नोटबंदी के छह साल पूरे होने पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री के सूट-बूट वाले मित्रों का काला धन सफेद करने की एक चालाकी भरी स्कीम थी.
नई दिल्ली: विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत केंद्र सरकार द्वारा 2016 में की गई नोटबंदी को आर्थिक नरसंहार, आपराधिक कृत्य और संगठित लूट करार दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी. इस फैसले का मुख्य मकसद डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाना तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करना था.
कांग्रेस ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि नोटबंदी स्वतंत्र भारत में सबसे बड़ी संगठित लूट थी.
कांग्रेस ने नोटबंदी के छह साल पूरा होने के मौके पर मंगलवार को कहा कि मोदी सरकार के इस कदम के बाद चलन में नकदी 72 प्रतिशत बढ़ गई और ऐसे में सरकार को इस पर ‘श्वेत पत्र’ लाना चाहिए.
Remember, the hundreds of goalposts which Modi Govt was shifting to justify this act?
… And then they came with a fresh one – "Cashless Economy"
Reality: Cash available in public is 72% higher than that in 2016. Surveys reveal 76% of people still prefer cash !
— Mallikarjun Kharge (@kharge) November 8, 2022
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक ट्वीट कर कहा, ‘संगठित और कानूनी लूट के छह साल. नोटबंदी आपदा के कारण अपनी जान गंवाने वाले 150 लोगों को श्रद्धांजलि…इस व्यापक विफलता के छह साल पूरे हो रहे हैं, ऐसे में प्रधानमंत्री के उस आपदा के बारे में याद दिलाना महत्वपूर्ण है जिसे उन्होंने राष्ट्र पर थोप दिया था.’
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी नोटबंदी के फैसले को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘नोटबंदी सोच-समझ कर किया गया एक क्रूर षड्यंत्र था. यह घोटाला प्रधानमंत्री के सूट-बूट वाले मित्रों का काला-धन सफेद करने की एक चालाकी भरी स्कीम थी.’
Demonetisation was a deliberate move by ‘PayPM’ to ensure 2-3 of his billionaire friends monopolise India’s economy by finishing small & medium businesses. pic.twitter.com/PaTRKnSPCx
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 8, 2022
उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी ‘पेपीएम’ द्वारा एक जानबूझकर उठाया गया कदम था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके 2-3 अरबपति दोस्त छोटे और मध्यम व्यवसायों को खत्म करके भारत की अर्थव्यवस्था पर एकाधिकार कर लें.’
पार्टी नेता गौरव वल्लभ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोटबंदी रूपी इस भयावह विफलता को स्वीकार करना चाहिए.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘8 नवंबर 2016 का दिन सबको याद होगा. आज भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट करने के फैसले की छठी बरसी है. नोटबंदी के 50 दिन के बाद आज तक सरकार ने नोटबंदी का नाम तक नहीं लिया है.’
वल्लभ ने दावा किया, ‘हिंदुस्तान के इतिहास की सबसे बड़ी ऑर्गेनाइज्ड लूट 8 नवबंर 2016 को नोटबंदी के माध्यम से सरकार ने की.’
उन्होंने कहा, ‘पिछले 6 साल में अर्थव्यवस्था में जो कैश-इन-सर्कुलेशन (चलन में नकदी) है, वो 72 प्रतिशत बढ़ा है. 2016 में अर्थव्यवस्था में चलन में नकदी 17.97 लाख करोड़ रुपये थी, जो आज 30.88 लाख करोड़ रुपये हो चुकी है.’
उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी पर सरकार के दावे धराशायी हो गए हैं. काला धन कम नहीं हुआ, स्विस बैंक में भारतीयों का धन 14 साल के उच्चतम स्तर पर है. नकली नोट भी कम नहीं हुए, रिजर्व बैंक की 2021-22 की रिपोर्ट अनुसार 500 रुपये के नकली नोटों में 102 प्रतिशत की वृद्धि, 2000 के नकली नोटों में 55 प्रतिशत की बढ़त हो गई है.’
