इस साल फरवरी में सेक्टर-109 की चिंटेल्स पैराडिसो सोसाइटी के एक रिहायशी टावर की छठी मंज़िल की छत गिरने से पहले फ्लोर तक की सभी छतें और फर्श ढह गए थे और हादसे में दो महिलाओं की जान गई थी. इसे गिराने का आदेश देते हुए ज़िला प्रशासन ने कहा कि टावर की संरचनात्मक कमियां ‘मरम्मत से परे’ पाई गई हैं.
गुड़गांव: हरियाणा के गुड़गांव में चिंटेल्स पैराडिसो सोसाइटी का एक टावर, जो फरवरी में आंशिक रूप से ढह गया था, उसे जल्द ही विध्वंस कर गिरा दिया जाएगा.
गुड़गांव जिला प्रशासन ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली की एक टीम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए शनिवार को बताया था कि टावर की संरचनात्मक कमियां ‘मरम्मत से परे’ पाई गई हैं.
नवभारत टाइम्स के अनुसार, इसके लिए बिल्डर को आदेश दे दिए गए हैं. साथ ही चिंटेल्स पैराडिसो के ई और एफ टावर को भी खाली करवाने का आदेश दिया गया है.
ज्ञात हो कि सेक्टर-109 के चिंटेल्स पैराडिसो में 10 फरवरी को टावर-डी की छठी मंजिल के एक अपार्टमेंट की छत के गिरने से दो महिलाओं की मौत हो गई थी. इस हादसे के कारण टावर की पहली मंजिल तक की सभी छतें और फर्श ढह गए थे. 18 मंजिला इस टावर में कुल 50 फ्लैट हैं.
इस घटना के बाद प्रशासन ने शहर की कई ऊंची इमारतों का संरचनागत मूल्यांकन (ऑडिट) कराने का फैसला किया था.
अख़बार के मुताबिक, 13 एकड़ की इस रिहायशी सोसाइटी को विकसित करने के लिए टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने साल 2007 और 2008 में चिंटल लिमिटेड को लाइसेंस दिया था. सोसाइटी में 9 रिहायशी टावर और 532 फ्लैट्स हैं.
साल 2016 में पांच- डी, ई, एफ, जी और एच रिहायशी टावर को ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट मिला था. अन्य चार टावर को साल 2017 में यह सर्टिफिकेट दिया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अतिरिक्त उपायुक्त, गुड़गांव की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि चिंटेल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और मैसर्स मनीष स्विचगियर एंड कंस्ट्रक्शन दोनों के प्रतिनिधि रेट्रोफिटिंग कार्यों को विनियमित और निगरानी करने में विफल रहे, जिससे स्लैब ढह गया और निचली मंजिलों तक नुकसान हुआ।
उल्लेखनीय है कि पांच नवंबर को गुड़गांव के उपायुक्त निशांत कुमार यादव ने आईआईटी, दिल्ली की टीम की रिपोर्ट साझा करते हुए कहा था कि टीम को टावर के निर्माण में संरचनात्मक कमियां मिली हैं, जिनकी मरम्मत तकनीकी और आर्थिक आधार पर संभव नहीं है.
नवभारत टाइम्स के अनुसार, रिपोर्ट में घटिया निर्माण सामग्री और पानी में क्लोरीन की वजह से जंग लगे सरियों को पेंट करके छिपाने की बात कही गई है. यादव ने कहा, ‘इसलिए चिंटेल्स पैराडिसो सोसाइटी के पूरे टावर डी को ध्वस्त कर देना चाहिए.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मरम्मत कार्य की भी निगरानी नहीं की गई… समिति ने पाया कि अत्यधिक गले स्टील की जंग को छुपाने के लिए पीले रंग के घोल से रंगा गया था। इस चूक की पुष्टि आईआईटी दिल्ली की रिपोर्ट से भी होती है। आईआईटी दिल्ली की रिपोर्ट को देखने के बाद… यह स्पष्ट है कि मरम्मत कार्य के लिए गलत कार्यप्रणाली अपनाई गई, जिससे तत्काल हादसा हुआ। फ्लैट नंबर डी-603 में रेट्रोफिटिंग करने से पहले शटरिंग सपोर्ट की जरूरत थी, लेकिन यह नहीं कराया गया.’
