आज़म ख़ान सदस्यता: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने उपचुनाव की अधिसूचना रोकी

यूपी के रामपुर की एक अदालत ने सपा नेता आज़म ख़ान को 'नफ़रती भाषण' मामले में दोषी ठहराते हुए तीन साल की सज़ा सुनाई थी, जिसके बाद विधानसभा सचिवालय ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी. इसके ख़िलाफ़ ख़ान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था.

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आज़म खान. (फोटो साभार: फेसबुक/@abdullahazamkhan01)

यूपी के रामपुर की एक अदालत ने सपा नेता आज़म ख़ान को ‘नफ़रती भाषण’ मामले में दोषी ठहराते हुए तीन साल की सज़ा सुनाई थी, जिसके बाद विधानसभा सचिवालय ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी. इसके ख़िलाफ़ ख़ान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था.

आज़म खान. (फोटो साभार: फेसबुक/@abdullahazamkhan01)

नई दिल्ली/लखनऊ: निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर रामपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए 10 नवंबर को जारी होने वाली अधिसूचना को अगले आदेश तक जारी नहीं करने का फैसला लिया है.

प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी अजय कुमार शुक्ला ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा मोहम्मद आजम खान बनाम निर्वाचन आयोग मामले में हुई सुनवाई में दिए गए निर्देश के मद्देनजर आयोग ने रामपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए 10 नवंबर को प्रकाशित होने वाली अधिसूचना को अगले आदेश तक जारी नहीं किए जाने का निर्णय लिया है.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने आयोग को निर्देश दिया था कि वह रामपुर सदर सीट के उपचुनाव के लिए 10 नवंबर तक अधिसूचना न जारी करे.

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने खान की अयोग्यता की कार्यवाही की (त्वरित) गति की आलोचना भी की. पीठ ने कहा, ‘जिस तत्परता के साथ आप (विधानसभा) आगे बढ़े, उसे देखें.’

पीठ में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस जेबी पारदीवाला भी शामिल थे. खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदंबरम द्वारा बताए कुछ अन्य मामलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा, ‘आप चुन-चुनकर लोगों को निशाना नहीं बना सकते हैं.’

पीठ ने खान को कानूनी उपाय तलाशने का अवसर देने का समर्थन किया. चिदंबरम ने अन्य मामलों का उल्लेख किया था, जिसमें कुछ सांसदों/विधायकों को देर से अयोग्य ठहराया गया था.

चुनाव आयोग के जोरदार विरोध को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव कार्यक्रम घोषित करने के लिए राजपत्र अधिसूचना 11 नवंबर को या उसके बाद जारी की जा सकती है, जो खान की दोषसिद्धि पर रोक के आवेदन के परिणाम पर निर्भर करता है.

पीठ ने कहा कि विधायक को अयोग्यता से खुद का बचाव करने के लिए दोषसिद्धि पर रोक लगाने के लिए अपील के कानूनी उपाय का लाभ उठाने का अवसर दिया जाना चाहिए था.

चिदंबरम ने कहा कि मामले में खान को दोषी ठहराए जाने के अगले ही दिन 27 अक्टूबर को राज्य विधानसभा ने उनकी सीट खाली घोषित कर दी. उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह की त्वरित कार्रवाई ‘अभूतपूर्व’ थी और यह कदम ‘राजनीति से प्रेरित’ था.

चिदंबरम ने कहा कि खान ने उस दोषसिद्धि के खिलाफ अपील दायर की है जिसमें उन्हें अंतरिम जमानत दी गई है और सत्र अदालत ने सुनवाई के लिए दी गई अर्जी पर 15 नवंबर को विचार करने का निर्णय लिया है.

आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा कि एक आपराधिक मामले में दोषसिद्धि पर अयोग्यता स्वत: है और खान को इससे राहत नहीं दी जा सकती, क्योंकि विधानसभा द्वारा इस आशय का निर्णय लेने के बाद प्रक्रिया अंतिम रूप ले चुकी है.

पीठ ने सुनवाई के दौरान आयोग को सुझाव दिया कि चुनाव कार्यक्रम के लिए राजपत्र अधिसूचना जारी करने को 76 घंटे के लिए टाल दिया जाए, ताकि खान को अपनी सजा पर रोक लगवाने का अवसर मिल सके.

आयोग ने शुरू में इस सुझाव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर अपीलीय अदालत दोषसिद्धि पर रोक लगाती है तो खान उपचुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल कर सकते हैं.

सीजेआई ने कहा, ‘उन्हें (खान को) उचित समय दें. इसे तीन दिन के लिए टाल दें, अन्यथा आप इसे दोषी के राजनीतिक संबद्धता के आधार पर चुनिंदा तरीके से कर रहे हैं.’

ज्ञात हो कि बीते 7 नवंबर को उच्चतम न्यायालय ने राज्य विधानसभा की सदस्यता के प्रति अयोग्य ठहराए जाने के खिलाफ सपा नेता आजम खान की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और भारतीय निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा था.

अदालत ने कहा था, ‘उन्हें अयोग्य ठहराने की क्या जल्दी थी? आपको कम से कम उन्हें कुछ मोहलत देनी चाहिए थी.’

गौरतलब है कि बीते 27 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश में रामपुर की एमपी/एमएलए अदालत ने सपा नेता एवं विधायक आजम खान को भड़काऊ भाषण देने के मामले में दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी. उसके बाद आजम खान की उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी.

आजम खान पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिलक कोतवाली इलाके के खातानगरिया गांव में जनसभा को संबोधित करने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को लेकर अपमानजनक भाषा का इस्‍तेमाल करने और जिला प्रशासन के वरिष्‍ठ अधिकारियों को भला-बुरा कहने पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया था. खान के इस बयान का वीडियो भी वायरल हुआ था.

भड़काऊ भाषण देने के मामले में विशेष एमपी/एमएलए अदालत ने आजम खां को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 153-क (धार्मिक भावनाएं भड़काना), 505-क (विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाएं पैदा करने के आशय से असत्य कथन) और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 (चुनाव के सिलसिले में विभिन्न वर्गों के बीच वैमनस्य बढ़ाना) के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल कैद की सजा सुनाई थी.

गौरतलब है कि 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से आजम खान के खिलाफ चोरी से लेकर भ्रष्टाचार तक के 87  मामले दर्ज किए गए.

जमीन कब्जाने से संबंधित मामले में वे करीब दो सालों तक जेल में रहे थे. इसी साल मई में सुप्रीम कोर्ट अंतरिम जमानत मिलने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)