कर्नाटक: एससी/एसटी आरक्षण में बढ़ोतरी करने वाले अध्यादेश को राज्यपाल ने मंज़ूरी दी

इस मंज़ूरी के साथ कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौजूदा तीन प्रतिशत से बढ़कर सात प्रतिशत हो जाएगा. इस क़दम को राज्य की भाजपा सरकार द्वारा अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले इन समुदायों को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

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थावरचंद गहलोत. (फोटो साभार: फेसबुक)

इस मंज़ूरी के साथ कर्नाटक में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौजूदा तीन प्रतिशत से बढ़कर सात प्रतिशत हो जाएगा. इस क़दम को राज्य की भाजपा सरकार द्वारा अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले इन समुदायों को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

थावरचंद गहलोत. (फोटो साभार: फेसबुक)

बेंगलुरु: अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने राज्य में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को रविवार (23 अगस्त) को अपनी मंजूरी दे दी.

अध्यादेश मंजूर होने के साथ अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़कर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए मौजूदा तीन प्रतिशत से बढ़कर सात प्रतिशत हो जाएगा. यह अध्यादेश जस्टिस नागमोहन दास समिति की रिपोर्ट के अनुरूप है.

राज्य मंत्रिमंडल ने कुछ दिन पहले अध्यादेश को मंजूरी दी थी. राज्यपाल ने रविवार को इसे मंजूरी दे दी. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि अध्यादेश को कर्नाटक विधानमंडल के दोनों सदनों में पेश किया जाएगा, ताकि इसे वहां मंजूरी मिल सके.

बोम्मई ने कहा, ‘हमारी सरकार आरक्षण बढ़ाने की प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ी है. यह हमारी सरकार की ओर से एससी-एसटी को तोहफा है.’

अध्यादेश का उद्देश्य कर्नाटक में शैक्षणिक संस्थानों में सीटों के आरक्षण और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का प्रावधान करना है.

गजट अधिसूचना में कहा गया है कि कुछ और समुदायों को शामिल करने के बाद जातियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. इसमें कहा गया है कि राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की कुल आबादी में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

अधिसूचना में आगे कहा गया है कि 1976 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) अधिनियम- 1976 (1976 का केंद्रीय अधिनियम 108) के अनुसार, जातियों से जुड़ी भौगोलिक सीमाओं को हटा दिया गया था, जिससे राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी में असाधारण वृद्धि हुई.

इस कदम को कर्नाटक में भाजपा सरकार द्वारा विधानसभा चुनाव से पहले अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. राज्य में विधानसभा चुनाव अगले साल होना है.

बहरहाल, सोमवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि उनकी सरकार शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने वाले अध्यादेश को कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिए हर उपाय करेगी.

बोम्मई ने कहा, ‘दोनों सदनों से मंजूरी लेने की जरूरत है, जो हम अगले (विधानसभा) सत्र में करेंगे.’

आरक्षण पर कुछ अन्य सिफारिशों के बारे में मुख्यमंत्री ने कहा कि वे प्रस्ताव विभिन्न आयोगों के समक्ष लंबित हैं. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट आने के बाद सरकार कार्रवाई करेगी.

बोम्मई ने आरक्षण श्रेणियों से समुदायों को हटाने या जोड़ने की संभावनाओं पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि इस तरह के निर्णय कानून और संविधान के ढांचे के भीतर लिए जाने चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)