मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले की खतौली विधानसभा से भाजपा के विधायक विक्रम सिंह सैनी को मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के केस में दो वर्ष की सज़ा सुनाए जाने के बाद विधानसभा सचिवालय ने इस सीट को रिक्त घोषित कर दिया है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के खतौली विधानसभा क्षेत्र के विधायक विक्रम सिंह सैनी को सांसद-विधायक अदालत द्वारा मुजफ्फरनगर दंगे के आरोप में दो वर्ष की सजा सुनाए जाने के 27 दिन बाद विधानसभा सचिवालय ने खतौली विधानसभा सीट को रिक्त घोषित करते हुए सोमवार को इस आशय का आदेश जारी किया.
इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर सैनी की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता भी 11 अक्टूबर से स्वत: ही रद्द हो गई है.
सैनी को मुजफ्फरनगर की सांसद-विधायक अदालत ने 11 अक्टूबर, 2022 को दो वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि सजा सुनाए जाने के कुछ देर बाद ही जमानत भी दे दी थी.
विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि विक्रम सिंह उत्तर प्रदेश विधानसभा निर्वाचन (2022) में खतौली विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे.
अधिसूचना के मुताबिक, मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ थाना क्षेत्र में दर्ज भारतीय दंड संहिता की धारा 147 (बलवा), 148 (हथियारों से लैस होकर बलवा करना) धारा 336 (मानव जीवन को खतरा उत्पन्न करना), 149 (विधि विरुद्ध जन समूह का नेतृत्व और सभा में शामिल होना), 353 (लोकसेवक पर हमला), 504 (जानबूझकर अपमान करना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत विशेष सत्र न्यायाधीश एमपी-एमएलए अदालत ने सैनी दो वर्ष कारावास और पांच हजार रुपये के अर्थदंड से दंडित किया है, इसलिए उच्चतम न्यायालय के 10 जुलाई, 2013 के फैसले के क्रम में 11 अक्टूबर, 2022 से अयोग्य माने जाएंगे.
अधिसूचना में कहा गया, ‘यह अधिसूचित किया जाता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में विक्रम सिंह का स्थान 11 अक्टूबर, 2022 से रिक्त हो गया है.’
सर्वोच्च न्यायालय के 10 जुलाई, 2013 के फैसले के अनुसार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक, दो साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले किसी भी व्यक्ति को ऐसी सजा की तारीख से सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और जेल की सजा पूरी करने के बाद छह साल तक वह अयोग्य रहेगा.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता मोहम्मद आजम खान की विधानसभा सदस्यता निरस्त किए जाने के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को 29 अक्टूबर को पत्र लिखकर उनके ‘त्वरित न्याय की मंशा’ पर सवाल उठाया था और खतौली से भारतीय जनता पार्टी के विधायक विक्रम सिंह सैनी का हवाला देते हुए उन्होंने पूछा था कि क्या सत्ताधारी दल और विपक्ष के विधायक के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की जा सकती है?
गौरतलब है कि भड़काऊ भाषण मामले में रामपुर के सपा विधायक आजम खान को 27 अक्टूबर को तीन साल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद ही विधानसभा सचिवालय ने रामपुर विधानसभा सीट रिक्त घोषित कर दी थी. रामपुर की एमपी/एमएलए अदालत ने सपा नेता आजम खान को भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी करार देते हुए तीन साल कैद और छह हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी.
जयंत चौधरी के पत्र के जवाब में चार नवंबर को विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को जवाबी पत्र लिखकर कहा था कि समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खान की विधानसभा सदस्यता निरस्त करने में उनकी कोई भूमिका नहीं है.
शुक्रवार को सोशल मीडिया के जरिये सामने आये पत्र में महाना ने जयंत चौधरी को जवाब देते हुए कहा, ‘अध्यक्ष के स्तर पर मेरे द्वारा किसी सदस्य को न्यायालय द्वारा दंडित करने की स्थिति में सदस्यता रद्द किये जाने का निर्णय नहीं लिया जाता है.’
बता दें कि भाजपा विधायक विक्रम सैनी तथा 26 अन्य के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों की मुख्य वजह माने जाने वाले कवाल कांड मामले में मुकदमा दर्ज किया गया था.
मामला 28 अगस्त 2013 का है, जब मुजफ्फरनगर के कवाल कस्बे में शाहनवाज, सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी. पुलिस ने कहा था कि शाहनवाज की हत्या के मुख्य आरोपी सचिन और गौरव की ग्रामीणों ने हत्या कर दी थी. इन हत्याओं ने मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों में सांप्रदायिक दंगे भड़का दिए थे.
कवाल कांड के बाद सितंबर 2013 में मुजफ्फनगर और आसपास के कुछ जिलों में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, जिनमें कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा 40 हजार से अधिक लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा था.
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर प्रदेश के 2013 मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंसा में आरोपी भाजपा विधायक विक्रम सैनी और 11 अन्य को बरी कर दिया था. इस मामले में अभियोजन पक्ष के पांच गवाहों के मुकर जाने के बाद अन्य को संदेह का लाभ देकर छोड़ दिया गया था.
इसी घटना को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने 77 मामले वापस लिए थे, जिनमें से कुछ को अगस्त 2021 में आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई थी, जिसके बाद विधायक सैनी और अन्य को बरी किया गया था.
द वायर ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कुल 510 मामलों में से सिर्फ 164 मामलों में ही अंतिम रिपोर्ट पेश की गई, जबकि 170 को हटा दिया गया है. इसके बाद सीआरपीसी की धारा 321 के तहत राज्य सरकार ने बिना कारण बताए 77 मामलों को वापस ले लिया था.
मामले में एमिक्स क्यूरी (न्यायमित्र) वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने इस कदम की आलोचना की थी. इस फैसले का योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ने कोई कारण नहीं बताया था, सिर्फ इतना कहा था कि प्रशासन ने इन मामलों को वापस लेने से पहले इस पर विचार किया था.
साल 2019 में मुजफ्फरनगर की एक अदालत ने सचिन और गौरव की हत्या से संबंधित एक मामले में सात लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए 2016 में गठित किए गए जस्टिस विष्णु सहाय जांच आयोग ने हिंसा के लिए खुफिया विफलता और कुछ शीर्ष अधिकारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया था.
पिछले साल एसआईटी ने कहा था कि दंगों के दौरान हत्या, बलात्कार, डकैती एवं आगजनी से संबंधित 97 मामलों में 1,117 लोग सबूतों के अभाव में बरी हो गए. एसआईटी के अधिकारियों के मुताबिक, पुलिस ने 1,480 लोगों के खिलाफ 510 मामले दर्ज किए और 175 मामलों में आरोप-पत्र दायर किया था.
एसआईटी 20 मामलों में आरोप-पत्र दायर कर नहीं सकी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उसे मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली. दंगों संबंधित इन 20 मामलों में विधायक और सांसद भी आरोपियों की सूची में हैं.
उत्तर प्रदेश सरकार ने दंगों से जुड़े 77 मामलों को वापस लेने का फैसला किया था, लेकिन अदालत ने उत्तर प्रदेश के मंत्री सुरेश राणा, भाजपा विधायक संगीत सोम समेत 12 भाजपा विधायकों के खिलाफ सिर्फ एक मामला वापस लेने की अनुमति दी थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)