिस वर्मा पर छत्तीसगढ़ के एक मंत्री की कथित सेक्स सीडी की हज़ार प्रतियां दिल्ली में बनवाने का आरोप लगा रही थी, जिसने वर्मा के घर से तीन सौ सीडी बरामद होने का प्रचार भी किया, वह एक अदद सीडी अदालत को फ़ौरन क्यों नहीं दे सकी?
वर्मा का कहना है कि उनके पास वैसी कोई कॉपी की गई सीडी थी ही नहीं, पेनड्राइव ज़रूर है. पर इसमें अपराध कहां है? क्या पत्रकार किसी आपत्तिजनक आरोप की खोजबीन नहीं कर सकता?
मिली जानकारी के अनुसार गुरुवार को छत्तीसगढ़ भाजपा आइटी सेल के एक पदाधिकारी ने वर्मा के ख़िलाफ़ सीडी वाली एफआईआर दर्ज करवाई थी, रात ही राज्य की पुलिस दिल्ली उड़ चली, सुबह होने से पहले वर्मा को हिरासत में भी ले लिया. ऐसी भी क्या बेचैनी?
ज़ाहिर है, इससे इस संदेह को बल मिलता है कि पुलिस एक वरिष्ठ पत्रकार को सीडी के बहाने फंसाने की कोशिश कर रही है. वर्मा एडिटर्स गिल्ड की एक जांच समिति के सदस्य के नाते कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ गए थे. समिति ने पत्रकारों के ख़िलाफ़ हो रही गतिविधियों का अध्ययन किया था. राज्य सरकार को यह नागवार गुज़रा. वर्मा छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं.
मैं वर्माजी को बरसों से जानता हूं. वे इतने सुलझे हुए और संजीदा पत्रकार हैं कि मैंने कभी उन्हें किसी दुराग्रह में पड़ते नहीं देखा. वे लंदन में बीबीसी की हिंदी सेवा, देश में देशबंधु, अमर उजाला आदि प्रतिष्ठित अख़बारों में अहम पदों पर रहे हैं. नहीं लगता कि वे किसी षड्यंत्र का हिस्सा बने होंगे.
मीडिया का ज़िम्मा ऐसा है कि व्यभिचार भ्रष्टाचार की सीडी या चित्र आदि कोई भी व्यक्ति पत्रकार के संज्ञान में ला सकता है. पत्रकार उसे देखने के बाद क्या कार्रवाई अंजाम देता है, यह महत्त्वपूर्ण बात होती है. क्या केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने अपनी पत्रिका सूर्या में जगजीवन राम के पुत्र सुरेश राम की गंदी तसवीरें प्रकाशित नहीं की थीं?
राजस्थान ने पत्रकारों पर क़ानून के दस्ताने पहनकर हाथ डाला. छत्तीसगढ़ और यूपी की पुलिस ने एक प्रतिष्ठित पत्रकार के घर में मुंह-अंधेरे घुसकर बेशर्मी का ही परिचय दिया है. लेकिन वे भी अपने आकाओं के इशारे पर चल रहे होंगे.
हैरानी होती है कि भाजपा के बड़े नेताओं को क्या अपनी पार्टी की साख की ज़रा परवाह नहीं? या वे ऐसी ही कूड़ा साख अर्जित करना चाहते हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)