चुनाव से पहले मुफ्त सौगात के वादों के ख़िलाफ़ याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ सुनेगी: अदालत

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि विवाद की प्रकृति और पहले की सुनवाइयों में पक्षों द्वारा दी गईं दलीलों पर विचार करते हुए मामले को यथासंभव जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि विवाद की प्रकृति और पहले की सुनवाइयों में पक्षों द्वारा दी गईं दलीलों पर विचार करते हुए मामले को यथासंभव जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा.

(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव से पहले मुफ्त सौगातों का वादा करने की प्रवृत्ति के खिलाफ याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ संयुक्त रूप से सुनेगी.

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि अभी पीठ में दो न्यायाधीश हैं और मामले में उल्लिखित एक आदेश के अनुसार इसे तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए.

पीठ ने कहा कि विवाद की प्रकृति और पहले की सुनवाइयों में पक्षों द्वारा दी गईं दलीलों पर विचार करते हुए मामले को यथासंभव जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा.

इसी तरह की एक जनहित याचिका दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि एक बड़ी पीठ को सुब्रमण्यम बालाजी मामले में पहले के फैसले पर विचार करने के उद्देश्य के साथ सुनवाई करनी चाहिए.

उन्होंने यह भी सुझाया कि व्यापक जनहित में मुफ्त सौगातों पर नियंत्रण और निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई जाए तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त को इसका प्रमुख बनाया जाए.

उपाध्याय ने यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, वित्त आयोग के अध्यक्ष, नीति आयोग के उपाध्यक्ष, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, जीएसटी परिषद के सचिव और इंस्टिट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया एवं इंस्टिट्यूट ऑफ कॉस्ट एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के अध्यक्षों को समिति का सदस्य बनाया जाए.

हालांकि पीठ ने कहा कि वह इस तरह के किसी अनुरोध पर विचार नहीं कर सकेगी और एक उचित पीठ द्वारा इन पर संज्ञान लिया जाएगा.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इससे पहले तत्कालीन सीजेआई एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 अगस्त 2022 को निर्देश दिया था कि याचिकाओं को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, क्योंकि उन्हें व्यापक सुनवाई की आवश्यकता है.

पीठ ने कहा था कि एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य के मामले में शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए 2013 के फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.

एनवी रमना ने कहा था, ‘इसमें शामिल मुद्दों की जटिलताओं और सुब्रमण्यम बालाजी में इस अदालत की दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले को खारिज करने की प्रार्थना को देखते हुए हम आदेश प्राप्त करने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष याचिकाओं को सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं.’

पीठ ने कहा था कि इन याचिकाओं में उठाए गए सवाल राजनीतिक दलों द्वारा अपने चुनावी घोषणा-पत्र के हिस्से के रूप में या चुनावी भाषणों के दौरान मुफ्त उपहारों के वितरण के लिए किए गए वादों से संबंधित हैं.

पीठ ने आगे कहा था कि याचिकाकर्ताओं का मुख्य तर्क यह है कि इस तरह के चुनावी वादों का राज्य की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)