केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2021 और फरवरी 2022 के बीच जारी किए गए 10 ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने वाली ट्विटर की एक याचिका पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. ट्विटर ने कहा है कि ऐसा कहना कि ‘मैं कारण नहीं बताऊंगा और संवाद नहीं करूंगा’, अपने आप में सुरक्षा मानकों के ख़िलाफ़ होगा. कारण दिए जाने चाहिए.
नई दिल्ली: ट्विटर ने गुरुवार (27 अक्टूबर) को कर्नाटक हाईकोर्ट से कहा कि किसी भी ट्विटर हैंडल और पोस्ट को ब्लॉक करने के केंद्र सरकार के आदेशों में इसके पीछे का कारण भी शामिल होने चाहिए, ताकि माइक्रोब्लॉगिंग साइट के उपयोगकर्ताओं को इस संबंध में सूचित किया जा सके.
ट्विटर ने फरवरी 2021 और फरवरी 2022 के बीच केंद्र सरकार द्वारा जारी किए गए दस ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने वाली अपनी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही गई.
ट्विटर की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अशोक हरनहल्ली ने कहा कि उपयोगकर्ताओं को ब्लॉकिंग आदेशों के कारण बताए जाने चाहिए, ताकि वे यह तय कर सकें कि उक्त आदेशों को चुनौती देना है या नहीं.
इसके अलावा, अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अगर उन्हें कारण नहीं बताए जाते हैं, तो ऐसी संभावनाएं हैं कि बाद में इसके पीछे मनमाने कारण गढ़े जा सकते हैं.
समाचार वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हरनहल्ली ने कहा, ‘ऐसा कहना कि ‘मैं कारण नहीं बताऊंगा और संवाद नहीं करूंगा’, अपने आप में सुरक्षा मानकों के खिलाफ होगा. कारण दिए जाने चाहिए, ताकि प्रभावित व्यक्ति अदालत जाकर इन्हें चुनौती दे सके.’
इस बीच मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित ने कहा कि ‘समाज के एक वर्ग का परिपक्वता स्तर सही स्तर का नहीं है. लोगों का एक वर्ग ऐसा है, जो अपने सामने आने वाली सभी चीजों पर भरोसा कर लेता है.’
वरिष्ठ अधिवक्ता हरनहल्ली ने दलील देते हुए कहा कि जिन लोगों के एकाउंट बंद कर दिए गए हैं, उन्हें नोटिस देना एक प्रक्रियात्मक आवश्यकता है, लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा था.
उन्होंने पूछा, ‘सिर्फ इसलिए कि यह हमारे हित के खिलाफ है, क्या हमें किसी विदेशी हैंडल को ब्लॉक कर देना चाहिए?’
उन्होंने दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन का उदाहरण देते हुए कहा, ‘कुछ ट्वीट मानहानिकारक हो सकते हैं, लेकिन क्या विभिन्न एकाउंट को ब्लॉक कर दिया जाना चाहिए?’
उन्होंने अपनी दलीलों को यह कहते हुए समाप्त किया कि नागरिकों को यह पता लगाने की आवश्यकता है कि कौन सी जानकारी सही है. हर कोई समाचार पत्रों पर निर्भर नहीं है. बहुत से लोग सोशल मीडिया का इस उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने तर्क दिया कि इसलिए सूचना के प्रवाह को अवरुद्ध करना गलत है.
इसके बाद अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एमबी नरगुंड द्वारा अपनी दलीलें देने के लिए समय मांगे जाने के बाद मामले की सुनवाई 16 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई.
इससे पहले अदालत ने एक हस्तक्षेप आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया. यह आवेदन ट्विटर एकाउंट ब्लॉक किए जाने के खिलाफ एक उपभोक्ता की ओर से दिया गया था.
संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता को आवेदन वापस लेने की अनुमति दी गई.
गौरतलब है कि जुलाई में ट्विटर ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी 10 ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था.
कंपनी ने 2 फरवरी 2021 से 28 फरवरी 2022 तक मंत्रालय द्वारा दिए गए ब्लॉकिंग आदेशों को, यह कहते हुए कि यह बोलने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और अधिकारियों द्वारा कथित उल्लंघनकर्ताओं को नोटिस जारी न किए बिना ट्विटर से सामग्री हटाने के लिए कहना नियमानुकूल नहीं है, चुनौती दी है.
ट्विटर की याचिका में कहा गया था कि आईटी अधिनियम की धारा 69 (ए) के तहत सामग्री ‘ब्लॉक’ करने को लेकर कई आदेश जारी किए गए, लेकिन उसमें यह नहीं बताया गया कि संबंधित सामग्री धारा 69 (ए) का उल्लंघन कैसे करती है. ट्विटर ने अदालत से सामग्री ‘ब्लॉक’ करने के आदेशों की न्यायिक समीक्षा का आग्रह किया था.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने ट्विटर की याचिका पर एक सितंबर को 101 पृष्ठों का एक बयान दाखिल किया था.
बाद में, ट्विटर ने हाईकोर्ट को बताया था कि सरकार ने किसान आंदोलन और कोविड प्रबंधन पर सवाल उठाने वाले ट्विटर एकाउंट को ब्लॉक करने के लिए कहा था.
सरकार ने उसे किसी ट्वीट के आधार पर पूरे एकाउंट को ब्लॉक करने के लिए कहा था, हालांकि आईटी अधिनियम की धारा 69 (ए) पूरे एकाउंट को ब्लॉक करने की अनुमति नहीं देती. धारा के तहत केवल सूचना या किसी विशेष ट्वीट को ब्लॉक करने की इजाजत है.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्विटर को कथित तौर पर केंद्र सरकार से 1,100 से अधिक ब्लॉकिंग आदेश प्राप्त हुए, लेकिन उनमें से केवल 39 के खिलाफ उसने अदालत का रुख किया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)