केंद्र सरकार के कर्मचारी यूनियन के एक महासंघ ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग करते हुए कैबिनेट सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि नई पेंशन योजना सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए बुढ़ापे में आपदा के समान है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के कर्मचारी संघों के एक महासंघ ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करने के लिए कैबिनेट सचिव को लिखा है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए उनके बुढ़ापे में एक आपदा के समान है.
द हिंदू के मुताबिक, महासंघ ने बताया कि रक्षा प्रतिष्ठान के एक अधिकारी, जो हाल ही में 13 साल से अधिक की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हुए हैं, को उस सुनिश्चित पेंशन, जो ओपीएस के तहत मिलती, का केवल 15% ही प्राप्त हुआ है.
एनपीएस के तहत, 30,500 रुपये के मूल वेतन (बेसिक सैलरी) वाले अधिकारी को मासिक पेंशन के रूप में 2,417 मिलते हैं, जबकि ओपीएस के तहत उन्हें 15,250 रुपये पेंशन दी जाती थी. इसी तरह, 34,300 रुपये का मूल वेतन पाने वाले एक अन्य अधिकारी को 15 साल से अधिक की सेवा के बाद मासिक पेंशन के रूप में 2,506 रुपये मिले, जबकि ओपीएस के तहत उन्हें पेंशन के रूप में 17,150 रुपये मिलते.
ग्रुप बी और ग्रुप सी के अधिकारियों सहित विभिन्न सरकारी यूनियनों के एक शीर्ष निकाय संयुक्त सलाहकार मशीनरी (जेसीएम) द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है: ‘यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि एनपीएस कर्मचारी अपनी पूरी सेवा के लिए हर महीने अपने वेतन का 10% योगदान करने के बावजूद बहुत कम पेंशन पा रहे हैं और यह ओपीएस की तुलना में काफी ख़राब है. एनपीएस के तहत पेंशन स्थिर बनी हुई है और ओपीएस में उपलब्ध मूल्य वृद्धि/महंगाई से निपटने के लिए कोई महंगाई राहत (Dearness Relief) नहीं है.’
इसमें आगे कहा गया है कि अर्धसैनिक कर्मियों सहित केंद्र सरकार के सभी कर्मचारी ‘नो गारंटीड एनपीएस’ का विरोध कर रहे हैं और सरकार से एनपीएस खत्म करने की मांग कर रहे हैं.
गौरतलब है कि कैबिनेट सचिव जेसीएम के अध्यक्ष होते हैं.
जेसीएम की राष्ट्रीय काउंसिल के सचिव (स्टाफ पक्ष) शिव गोपाल मिश्रा द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में यह भी कहा गया है, ‘एनपीएस को लागू हुए अब 18 साल हो गए हैं. 01.01.2004 को या उसके बाद भर्ती किए गए कर्मचारी अब सेवा से रिटायर होना शुरू हो गए हैं. एनपीएस से पेंशन के रूप में अब उन्हें जो मामूली राशि मिल रही है, उससे यह साबित होता है कि सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों के लिए यह कोई लाभ की स्थिति न होकर उनके बुढ़ापे में एक आई आपदा है.
मिश्रा ने द हिंदू को बताया कि एनपीएस ‘सरकारी कर्मचारियों पर किया गया अत्याचार’ था और महासंघ इस पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए गंभीर उपायों पर विचार कर रहा था.
उन्होंने कहा, ‘यह करो या मरो की स्थिति है. लड़ाई को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाएगा. हम बैंक और बीमा [कर्मचारी] संघों के संपर्क में हैं. हम देश की आर्थिक स्थिति से अवगत हैं और एक व्यावहारिक समाधान तलाश रहे हैं, लेकिन कोई रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी 1,800 रुपये की पेंशन से अपना घर कैसे चला सकता है?’
उन्होंने जोड़ा कि उन्होंने कैबिनेट सचिव, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और व्यय विभाग के साथ कई दौर की बैठकें की थीं और उन्हें बताया गया था कि यह नीतिगत मुद्दा नौकरशाही से परे था.
ओपीएस या परिभाषित पेंशन लाभ योजना में सेवानिवृत्ति के बाद जीवन भर की आय का आश्वासन दिया जाता है, जिसमें आमतौर पर अंतिम वेतन के 50% के बराबर राशि मिलती है. पेंशन पर होने वाला खर्च सरकार वहन करती है.
ज्ञात हो कि साल 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने ओपीएस को बंद करने का फैसला किया था और एनपीएस की शुरुआत की थी. एक अप्रैल, 2004 से केंद्र सरकार की सेवा (सशस्त्र बलों को छोड़कर) में शामिल होने वाले सभी नए कर्मचारियों पर लागू होने वाली यह योजना एक भागीदारी योजना है, जहां कर्मचारी सरकार के साथ मिल-जुलकर अपने वेतन से पेंशन कोष में योगदान करते हैं, जो बाजार से भी जुड़ी है.
पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने एनपीएस लागू किया था. इस साल विपक्ष शासित छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड और पंजाब ने घोषणा की थी कि वे ओपीएस को बहाल करेंगे. आगामी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में ओपीएस एक प्रमुख चुनावी मुद्दे के रूप में उभरा है.
समय-समय पर कई कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन योजना की बहाली के लिए प्रदर्शन करते रहे हैं.