विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति की ओर से आयोजित आत्मरक्षा प्रशिक्षण सत्र पर छात्राओं ने कहा, यह महिलाओं की सुरक्षा का दायित्व ख़ुद उन्हीं पर डालता है.
नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लैंगिक प्रकोष्ठ (जीएसकैश) बंद करने को लेकर हो रहे विवाद में नया मोड़ आ गया है. दरअसल, छात्राओं का एक वर्ग प्रशासन द्वारा गठित आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) की ओर से शुरू किए गए आत्मरक्षा प्रशिक्षण सत्र पर सवाल खड़ा कर रहा है.
यह प्रशिक्षण आईसीसी की पहली पहल है जिसका गठन जेएनयू में लिंग आधारित हिंसा एवं भेदभाव रोधी समिति (जीएसकैश) को खत्म किए जाने के बाद किया गया था और अब इस प्रशिक्षण सत्र को लेकर कड़ा विरोध होने लगा है.
कुछ छात्राओं ने कहा कि ऐसे सत्र महिलाओं पर खुद की सुरक्षा का दायित्व डालते हैं जो जीएसकैश से मेल नहीं खाता, जिसका फोकस कार्यशालाओं, फिल्मों एवं बैठकों से लैंगिक संवेदनशीलता पर होता है.
जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष गीता कुमारी ने कहा कि मार्शल आर्ट सीखना महत्वपूर्ण है जबकि यौन उत्पीड़न रोधी संस्थाओं का फोकस लैंगिक संवेदनशीलता की पहलों पर होना चाहिए.
उन्होंने कहा, एक महिला को सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ दें क्योंकि वह कराटे जानती है बल्कि ऐसा उसकी आजादी और चयन के आधार पर होना चाहिए. बहरहाल आईसीसी की अधिकारी विभा टंडन ने जोर दिया कि आत्मरक्षा प्रशिक्षण राष्ट्रीय नीति का अहम हिस्सा है.
विभा ने कहा, महिलाओं के लिए कुछ सकारात्मक किए जाने को मैं गलत नहीं मानती. हमलोग लैंगिक संवदेनशीलता कार्यक्रमों का भी आयोजन करेंगे जिसकी घोषणा जल्द की जाएगी.
शिक्षक संघ की अध्यक्ष आयशा किदवई ने जोर दिया कि इस तरह के सत्र से उत्पीड़न का हल नहीं निकल सकता. उन्होंने कहा, क्या कोई छात्रा उसे गलत तरीके से छूने के लिए अपने पीएचडी सुपरवाइजर को कराटे जड़ सकती है? अगर वह ऐसा करती है तो क्या विश्वविद्यालय उसे तुरंत सजा नहीं देगा?