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता और राज्यसभा में पार्टी के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह कदम एक नौटंकी था.
6 years ago, today. A gimmick that turned out to be an economic genocide #demonetisation
Wrote about this in my book in 2017 #InsideParliament 👇@MamataOfficial called it first ‘withdraw this draconian decision’ minutes after announcement. Others agreed, but only weeks later pic.twitter.com/4j2ICluG9e
— Derek O'Brien | ডেরেক ও'ব্রায়েন (@derekobrienmp) November 8, 2022
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘6 साल पहले, आज ही के दिन. एक नौटंकी जो आर्थिक नरसंहार साबित हुई. इस बारे में मैंने 2017 में मेरी किताब इनसाइड पार्लियामेंट में लिखा था.’
ब्रायन ने कहा कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने फैसले को वापस लेने को कहा था.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह सभी अच्छी समझ, सबूत और सलाह के विरुद्ध, नोटबंदी के आपराधिक कृत्य पर अपना ढोल पीट रही है.
The sixth anniversary of Modi and his govt’s hubris, killing off the Indian economy. Demonetisation has resulted in chaos apart from a record high of cash in circulation. ₹30.88 lakh crore!👇🏾
The worst jumla of all – “This suffering is only for 50 days.” #Demonetisation pic.twitter.com/VDDvHxwIRW— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) November 8, 2022
येचुरी ने ट्वीट किया, ‘मोदी और उनकी सरकार के दर्प के छह साल, भारतीय अर्थव्यवस्था को खत्म कर दिया. नोटबंदी के परिणामस्वरूप अराजकता के अलावा रिकॉर्ड उच्च मात्रा में नकदी का चलन… सबसे खराब जुमला- ‘यह दुख सिर्फ 50 दिनों के लिए है.’
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के वरिष्ठ नेता बिनय विश्वम ने भी सरकार पर निशाना साधा और कहा कि छह साल पहले बड़ी धूमधाम से नोटबंदी का कदम उठाया गया था तथा काला धन और आतंकवाद को समाप्त करने का वादा किया गया था.
उन्होंने कहा कि अब यह जायजा लेने का वक्त समय है कि इससे देश को किस प्रकार मदद मिली.
भाकपा नेता ने एक ट्वीट में कहा, ‘अब उन वादों का जायजा लेने का समय आ गया है. प्रधानमंत्री से अनुरोध है कि वह नोटबंदी पर श्वेत पत्र जारी करें.’
नोटबंदी के फायदों पर छह साल बाद भी जारी है बहस
नोटबंदी के छह साल बीत जाने के बाद भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर बहस जारी है. सरकार का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में मदद मिली, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह फैसला काले धन पर अंकुश लगाने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में विफल रहा है.
इस कदम का उद्देश्य भारत को ‘कम नकदी’ वाली अर्थव्यवस्था बनाना था. यह भी कहा गया कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करने में मदद मिलेगी.
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से पखवाड़े के आधार पर शुक्रवार को जारी धन आपूर्ति आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 अक्टूबर तक जनता के बीच चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया. यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर नोटबंदी से अब तक 71 प्रतिशत बढ़ा.
अमेरिका के मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने कहा कि नोटबंदी के लिए दिया गया तर्क (काले धन की वजह नकदी है), इसकी योजना (अनौपचारिक क्षेत्र में नकदी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार न करना, जिस पर 85 प्रतिशत आबादी निर्भर है) और कार्यान्वयन (सरकारी एजेंसियों तथा बैंकों को तैयारी का मौका दिए बिना अचानक की गई नोटबंदी), सभी पूरी तरह गलतियों से भरे थे.
लोकलसर्किल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के छह साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बड़े फैसले ने अपने लक्ष्य को हासिल किया या नहीं. उपलब्ध सबूतों से पता चलता है कि लोग अभी भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का लेनदेन कर रहे हैं. इसके अलावा हार्डवेयर, पेंट और कई अन्य घरेलू उत्पादों की बिक्री बिना उचित रसीद के की जा रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)