क्षतिपूर्ति को लेकर गफलत में रहवासी और आवंटी
टावर-डी को गिराने के जिला प्रशासन के आदेश के बाद आवंटियों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. आवंटियों ने इस आदेश के बाद क्षतिपूर्ति को लेकर अस्पष्टता का आरोप लगाया. टावर के बाशिंदों ने कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्षतिपूर्ति कब एवं किस आधार पर मिलेगी.
प्रशासन ने डेवलपर को भी 60 दिनों के अंदर आवंटियों के दावों का निपटान करने का निर्देश दिया गया है. हालांकि, इस निर्देश के बावजूद टावर-डी के बाशिंदों ने कहा कि जिला प्रशासन ने स्थिति बिगाड़ दी.
उन्होंने आरोप लगाया कि जिस संरचनागत मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर टावर को ढहाने का आदेश दिया गया है, वह उनके साथ साझा तक नहीं की गई.
उन्होंने यह भी दावा किया कि प्रशासन ने उन्हें विश्वास में लिए बगैर ही अपनी मर्जी से स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता की सेवा ले ली.
जिला प्रशासन ने गुरुवार को कहा कि मामले के निपटान के लिए टावर-डी के बाशिंदों, डेवलपर और मूल्य निर्धारक (एवैल्यूटर) की शुक्रवार को बैठक बुलाई गई है.
उपयुक्त निशांत यादव ने कहा, ‘हम टावर-डी के आवंटियों के दावों का 60 दिनों में निपटान करने के आदेश का अनुपालन करने के लिए शुक्रवार को बैठक बुलाई है. हमने आवंटियों को तीन विकल्प दिए हैं: वे बिल्डर के साथ चीजें निपटा सकते हैं या मूल्य निर्धारण के आधार अपने फ्लैट की राशि ले सकते हैं या वे अदालत जा सकते हैं. यह सभी उनकी पसंद पर निर्भर करता है, लेकिन सभी चीजें 60 दिनों में निपटायी जाएंगी.’
लेकिन बाशिंदों का कहना है कि प्रशासन ने स्थिति पर स्पष्टता देने की कोई कोशिश नहीं की है.
डी-202 के रहवासी विक्रम गंभीर ने कहा, ‘हम जो कुछ जानते हैं, वह सभी हमें मीडिया से पता चला है. फ्लैट के मालिक के तौर पर मुझे अब तक ऑडिट रिपोर्ट क्यों नहीं मिली? जिला प्रशासन ने मूल्य निर्धारण रिपोर्ट क्यों साझा नहीं की? हम परेशान हैं क्योंकि कल बैठक है और हमें आज दोपहर तक इसकी कोई सूचना नहीं है.’
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, रहवासियों ने क्षतिपूर्ति के लिए प्रस्तावित 1.5- 2 करोड़ रुपये को लेकर भी निराशा जताते हुए कहा कि यह पर्याप्त नहीं है.
यादव ने बताया कि बुधवार के आदेश में अधिकारियों ने मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर प्रत्येक अपार्टमेंट की लागत का मूल्यांकन किया है और अपार्टमेंट के आकार के आधार पर अंदरूनी निर्माण के लिए अतिरिक्त लागत जोड़ी है, जिसे बिल्डर फ्लैट मालिकों को देगा.
