न्यायिक नियुक्ति आयोग पर क़ानून मंत्री बोले- सुप्रीम कोर्ट देश की इच्छा पर सहमत नहीं हुआ

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के अपारदर्शी होने की बात दोहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम देश की सामूहिक इच्छा थी, जिससे सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ.

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केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू. (फोटो साभार: फेसबुक/@KirenRijiju)

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के अपारदर्शी होने की बात दोहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम देश की सामूहिक इच्छा थी, जिससे सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ.

केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू. (फोटो साभार: फेसबुक/@KirenRijiju)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर बहस को दोबारा छेड़ते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को एनजेएसी अधिनियम को ‘राष्ट्र की सामूहिक इच्छा’ बताया और बीते दस दिन से कम समय में दूसरी बार जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के अपारदर्शी होने की बात दोहराई.

उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2015 में जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले संसद के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित एनजेएसी अधिनियम, जिसके तहत उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी, को निरस्त कर दिया था.

पिछले दिनों ही गुजरात में हुए एक कार्यक्रम में कानून मंत्री ने कहा था कि ‘देश के लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं’ हैं. उनका कहना था, ‘संविधान की भावना को देखा जाए तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का ही काम है. दुनिया में कहीं भी न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश बिरादरी नहीं करती हैं.’

उन्होंने यह भी कहा था, ‘देश का कानून मंत्री होने के नाते मैंने देखा है कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग यह तय करने में लगा रहता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा. मूल रूप से न्यायाधीशों का काम लोगों को न्याय देना है, जो इस व्यवस्था की वजह से बाधित होता है.’

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, गुरुवार को एक टीवी चैनल को साक्षात्कार देते हुए रिजिजू ने कहा, ‘जब एनजेएसी की बात आती है, तो यह संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित एक अधिनियम था. सभी दलों ने एक साथ आकर इस विशेष अधिनियम को संसद के दोनों सदनों में पारित किया… इसका मतलब था कि यह राष्ट्र की सामूहिक इच्छा है. इसलिए एक बार जब सभी दलों द्वारा राष्ट्र की सामूहिक इच्छा को एक साथ लाया गया और संसद के माध्यम से पारित किया गया, तो हम उम्मीद कर रहे थे कि न्यायपालिका या सर्वोच्च न्यायालय लोगों और संसद की इच्छा का सम्मान करेगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया…  कानून मंत्री के रूप में, मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भारत के लोगों की इच्छा से सहमत नहीं है.’

उन्होंने कहा कि ‘नियुक्तियों के लिए वैकल्पिक तंत्र का सुझाव एनजेएसी से बेहतर नहीं थे, लेकिन चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया, इसलिए ‘समय लेने वाली’ कॉलेजियम प्रणाली को जारी रखना पड़ा.’

2015 में एनजेएसी अधिनियम को निरस्त करने के फैसले की न्यायिक बिरादरी में भी खासी आलोचना हुई थी. तब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कानून आयोग के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस एपी शाह ने कहा था कि ‘यह परेशान करने वाला है कि शीर्ष अदालत इस बात को लेकर सहज थी कि कॉलेजियम प्रणाली में न्यायिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहेगी.’

गौरतलब है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली अक्सर ही आलोचना का केंद्र रहती है. हालांकि, सीजेआई के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस एनवी रमना ने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा था कि न्यायिक नियुक्तियों पर उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले जनता के विश्वास को बनाए रखने के मक़सद से होते हैं.

उनका कहना था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से होती है, जहां कई हितधारकों के साथ विचार-विमर्श किया जाता है.