मामले से अवगत अधिकारियों ने बताया कि फ्लैट मालिकों के पास दावों के समाधान के लिए तीन विकल्प हैं – वे डेवलपर के साथ द्विपक्षीय तरीके से समझौता कर सकते हैं, वे जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त दो मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा मूल्यांकन किए गए प्रत्येक फ्लैट के मूल्य के आधार पर मुआवजे की मांग कर सकते हैं, या वे मुआवजे के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन में बताया, ‘एक मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की गई है और अपार्टमेंट के आकार के आधार पर निवासियों को 1.5-2 करोड़ मिलेंगे, अगर वे डेवलपर को वापस फ्लैट बेचने के इच्छुक हैं. यादव ने यह भी जोड़ा कि अधिकारियों ने पूरी प्रक्रिया की निगरानी के लिए नोडल अधिकारी के रूप में जिला टाउन प्लानर (डीटीपी) एनफोर्समेंट को नियुक्त किया है.’
हालांकि उपयुक्त के आदेश को लेकर रहवासियों ने निराशा जताई है. टावर जी के निवासी मनोज सिंह ने कहा कि वे मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा फ्लैटों के मूल्य का आकलन करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया से पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे. उन्होंने कहा, ‘फ्लैट के वास्तविक बाजार मूल्य के साथ-साथ मालिक द्वारा करवाए गए इंटीरियर कामों की लागत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए था.’ या गया है.
टॉवर डी के निवासी राम कृष्ण राणा, जिन्हें 10 फरवरी की घटना के बाद दूसरे टॉवर में स्थानांतरित कर दिया गया है, ने बताया कि उन्होंने 2011 में 1.75 करोड़ रुपये में चार बेडरूम का अपार्टमेंट खरीदा था और इंटीरियर के कामों पर 40 लाख रुपये खर्च किए.
उन्होंने कहा, ‘हमारे अपार्टमेंट की मौजूदा कीमत 4 करोड़ रुपये है, लेकिन निर्माण की खराब गुणवत्ता के कारण कोई भी इन अपार्टमेन्ट्स को कभी नहीं खरीदेगा. 2 करोड़ की मूल्यांकन लागत हमारी उम्मीद की आधी भी नहीं है. हम उसी आकार का एक नया बना अपार्टमेंट चाहते हैं.’
अन्य टावर के रहवासियों को भी हैं समस्याएं
बता दें कि अतिरिक्त उपायुक्त विश्राम कुमार मीणा की अगुवाई वाली मजिस्ट्रेट जांच में भी न केवल टावर-डी को गिराने बल्कि आगे की जांच तक टावर-ए, बी, सी, ई,एफ, जी, एच और जे को खाली कराने की आईआईटी दिल्ली की सिफारिश बरकरार रखी गई थी.
समिति ने लोगों की सुरक्षा के लिए टावर ई एवं एफ को तत्काल खाली कराने की भी सिफारिश की है. इन टावरों का निर्माण भी टावर डी के साथ ही हुआ था
नवभारत टाइम्स के अनुसार, सोसाइटी के कई अन्य टावर में रहने वाले लोगों ने भी संरचना (स्ट्रक्चरल) समस्याओं का मसला उठाया है.
अख़बार को एक रहवासी मनोज सिंह ने बताया कि 14 मंजिला जी टावर में 64 फ्लैट्स हैं और इसकी हालत डी टावर से बदतर है. उन्होंने बताया कि फर्श पर चलने के दौरान मेज पर रखे गिलास का पानी हिलता है. डी टावर हादसे के बाद यहां रह रहे करीब पंद्रह परिवार काफी तनाव में हैं.
एक अन्य रहवासी राजीव मनोचा ने अख़बार से कहा, ‘साल 2019 में फ्लैट खरीदा था. कई फ्लैट्स में दरारें नजर आती हैं. पिछले साल बालकनी से प्लास्टर का एक बड़ा हिस्सा गिरा था.’
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, टावर एफ निवासी अशोक जांगिड़ ने कहा कि सिर्फ एक टावर को गिराने का आदेश काफी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘सभी प्रभावित इमारतों के लिए आदेश पारित किया जाना चाहिए था क्योंकि कोई भी टावर रहने के लिए सुरक्षित नहीं है. हमने शहर से बाहर जाना बंद कर दिया है क्योंकि 10 फरवरी की घटना ने हमें डरा दिया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)